कक्षा – 09 अपठित गद्यांश (Unseen Prose Passages)
अपठित गद्यांश (Unseen Prose Passages)
‘अपठित’ यह शब्द ‘अ’ उपसर्ग, ‘पठ्’ धातु और ‘इत’ प्रत्यय से मिलकर बना है। ‘अपठित’ शब्द का अर्थ है- जो कभी पढ़ा न गया हो। अर्थात अपठित गद्याश वे गद्यांश हैं जिनको छात्रों ने पहले कभी अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ा नहीं है। अपठित गद्यांश देकर उस पर भाव-बांध संबंधी प्रश्न पूछे जाते है। इन प्रश्नों के उत्तर छात्रों को उसी गद्यांश के आधार पर देने होते हैं। उत्तर देते समय यह कोशिश होनी चाहिए कि उत्तर में गद्यांश के वाक्यों को जैसा का तैसा न उतारा जाए बल्कि उसमें कही गई बात को अपने शब्दों में व्यक्त किया जाए।
अपठित गद्यांश का उद्देश्य
मूल्यांकन हेतु अपठित गद्यांश दिए जाने का उद्देश्य है- छात्रों के भाषा-बोध का पता लगाना। अर्थात यह जानना कि छात्र उस गद्द्याश की भाषा को समझते हैं या नहीं। साथ ही इससे उनकी अभिव्यक्ति क्षमता का भी पता चल जाता है।
अपठित गद्यांश हल करते समय ध्यान देने योग्य बाते-
• दिए गए गद्यांश का एक-दो बार मौन वाचन करें तथा उसे समझने का प्रयास करें।
• तदुपरांत प्रश्नों को अलग-अलग पढ़ें और प्रत्येक प्रश्न के संभावित उत्तर को गद्यांश में रेखांकित करें। जब प्रश्नों के उत्तर लिखना प्रारंभ करें तो लेखक द्वारा कही गई बात को सरल एवं स्पष्ट भाषा में छोटे-छोटे वाक्यों में व्यक्त करें।
• जो भी कहना हो कम-से-कम शब्दों में कहना।
• यदि शीर्षक देना हो, तो किसी रफ़ कागज पर सोचकर दो-तीन शीर्षक लिख लें। फिर उनमें से जो सबसे अधिक उपयुक्त लगे उसे उत्तर के रूप में लिखें। यदि प्रश्नों का प्रारूप बहुविकल्पीय है तो सारे विकल्पों को ध्यान से पढ़कर सर्वाधिक उचित विकल्प पर निशान लगाइए।
कक्षा 09 अपठित गद्यांश के उदाहरण (बहुविकल्पीय और लघु उत्तरीय)
(1)हर बड़ा साहित्यकार साहित्य और विशेषकर शब्द की गरिमा और मर्यादा पर लड़ने-मरने को तैयार रहता हैं। बच्चन जी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। बच्चन जी ने जितना आदर अपने साहित्य का किया उतना ही भारत तथा विदेशों के साहित्य का भी किया। इसलिए समय-समय पर अनुवाद संबंधी नीति बनाते हुए उन्होंने भाषा की गरिमा बनाए रखने पर बहुत बल दिया। उनका कहना था कि अंग्रेजी का अनुवाद बाजारू स्तर की हिंदी में माँगना हिंदी के साथ अन्याय करना है। जब-जब हिंदी अंग्रेजी के स्तर तक उठने की कोशिश करती है तो उस पर तुरंत दोष लगाया जाता है कि वह कठिन और क्लिष्ट है तथा जब वह उससे घबराकर अति सरलता की और जाती है. तो उसे अपरिपक्व कह दिया जाता है। बच्चन जी ने अपने गद्य और पद्य दोनों में ही एक सुंदर सुगठित और सरल हिंदी का प्रयोग करके यह सिद्ध कर दिया कि आवश्यकता के अनुसार संस्कृत की ओर झुकती हिंदी भी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. गद्यांश के अनुसार बच्चन जी के विषय में कौन-सा कथन सत्य है?
(क) वे केवल अपने साहित्य का ही आदर करते थे।
(ख) वे केवल विदेशी साहित्य का ही आदर करते थे।
(ग) में जितना आदर अपने साहित्य का करते थे उतना ही आदर भारत तथा विदेशों के साहित्य का भी करते थे।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
2. अनुवाद संबंधी नीति बनाते समय बच्चन जी ने किस बात पर अधिक बल दिया? (
(क) अपने साहित्य के प्रचार-प्रसार पर
(ख) विदेशी साहित्य के प्रचार पर
(ग) आम बोल-चाल की भाषा के प्रयोग पर
(घ) भाषा की गरिमा बनाए रखने पर
3. अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किए जाने के संदर्भ में बच्चन जी क्या चाहते थे?
(अ) अनुवाद विपणन योग्य हिंदी में होना चाहिए
(ख) अनुवाद विपणन योग्य हिन्दी में कतई नहीं होना चाहिए
(ग) अनुवाद किया ही न जाए
(घ) इनमें से कोई नहीं
4. बच्चन जी के अनुसार किस प्रकार की हिंदी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है?
(क) आम बोलचाल की
(ख) उर्दू से प्रभावित हिंदी
(ग) संस्कृत की ओर झुकती हिंदी
(घ) इनमें से कोई नहीं
5. ‘लोकप्रिय’ अर्थात ‘लोक का प्रिय’ में कौन-सा समास है?
(ए) कर्म पुरुष
(ख) संबंध तत्पुरुष
(सी) स्थानांतरण तत्पुरुष
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- 1 (ग). 2 (घ),3. (ख), 4(ग), 5 (ख)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किए जाने के संबंध में बच्चन जी क्या चाहते थे?
उ०- अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किए जाने के संबंध में बच्चन जी चाहते थे कि अनुवाद बाजारू हिंदी में बिलकुल न किया जाए। वे मानते थे कि बाजारू हिंदी में अनुवाद की माँग हिंदी के साथ अन्याय है।
2. हिंदी पर क्या दोष लगाया जाता है तथा उसे कब अपरिपक्व कह दिया जाता है?
उ०- जब-जब हिंदी अंग्रेजी के स्तर तक उठने की कोशिश करती है तब-तब उस पर यह दोष लगाया जाता है कि वह क्लिष्ट है तथा जब वह सरलता की ओर जाती है तो उसे अपरिपक्व कह दिया जाता है।
3. कौन-सी हिंदी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है तथा इस बात को बच्चन जी ने किस प्रकार प्रमाणित किया?
उ०- आवश्यकता के अनुसार संस्कृत की ओर झुकती हुई हिंदी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है। इस बात को बच्चन जी ने अपने गद्य और पद्य दोनों में ही एक सुंदर, सुगठित और सरल हिंदी का प्रयोग करके प्रमाणित कर दिया।
4. अनुवाद संबंधी नीति बनाते समय बच्चन जी ने किस बात पर अधिक बल दिया?
उ०- अनुवाद संबंधी नीति बनाते समय बच्चन जी ने भाषा की गरिमा बनाए रखने पर अधिक बल दिया। उनका कहना था कि अग्रेंजी का अनुवाद बाजारू स्तर की हिंदी में माँगना हिंदी के साथ अन्याय करना है। 5. भारतीय एवं विदेशी साहित्य के प्रति बच्चन जी का क्या दृष्टिकोण था?
उ०- बच्चन जी जितना आदर भारतीय साहित्य का करते थे, उतना ही आदर विदेशी साहित्य का भी करते थे। 6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उ०- शीर्षक: बच्चन जी की भाषाई दृष्टि।
(2)संसार में अमरता ऐसे ही लोगों को मिलती है जो अपने पीछे कुछ आदर्श छोड़ जाते हैं. जिनका स्थायी मूल्य होता है। अधिकतर यही देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति संपन्न परिवार में बहुत कम पैदा होते हैं। अधिकांश ऐसे लोगों का जन्म मध्यम वर्ग या गरीब परिवारों में ही होता है।मनुष्य में विनय उदारता कष्ट-सहिष्णुता साहस आदि चारित्रिक गुणों का विकास अत्यावश्यक है। ये गुण व्यक्ति के जीवन को अहंकारहीन तथा सादा-सरल बनाते हैं। जीवन में सादगी लाने के लिए दो बातें विशेष रूप से करणीय है-प्रथम कठिन से कठिन परिस्थितियों में धैर्य को न छोड़ना, द्वितीय अपनीआवश्यकताओं को न्यूनतम बनाना। सादगी का विचारों से भी घनिष्ठ संबंध है। हमें सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए और अपने विचारों को उच्च बनाए रखना चाहिए। व्यक्ति की सच्ची पहचान उसके विचारों और करनी से होती है। मनुष्य के विचार उसके आचरण पर प्रभाव डालते हैं और उसके विवेक को जाग्रत रखते हैं। विवेकशील व्यक्ति ही अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखता है। सादा जीवन व्यतीत करनेवाले व्यक्ति को भी कभी हतप्रभ होकर अपने आत्मसम्मान पर आँच नहीं आने देनी चाहिए। सादगी मनुष्य के चरित्र का अंग है वह बाहरी चीज नहीं है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. संसार में कौन लोग अमर हो पाते हैं?
(क) जिनकी कभी मृत्यु नहीं होती।
(ख) जो गरीब परिवार में जन्म लेते हैं।
(ग) जो अपने पीछे कुछ आदर्श छोड़ जाते हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
2. संसार में जो अमरत्व प्राप्त करते हैं, उनमें से अधिकांश का जन्म प्रायः-
(क) संपन्न परिवार में होता है।
(ख) उच्च जाति में होता है।
(ग) मध्यम वर्ग या गरीब परिवार में होता है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
3. चारित्रिक विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा गुण आवश्यक नहीं है?
(क) विनय (ख) कष्ट-सहिष्णुता (ग) गरीब होना (घ) साहस
4. सादगी का संबंध निम्नलिखित में से किसके साथ है?
ए) गरीबी से
(ख) इच्छा से
(ग) विचारों से
(घ) सादा वस्त्र पहनने से
5. मनुष्य की सच्ची पहचान उसके किन गुणों से होती है?
(क) उसके विचारों एवं करनी से
(ख) कथनी एवं करनी से
(ग) विचार और विवेक से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- 1 (ग), 2. (ग), 3 (ग),4(ग), 5(क)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. संसार में अमरता किन लोगों को मिलती है तथा ऐसे लोगों का जन्म प्रायः किन परिवारों में होता है?
उ०- संसार में अमरता उन लोगों को मिलती है. जो अपने पीछे कुछ आदर्श छोड़ जाते हैं तथा जिनका स्थायी मूल्य होता है। इस तरह के अधिकांश लोगों का जन्म प्रायः मध्यमवर्गीय या गरीब परिवारों में होता है।
2. चारित्रिक गुणों के विकास के लिए कौन-कौन से गुण आवश्यक हैं?
उ०- चारित्रिक गुणों के विकास के लिए विनय, उदारता, कष्ट-सहिष्णुता, साहस आदि गुण आवश्यक हैं, क्योंकि ये गुण मनुष्य को अहंकारहीन एवं सरल बनाते हैं।
3. जीवन में सादगी लाने के लिए कौन-सी दो बातें करणीय हैं?
उ०- जीवन में सादगी लाने के लिए दो बातें विशेष रूप से करणीय हैं। पहली, कठिन से कठिन परिस्थितियों में धैर्य न छोड़ना तथा दूसरी अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम बनाना।
4. व्यक्ति की सच्ची पहचान किस बात से होती है और क्यों?
उ०- व्यक्ति की सच्ची पहचान उसके विचारों एवं उसके कार्यों से होती है। मनुष्य के विचार उसके आचरण पर प्रभाव डालते हैं और उसके विवेक को जाग्रत करते हैं। विवेकशील व्यक्ति ही अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखता है।
5. कौन-सा आंतरिक गुण मनुष्य के चरित्र का अंग है?
उ०-सादगी मनुष्य के चरित्र का अंग है।
6. ‘आत्मसम्मान’शब्द का विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए।
उ०- विग्रह-आत्म का सम्मान समास-संबंध तत्पुरुष समास।
(3) मैं सोचता हूँ स्त्रियों के पास एक महान शक्ति सोई हुई है। दुनिया की आधी से बड़ी ताकत उनके पास है। आधी तो इसलिए कहता हूँ कि दुनिया में स्त्रियाँ आधी तो हैं ही। आधी से बड़ी इसलिए कि बच्चे उनकी छाया में पलते हैं। अतः वे जैसा चाहें वैसा उनके व्यक्तित्व का निर्माण कर सकती हैं। पुरुष के हाथ में चाहे जितनी ताकत हो, लेकिन वह एक दिन स्त्री की गोद में होता है वहीं से वह अपनी यात्रा शुरू करता है। जहाँ भी प्रेम करुणा और दया है वहाँ स्त्री मौजूद है। इसलिए मैं कहता हूँ कि स्त्री के पास आधी से भी बड़ी ताकत है और वह पाँच हजार वर्षों से बिलकुल सोई हुई है। नारी की शक्ति का कोई उपयोग नहीं हो सका है। भविष्य में यह उपयोग हो सकता है। उपयोग होने का एक सूत्र यही है कि स्त्रियाँ यह तय कर लें कि उन्हें पुरुषों जैसा नहीं बनना है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. स्त्रियों के विषय में लेखक क्या सोचते हैं?
(क) स्त्रियाँ कमजोर होती हैं।
(ग) स्त्रियों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
(ख) स्त्रियों के पास महान शक्ति सोई हुई है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
2. दुनिया की आधी से बड़ी ताकत स्त्रियों के पास किस प्रकार है?
(क) विश्व में स्त्रियों की संख्या आधी से अधिक है।
(ख) स्त्रियों के साथ बच्चे भी होते हैं और वे बच्चों को अपने अनुसार परिवर्तित कर सकती हैं।
(ग) स्त्रियाँ अधिक समझदार होती हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
3. ‘पुरुष एक दिन स्त्री की गोद में होता है।’ पंक्ति का अर्थ है-
(क) जन्म लेने के बाद पुरुष बालक के रूप में किसी न किसी स्त्री की गोद में खेलता है।
(ख) जिस स्त्री का अपना बच्चा नहीं होता वह किसी बच्चे को गोद ले लेती है।
(ग) प्रत्येक पुरुष का लालन-पालन करने वाली माँ एक स्त्री ही होती है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
4. निम्नलिखित में से स्त्री कहाँ मौजूद नहीं है?
(अ) जहां प्यार है.
(ख) जहाँ करुणा है।
(ग) जहाँ दया है।
(घ) जहाँ अहंकार है।
5. नारी की शक्ति का उपयोग कैसे हो सकता है?
(क) दूसरों की सेवा करके
(ग) स्त्रियाँ यह तय करें कि उन्हें पुरुषों जैसा नहीं बनना है
(ख) पुरुषों को नियंत्रित करके
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- 1 (ख), 2. (ख), 3 (ग), 4 (घ), 5 (ग)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. ‘पुरुष एक दिन स्त्री की गोद में होता है।’- पंक्ति का आशय यह स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उ०- ‘पुरुष एक दिन स्त्री की गोद में होता है।’ पंक्ति का आशय यह है कि प्रत्येक पुरुष का लालन-पालन करने वाली उसकी माँ एक स्त्री ही होती है। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन-यात्रा अपनी माँ की गोद से ही प्रारंभ करता है।
2. ‘जहाँ भी प्रेम, करुणा और दया है. वहाँ स्त्री मौजूद है।’ कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उ०- ‘जहाँ भी प्रेम करुणा और दया है. वहाँ स्त्री मौजूद है।’ कथन से लेखक का तात्पर्य यह है कि सामान्यतः प्रत्येक स्त्री के सहज गुण हैं-प्रेम, दया और करुणा। ये गुण उसे जन्मजात मिलते हैं, जिनके कारण उसका स्थान पुरुष से भी ऊपर होता है।
3. नारी के किस गुण का उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है तथा उसका उपयोग किस प्रकार हो सकता है?
उ०- नारी के पास आधी से भी बड़ी शक्ति है, जो सोई पढ़ी है। इस शक्ति का विगत पाँच हजार वर्षों से कोई उपयोग नहीं हो पाया है। इसका उपयोग तभी हो सकता है, जब स्त्रियाँ यह तय कर लें कि उन्हें पुरुषों जैसा नहीं बनना है।
4. मनुष्य अपनी जीवन-पाश कहाँ से प्रारंभ करता है?
उ०- मनुष्य अपनी जीवन-यात्रा माँ को गोद से प्रारंभ करता है। जन्म लेने के बाद बच्चे का लालन-पालन एक माँ हो करती है। अतः माँ की गोद से ही बच्चा अपनी जीवन-यात्रा की शुरुआत करता है।
5. लेखक ऐसा किस आधार पर सोचते हैं कि दुनिया की आधी से बड़ी ताकत स्त्रियों के पास है?
उ०- लेखक को दृष्टि में दुनिया की आधी से बड़ी ताकत स्त्रियों के पास इसलिए है क्योंकि बच्चे उनकी छाया में पलते हैं और वे जैसा चाहे उनको परिवर्तित कर सकती हैं।
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उ०- शीर्षक – नारी-शक्ति की महिमा।
(4) तुम्हें क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर तुम्हीं को देना होगा, दूसरा कोई नहीं दे सकता। कैसा भी विश्वास-पात्र मित्र हो, तुम्हारे इस काम को वह अपने ऊपर नहीं ले सकता। हम अनुभवी लोगों की बातों को आदर के साथ सुनें, बुद्धिमानों की सलाह को कृतज्ञता पूर्वक मानें, पर इस बात को निश्चित समझकर कि हमारे कामों से हो हमारी रक्षा व हमारा पतन होगा। हमें अपने विचार और निर्णय को स्वतंत्रता को दृढ़ता पूर्वक बनाए रखना चाहिए। जिस पुरुष की दृष्टि सदा नीची रहती है, उसका सिर कभी ऊपर न होगा। नीची दृष्टि रखने से यद्यपि रास्ते पर रहेंगे, पर इस बात को न देखेंगे कि यह रास्ता कहाँ से जाता है। चित्त की स्वतंत्रता का मतलब चेष्टा को कठोरता या प्रकृति की उग्रता नहीं है। अपने व्यवहार में कोमल रहो और अपने उद्देश्यों को उच्च रखो, इस प्रकार नम्र और उच्चाशय दोनों बनो। अपने मन को कभी मरा हुआ न रखो। जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. मनुष्य को क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर कौन देगा?
(क) मनुष्य को उत्तर स्वयं देना होगा।
(ख) दूसरों से उत्तर माँगना होगा।
(ग) कोई भी उत्तर नहीं दे सकता।
(घ) मनुष्य का वित्त उत्तर देगा।
2. हमारी रक्षा व पतन किस बात से होगा?
(ख) बुद्धिमानों की सलाह न मानकर
(क) हमारे अपने कामों से
(ग) दूसरों का आदर न करके
(घ) लक्ष्य को नीचा करके
3. हमें दृढ़तापूर्वक बनाए रखना चाहिए-
(क) अच्छे गुणों को
(ख) अपने कार्यों को
(ग) अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को
(घ) अपने व्यवहार को
4. अपना सिर ऊपर रखने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए?
(क) सिर उठाकर चलना चाहिए।
(ख) नजरें नीची करके चलना चाहिए।
(ग) अपने उद्देश्य को ऊँचा रखना चाहिए।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
5. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है-
(क) कर्मठ मनुष्य
(ख) दृढ़-चित्त मनुष्य
(ग) आगे बढ़ने के तरीके
(घ) प्रकृति की उग्रता
उत्तर- 1 (क), 2 (क), 3 (ग), 4(ग), 5(ख)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. मनुष्य को कौन-कौन से कार्य करने चाहिए?
उ०- मनुष्य को अनुभवी लोगों की बातों को आदर से सुनना चाहिए, बुद्धिमान लोगों की सलाह को कृतज्ञतापूर्वक मानना चाहिए तथा अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाए रखना चाहिए।
2. चित्त की स्वतंत्रता का मतलब क्या है?
उ०- चित्त की स्वतंत्रता का मतलब है- अपने व्यवहार को कोमल रखना और अपने उद्देश्यों को उच्च रखना। इस तरह नम्र और उच्चाशय दोनों बनना तथा अपने मन को कभी मरा हुआ न रखना।
3. मनुष्य को क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर कौन देगा?
उ०- मनुष्य को क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर उस मनुष्य को स्वयं देना होगा, कोई दूसरा इसका उत्तर नहीं दे सकता।
4. मनुष्य की रक्षा और पतन के कारण क्या हैं तथा उसे किस चीज को दृढ़तापूर्वक बनाए रखना चाहिए?
उ०- मनुष्य की रक्षा और पतन के कारण उसके अपने कर्म होते हैं। उसे अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाए रखना चाहिए।
5. ‘दृढ़ता’ शब्द का वर्ण-विच्छेद कीजिए।
उ०- वर्ण-विच्छेद- द् + ऋ + ढ् + अ + त् + आ
6. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उ०- शीर्षक- दृढ़चित्त मनुष्य।
(5) एक अंग्रेज डॉक्टर का कहना है कि किसी नगर में दवाई से लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है। हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद देने वाली है। यह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसन्न करती है। पाचन शक्ति बढ़ाती है, रक्त का संचालन करती है और अधिक पसीना लाती है। हँसी एक शक्तिशाली दवा है। एक डॉक्टर कहता है कि यह जीवन की मीठी मदिरा है। डॉक्टर ह्यूड कहते हैं कि आनंद से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास और नहीं है। कारलाइल एक राजकुमार थे। संसार-त्यागी हो गए थे। वे कहते थे कि जो जी से हँसता है, वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसो, तुम्हें अच्छा लगेगा। अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुमसे कम घृणा करेगा। एक अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा। उदास को हँसाओ, उसका दुख घटेगा। निराश को हँसाओ, उसकी आशा बढ़ेगी एक बूढ़े को हँसाओ, वह अपने को जवान समझने लगेगा। एक बालक को हँसाओ, उसके स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। वह प्रसन्न और प्यारा बालक बनेगा।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. अंग्रेज डॉक्टर के कथनानुसार किसी नगर में दवाई से लदे बीस गधे ले जाने के बजाय क्या ले जाना अधिक लाभकारी है?
(क) अच्छा डॉक्टर
(ख) एक हँसोड़ व्यक्ति
(ग) एक समझदार व्यक्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं
2. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य हँसी से नहीं होता?
(क) पाचन शक्ति का बढ़ना
(ख) रक्त का सही संचार
(ग) पसीना आना
(घ) अस्वस्थ होना
3. डॉक्टर ह्यूड ने कौन-सी बात कही है?
(क) हँसी एक शक्तिशाली दवा है।
(ख) जीवन की मीठी मदिरा है।
(ग) आनंद से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास और नहीं है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
4. कारलाइल ने निम्नलिखित में से क्या नहीं कहा?
(क) जी से हँसो तुम्हें अच्छा लगेगा।
(ख) अपने मित्र को हँसाओ वह अधिक प्रसन्न होगा।
(ग) अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा।
(घ) शत्रु को हँसाओगे वह घृणा करेगा।
5. ‘संवाद’ शब्द की रचना किस उपसर्ग से हुई है?
(क) स
(ख) सम्
(ग) सन्
(घ) सम
उत्तर- 1 (ख), 2 (घ). 3 (ग), 4 (घ), 5 (ख)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. हंसी को लेखक ने क्या बताया है तथा क्यों?
उ०- लेखक ने बताया है कि हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संदेश देनेवाली है। यह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसन्न करती है। पाचन शक्ति बढ़ाती है रक्त का संचालन करती है और अधिक पसीना लाती है।
2 हँसी के विषय में कारलाइल क्या कहा करते थे?
उ०- कारलाइल कहा करते थे कि जो जी से हँसता है वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसो तुम्हें अच्छा लगेगा। अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ वह तुमसे कम घृणा करेगा। एक अनजान को हँसाओं, तुम पर भरोसा करेगा। एक उदास को हँसाओ उसका दुख घटेगा। निराश को हँसाओ उसकी आशा बढ़ेगी। एक बूढ़े को हँसाओ वह अपने को जवान समझने लगेगा। एक बालक को हँसाओं उसके स्वास्थ्य में वृद्धि होगी।
3. अंग्रेज डॉक्टर का क्या कहना है?
उ०- अंग्रेज डॉक्टर का कहना है कि किसी नगर में दवाई से लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है।
4. अंग्रेज डॉक्टर के कथन का क्या तात्पर्य है?
30 अंग्रेज डॉक्टर के कथन का तात्पर्य यह है कि दवाइयों की तुलना में हँसाने से मनुष्य का स्वास्थ्य अधिक बेहतर हो सकता है। इसका कारण है कि व्यक्ति जितना अधिक हँसेगा खुश रहेगा उतना ही स्वस्थ बना रहेगा।
5. ‘अनजान’ शब्द की रचना किस उपसर्ग से हुई है?
उ०- ‘अन’ उपसर्ग से।
6. इस गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए।
उ०- शीर्षक- हँसी एक नियामत।
(6) कहने को चाहे भारत में स्वशासन हो और भारतीयकरण का नारा हो किंतु वास्तविकता में सब ओर आस्थाहीनता बढ़ती जा रही है। मंदिरों मसजिदों गुरुद्वारों या चर्च में बढ़ती भीड़ और प्रचार माध्यमों द्वारा मेलों और पर्वो के व्यापक कवरेज से आस्था के संदर्भ में कोई भ्रम मत पालिए, क्योंकि ये सब उसी प्रकार भ्रामक है जैसे ‘लगे रहो मुन्ना भाई की गांधीगिरी’।
वास्तविक जीवन में जिस आचरण की अपेक्षा व्यक्ति या समूह से की जाती है उसकी झलक तक पाना मुश्किल हो गया है। गांधी को ‘गिरी’ के रूप में आँकने के सिनेमाई कथानक का कोई स्थायी प्रभाव हो भी नहीं सकता। फ़िल्म उतरी और प्रभाव चला गया। गांधी को बाह्य आवरण से समझने के कारण वर्षों से हम दो अक्तूबर और तीस जनवरी को कुछ आडंबर अवश्य करते चले आ रहे हैं लेकिन जिन जीवन-मूल्यों के प्रति आस्थावान होने की हम सौगंध खाते हैं और उन्हें आचरण में उतारने का संकल्प व्यक्त करते हैं, उनका लेशमात्र प्रभाव भी हमारे आसपास के जीवन में प्रतीत नहीं होता।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. लेखक ने ‘मुन्नाभाई की गांधीगिरी’ की तुलना किससे की है?
(क) मंदिर मसजिदों गुरुद्वारों में बढ़ती भीड़ से
(ख) प्रचार माध्यमों के व्यापक कवरेज
(ग) आस्थाहीनता से
(घ) भारतीयकरण से
2. मंदिर-मसजिद-गुरुद्वारों में बढ़ती भीड़ के बावजूद लेखक ने लोगों को आस्थाहीन क्यों कहा है?
(क) वे इन पवित्र स्थानों पर कुछ पाने की लालसा लेकर जाते हैं।
(ख) जो ज्यादा पाप करता है वही मंदिर मसजिद-गुरुद्वारा जाता है।
(ग) आस्थावान व्यक्ति के लिए तो प्रत्येक स्थान पर ईश्वर उसे मंदिर-मसजिद जाने की आवश्यकता नही पड़ती।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
3. ‘फ़िल्म उतरी और प्रभाव चला गया।’ लेखक किस फ़िल्म की बात कर रहे हैं?
(क) प्रत्येक फ़िल्म की
(ख) जो फिल्में नहीं चल पातीं उनकी
(ग) मुन्नाभाई एम०वी०बी०एस० की
(घ) इनमें से कोई नहीं
4. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस पर व्यंग्य किया है?
(क) मुन्नाभाई की गाँधीगिरी पर
(ख) दो अक्तूबर एवं तीस जनवरी के दिन गांधी जी के प्रति झूठी आस्था दिखानेवालों पर
(ग) गांधी जी के अनुयायियों पर
(घ) गांधी जी पर
5. ‘काल्पनिक’ शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?
(क) निक
(ख) क
(ग) इक
(घ) नीक
उत्तर – 1(ग), 2 (ग), 3 (क), 4(ख),5 (ग)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. लेखक की दृष्टि में आस्था के संबंध में क्या-क्या भ्रमात्मक है?
उ०- मंदिरों मसजिदों गुरुद्वारों या चर्च में बढ़ती भीड़ और प्रचार माध्यमों द्वारा मेलों और पों के व्यापक कवरेज वस्तुतः आस्था के प्रतीक नहीं है बल्कि आस्था के संदर्भ में भ्रम पैदा करनेवाले हैं।
2. लेखक की दृष्टि में गांधी जी को लोगों ने किस रूप में समझा है तथा उसके क्या परिणाम हुए हैं?
उ०- लेखक की दृष्टि में गांधी जी को लोगों ने बाह्य आवरण से समझा है जिसके परिणामस्वरूप दो अक्तूबर और तीस जनवरी को लोग कुछ आडंबर करते चले आ रहे हैं।
3. गांधी जी के प्रति सच्ची आस्था के स्थान पर लोग कौन-से आडंबर करते चले आ रहे हैं?
उ०- जिन जीवन मूल्यों को अपने जीवन में उतारना चाहिए था उनके लिए मात्र आस्थावान होने की सौगंध खाना सच्ची आस्था नहीं है। गाँधी जी के सिद्धांतों का लेशमात्र प्रभाव भी लोगों के जीवन पर दिखाई नहीं देता। अतः उनके नाम की दुहाई देना आडंबर ही तो है।
4. भारतीय लोगों की आस्था के विषय में लेखक ने क्या कहा / तथा क्यों?
उ०- लेखक का कहना है कि स्वशासन और भारतीयकरण के नारे के बाद भी भारत में सब ओर आस्थाहीनता बढ़ती जा रही है। इसका कारण है यह है कि वास्तविक जीवन में जिस आचरण की अपेक्षा की जाती है उसका हमारे जीवन में सर्वथा अभाव दिखता है।
5. प्रस्तुत गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उ०- शीर्षक महात्मा गांधी और गांधीगिरी।
6. ‘आस्थावान’ शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
उ०- मूल शब्द-आस्था, प्रत्यय-वान
(7) व्यक्ति से अगली इकाई परिवार की है। पति-पत्नी माता-पिता तथा बच्चों से परिवार बनता है। परिवार एक ऐसी इकाई है जो समाज और राष्ट्र से जुड़ी रहती है। अतः परिवार को सुख-समृद्धि और मंगल-कामना के लिए प्रयत्न करना ‘परिवार कल्याण’ कहलाता है।
परिवार को सीमित रखने के प्रयत्न में ही परिवार कल्याण का भाव निहित है। मनुष्य को यह बात भली प्रकार समझ होनी चाहिए कि परिवार को बिना सोचे-समझे बढ़ाते चले जाना मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश की जनसंख्या में अंधाधुंध वृद्धि हो रही है जिसके परिणामस्वरूप परिवार-कल्याण का – कार्य पिछड़ जाता है। परिवार के सभी लोगों को सुख-समृद्धि तभी प्राप्त होगी जब परिवार के सदस्यों की संख्या सीमित होगी। एक व्यक्ति की आय को बाँटने वाले जब कम होंगे तब उसे पाने वालों को अधिक धन की प्राप्ति होगी। यह प्रश्न विचारणीय है कि परिवार-कल्याण को ध्यान में रखते हुए परिवार को छोटा कैसे रखा जाए? इसके लिए आम जनता में चेतना जाग्रत करनी होगी। लोगों को समझाना होगा कि जनसंख्या-वृद्धि से उनके परिवार को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. ‘परिवार’ किनसे बनता है?
(क) पति-पत्नी से
(ख) पति-पत्नी तथा बच्चों से
(ग) पति-पत्नी माता-पिता तथा बच्चों से
(घ) माता-पिता दादा-दादी तथा बच्चों से
2. लेखक के अनुसार ‘परिवार कल्याण’ क्या है?
(क) परिवार को नियंत्रित करना
(ख) परिवार को छोटा रखना
(ग) परिवार का ध्यान रखना
(घ) परिवार की सुख-समृद्धि एवं मंगल-कामना के लिए प्रयत्न करना
3. ‘परिवार-कल्याण’ का भाव किस बात में निहित है?
(क) परिवार के सुख की कामना करने में
(ख) परिवार के विस्तार में
(ग) परिवार को सीमित रखने के प्रयास में
(घ) इनमें से कोई नहीं
4. हमारे देश में परिवार कल्याण का कार्य क्यों पिछड़ रहा है?
(क) सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती
(ख) जनसंख्या में अंधाधुंध वृद्धि हो रही है
(ग) लोगों की मानसिकता नहीं बदली
(घ) इनमें से कोई नहीं
5. प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होना चाहिए?
(क) परिवार-कल्याण
(ख) सीमित-परिवार
(ग) जनसंख्या-वृद्धि के दुष्परिणाम
(घ) छोटा परिवार कैसे रखें?
उत्तर- 1(ग), 2 (घ), 3 (ग), 4. (ख), 5 (क)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. व्यक्ति का कौन-सा निर्णय मूर्खतापूर्ण है तथा परिवार का कल्याण किसमें निहित है?
उ०- बिना सोचे-समझे परिवार को बढ़ाते चले जाना मूर्खतापूर्ण निर्णय है तथा परिवार को सीमित रखने के प्रयत्न में ही परिवार कल्याण का भाव निहित है।
2. हमारे देश में परिवार-कल्याण की क्या स्थिति है तथा लोगों को सुख-समृद्धि कैसे प्राप्त होगी?
उ०- हमारे देश में परिवार-कल्याण का कार्य निरंतर पिछड़ता चला जा रहा है जिसका मुख्य कारण यह है कि हमारे देश की जनसंख्या में अंधाधुंध वृद्धि हो रही है। लोगों को तभी सुख-समृद्धि प्राप्त होगी जब परिवार के सदस्यों की संख्या सीमित होगी।
3. परिवार को छोटा कैसे रखा जा सकता है?
उ०- परिवार को छोटा रखने के लिए लोगों को समझाना होगा कि जनसंख्या-वृद्धि से उनके परिवार को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
4. परिवार-कल्याण से क्या तात्पर्य है तथा परिवार कल्याण का भाव किस बात में निहित है?
उ०- परिवार की सुख-समृद्धि और मंगल-कामना के लिए प्रयत्न करना ‘परिवार-कल्याण’ कहलाता है। परिवार कल्याण का भाव परिवार को सीमित रखने में निहित है।
5. परिवार कल्याण को सफल बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उ०- परिवार कल्याण को सफल बनाने के लिए आम जनता में चेतना का संचार करना होगा तथा जनसंख्या वृद्धिसे होने वाली कठिनाइयों के प्रति लोगों को सचेत करना होगा।
6. ‘सुख-समृद्धि’ पद का विग्रह कीजिए तथा समास का नाम भी लिखिए।
उ०- विग्रह- सुख और समृद्धि, समास- द्वंद्व समास
(8) मनुष्य जन्म से ही अहंकार का इतना विशाल बोझ लेकर आता है कि उसकी दृष्टि सदैव दूसरों की बुराइयों पर हो टिकती है। आत्मनिरीक्षण को भुलाकर साधारण मानव केवल परछिद्रान्वेषण में ही अपना जीवन बिताना चाहता है। इसके मूल में उसकी ईष्यों को दाहक दुष्प्रवृत्ति कार्यशील रहती है। दूसरे को सहज उन्नति को वह अपनी ईष्यों के वशीभूत होकर पचा नहीं पाता और उसके गुणों को अनदेखा करके केवल दोषों और दुर्गुणों को हो प्रचारित करने लगता है। इस प्रक्रिया में वह इस तथ्य को भी विस्मृत कर बैठता है कि ईर्ष्या का दाहक स्वरूप स्वय उसके समय स्वास्थ्य और सद्वृत्तियों के लिए कितना विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। परनिंदा को हमारे शास्त्रों में पाप बताया गया है। वास्तव में मनुष्य अपनी न्यूनताओं अपने दुर्गुणों की ओर दृष्टि उठाकर देखना भी नहीं चाहता क्योंकि स्वय को पहचानने की यह प्रक्रिया उसके लिए बहुत कष्टकारी है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. अहंकार के कारण मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(क) वह अपने को सर्वश्रेष्ठ समझता है।
(ख) उसकी बात सभी मानते हैं।
(ग) वह दूसरों के दोष देखता रहता है।
(घ) वह अपने गुणों का बखान करता है।
2. दूसरों की उन्नति को मनुष्य क्यों नहीं देखना चाहता?
(क) स्वय धनवान होने के कारण
(ख) अपने बड़प्पन के कारण
(ग) स्वयं गुणी होने के कारण
(घ) ईष्यां भाव के कारण
3. स्वास्थ्य और सदाचार नष्ट हो जाते हैं-
(क) ईष्यों के वश में होने पर
(ख) क्रोध के वश में होने पर
(ग) स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने पर
(घ) अनैतिक कार्य करने पर
4. अहंकार दूर करने के लिए जरूरी है-
(क) मन को शांत रखना
(ख) आत्मनिरीक्षण करना
(ग) परछिद्रान्वेषण से बचना
(घ) निरंतर चिंतन-मनन करना
5. गठ्यांश में किस-किस उपसर्ग से बने शब्दों की अधिकता है?
(क) पर
(ख) दुर्
(ग) सद्
(घ) अहं
उत्तर-1(ग), 2. (घ),3 (क), 4(ख), 5 (क)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. परछिद्रान्वेषण का दुष्परिणाम क्या होता है?
उ०- दूसरों के अवगुणों पर ध्यान देने एवं ईर्ष्या के दृष्प्रवृत्तियों के परिणामस्वरूप मनुष्य इस तथ्य को भुला देता है कि ईष्यों का दाहक स्वरूप स्वयं उसके समय स्वास्थ्य और सद्वृत्तियों के लिए कितना विनाशकारी सिद्ध हो रहा है।
2. सामान्यजन किन बातों में अपना जीवन बिताना चाहता है तथा इसका मूल कारण क्या है?
उ०- सामान्यजन आत्मनिरीक्षण को भुलाकर केवल परछिद्रान्वेषण में हो अपना जीवन बिताना चाहता है। इसका मूल कारण है- उसकी ईष्यों की दाहक दुष्प्रवृत्ति। दूसरे की उन्नति को वह अपनी ईर्ष्या के कारण पचा नहीं पाता। परिणामस्वरूप उसके गुणों पर ध्यान न देकर केवल उसके अवगुणों को ही प्रचारित करने लगता है।
3. परनिंदा के बारे में हमारे शास्त्रों में क्या कहा गया है तथा इससे व्यक्ति कैसे मुक्त हो सकता है?
उ०- हमारे शास्त्रों में परनिंदा को पाप बताया गया है। इससे मुक्ति का उपाय है कि व्यक्ति को दूसरों के दोषों को न देखकर अपने दुर्गुणों एवं अपनी कमजोरियों की ओर देखना चाहिए और उन्हें दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
4. मनुष्य की दृष्टि सता दूसरों की बुराइयों पर ही क्यों पड़ती है?
उ०- मनुष्य जन्म से हो अहंकार का इतना विशाल बोझ लेकर आता है कि उसकी दृष्टि सदा दूसरों की बुराइयों पर ही पड़ती है। आत्मनिरिक्षण को भुलाकर मनुष्य कंवल पदछिद्रान्वेषण में ही लगा रहता है।
5. ईर्ष्या के क्या दुष्परिणाम सामने आते हैं?
उ०- दूसरे की उन्नति को न पचा पाना मनुष्य के लिए उसके अपने स्वास्थ्य समय और सद्वृत्तियों के लिए विनाशकारी साबित होता है।
6. ‘दुष्प्रवृत्ति’ शब्द से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग करके लिखिए।
उ०- उपसर्ग-दु, मूलशब्द-प्रवृत्ति
(9) मानव जीवन में कुछ महान कर पाने की अदम्य लालसा ही महत्वाकांक्षा है। इस लालसा की पूर्ति का मार्ग परस्पर होड़ से जन्म लेता है। किसी अन्य से आगे बढ़ पाने को आकांक्षा बिना ‘अन्य’ के प्रति कठोर हुए नहीं पूर्ण की जा सकती। मनुष्य में आगे बढ़ने की जो भी स्वाभाविक इच्छा जन्म लेती है उसके साथ अप्रत्यक्ष रूप से अन्य मानवों को पीछे छोड़ने की अदृश्य इच्छा भी जुड़ी रहती है। यदि सहृदय होकर इस पर विचार किया जाए तो इस प्रकार की समस्त प्रतिद्वंद्विता निष्ठुरता है दूसरे के प्रति निर्ममता है किंतु महानता को पाने के लिए यह निर्ममता या निष्ठुरता एक अनिवार्य दुर्गुण है। इसके अभाव में उस निष्ठा संकल्प या दृढ़ता की कल्पना नहीं को जा सकती जो मनुष्य को आगे बढ़कर अनछुई ऊँचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. मनुष्य में महत्वाकांक्षा क्यों होती है?
(क) स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने को लालसा से
(ख) दूसरों को पीछे छोड़ देने की ललक से
(ग) एक दूसरे से आगे बढ़ने को भावना से
(घ) दूसरों से ईर्ष्या करने के कारण
2. महत्वाकांक्षा क्या है?
(क) महत्वपूर्ण आकांक्षा
(ख) जो आकांक्षा दूसरों के लिए की जाती है
(ग) जीवन में महान कार्य करने की इच्छा
(घ) जिस आकांक्षा या इच्छा का कोई महत्व न हो
3. दुर्गुण होते हुए भी निर्ममता को जरूरी माना गया है-
(क) शत्रु से टक्कर लेने के लिए
(ख) महान बनने के लिए
(ग) महत्वाकांक्षा के लिए
(घ) लालसा की पूर्ति के लिए
4. गद्यांश का शीर्षक हो सकता है-
(क) निष्ठुरता
(ग) लालसा
(ख) महत्वाकांक्षा
(घ) आकांक्षा
5.’ऊँचाइयों को छूने’ के लिए प्रेरक गुण है-
(क) दृढ़ संकल्प
(ख) निर्ममता
(ग) महत्वाकांक्षा
(घ) कल्पनाशीलता
उत्तर- 1 (ग), 2 (ग),3 (ख), 4 (ख),5 (ग)
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. महत्वाकांक्षा का उदय कैसे होता है?
उ०- महत्वाकांक्षा एक ऐसी लालसा है जिसका जन्म परस्पर होड़ में होता है। मनुष्य जब यह सोचना प्रारम्भ करता है कि मुझे दूसरों से आगे बढ़ना है और दूसरे को अपने से पोछे छोड़ देना है तब महत्वाकांक्षा का जन्म होता है|
2. सहृदय होकर विचार किया जाए तो महत्वाकांक्षा क्या प्रतीत होती है तथा यह क्यों जरूरी है?
उ०- वस्तुतः महत्वाकांक्षा का जन्म प्रतिद्वद्विता के कारण होता है। यदि सहृदय होकर विचार किया जाए तो यह प्रतिद्वंद्विता निष्ठुरता प्रतीत होती है। महत्वाकांक्षा में व्यक्ति दूसरे के प्रति निष्ठुर हो जाता है लेकिन महानता को प्राप्त करने के लिए ऐसी निष्ठुरता जरूरी है।
3. निष्ठुरता एवं निर्ममता के अभाव में क्या संभव नहीं है?
उ०- निष्ठुरता एवं निर्ममता के अभाव में उस निष्ठा संकल्प या दृढ़ता को कल्पना नहीं की जा सकती जो मनुष्य को आगे बढ़कर अनछुई ऊँचाइयों को छूने के लिए प्रेरित करती है।
4. महत्वाकांक्षा क्या है? यह मनुष्य में होनी चाहिए अथवा नहीं, अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उ०- मानव जीवन में कुछ महान कर पाने की अदम्य लालसा ही महत्वाकांक्षा है। मेरे विचार से महत्वाकांक्षा का होना बहुत जरूरी है तभी मनुष्य अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएगा।
5. मनुष्य की महानता के रास्ते में कौन-से दुर्गुण आते हैं?
उ०- मनुष्य की श्रेष्ठता और महानता के रास्ते में निर्ममता और निष्ठुरता जैसे दुर्गुण अवरोध बनते हैं।
6. ‘अनिवार्य’ शब्द से भाववाचक संज्ञा बनाइए।
उ०- अनिवार्यता
(10) यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मानवीय गुणों का अधिकाधिक विकास विपरीत परिस्थितियों में ही होता है। जीवन में सर्वत्र इस सत्य के उदाहरण भरे हुए हैं। कष्ट और पीड़ा आंतरिक वृत्तियों के परिशोधन क साथ ही एक ऐसी आंतरिक दृढ़ता को जन्म देते हैं जो मनुष्य को तप्त स्वर्ण की भाँति खरा बनाता है। विपत्तियों के पहाड़ से टकराकर उसका बल बढ़ता है। हृदय में ऐसी अद्भुत वृत्ति का जन्म होता है कि एक बार कष्टों में जूझकर फिर वह उनको खेल समझने लगता है। उसके हृदय में विपत्तियों को ठोकर मारकर अपना मार्ग बना लेन की वीरता उत्पन्न हो जाती है। मन को भाँति ही शरीर की दृढ़ता शारीरिक श्रम के द्वारा आती है। शारीरिक श्रम शरीर को बलिष्ठ बनाता है। विपत्तियों तथा परिश्रम की अग्नि में तपकर शरीर का लौह इस्पात बन जाता है। जब एक शायर ने कहा कि ‘मुश्किलें इतनी पड़ीं मुझ पर कि आसाँ हो गईं’, तो वह इस सत्य से परिचित था। चारित्रिक दृढ़ता के लिए जो कार्य कष्टों का आधिक्य करता है शारीरिक दृढ़ता के लिए वही कार्य श्रम करता है। दोनों ही ऐसे हथौड़े हैं, जो पीट-पीटकर शरीर और मन में इस्पाती दृढ़ता को जन्म देते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-
1. विपरीत परिस्थितियाँ कारण हैं-
(क) अनुकूल परिस्थितियों को रोकने का
(ख) समस्या समाधान का
(ग) सामाजिक चुनौतियाँ स्वीकारने का
(घ) मानवीय गुणों के विकास का
2. मनुष्य को सोने जैसा शुद्ध बनाने में सहायक है-
(क) शरीर की दृढ़ता
(ख) मन की दृढ़ता
(ग) आंतरिक दृढ़ता
(घ) विपत्तियों से टकराव
3. विपत्तियों के बीच अपना मार्ग बना लेने की क्षमता कब उत्पन्न होती है?
(क) बाधाओं से बचकर
(ख) कष्टों से खेलकर
(ग) कष्टों से जूझकर
(घ) साधन-संपन्न बनकर
4. ‘लौह इस्पात बन जाता है।’- कथन का आशय है-
(क) दुर्बल सबल बन जाता है।
(ख) बलहीन बलवान बन जाता है।
(ग) सबल, अतिसबल बन जाता है।
(घ) निर्बल प्रबल बन जाता है।
5. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है-
(क) मन और शरीर
(ख) मानसिक पीड़ा और शारीरिक कष्ट
(ग) मन और शरीर की दृढ़ता
(घ) मानव का विकास
उत्तर- 1 (घ), 2 (ग), 3. (ग), 4 (ग), 5 (ग)
लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-
1. जो व्यक्ति विपत्तियों से टक्कर लेता है, उसका हृदय कैसा हो जाता है?
उ०- जो व्यक्ति विपत्तियों से टक्कर लेता है. वह बलवान बन जाता है। उसके हृदय में ऐसी अद्भुत वृत्ति का जन्म होता है कि एक बार कष्टों से जूझने के बाद फिर वह उनको खेल समझने लगता है। उसके हृदय में विपत्तियों को ठोकर मारकर अपना मार्ग बना लेने की वीरता उत्पन्न हो जाती है।
2. चारित्रिक दृढ़ता एवं शारीरिक दृढ़ता के लिए क्या आवश्यक है?
उ०- कष्टों की अधिकता चारित्रिक दृढ़ता का विकास करती है तथा दूसरी ओर शारीरिक दृढता के लिए वही कार्य परिश्रम करता है। वस्तुतः दोनों ही ऐसे हथौड़े हैं, जो पीट-पीटकर शरीर और मन को इस्पाती बना दत हैं।
3. कौन-सा तथ्य सर्वविदित है?
उ०- यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मानवीय गुणों का अधिकाधिक विकास विपरीत परिस्थितियों में ही होता है।
4. मनुष्य को तप्त स्वर्ण की भाँति कौन बनाता है?
उ०- कष्ट और पीड़ा जैसी विपरीत परिस्थितियाँ आंतरिक वृत्तियों के परिशोधन के साथ ही ऐसी आंतरिक दृढ़ता प्रदान करती हैं जो मनुष्य को तप्त स्वर्ण की भाँति खरा बना देती हैं।
5. शरीर लौह इस्पात कब बनता है?
उ०- वित्तियों तथा परिश्रम की अग्नि में तपकर शरीर लौह इस्पात बनता है।
6. ‘शारीरिक’ शब्द से मूल शब्द एवं प्रत्यय अलग करके लिखिए।
उ०- मूलशब्द-शरीर, प्रत्यय-इक
अभ्यास कार्य –
(1) हमारे भारत का किसान इस दृष्टि से सच्चा देशप्रमी है कि वह सारे राष्ट्र का पालन कर रहा है। वैज्ञानिक दृष्टि में उन्नति के फलस्वरूप हमारे कृषि वैज्ञानिक उत्तम किस्म के नए बीज तथा ज्यादा अनाज देन वाली फ़सलें उगाने के लिए नई-नई तकनीकों के अनुसंधान में लोन है। अब इन कृषि वैज्ञानिकों के कारण उत्तम बीज रासायनिक खाद तथा खेती के आधुनिक औजारों की मदद से खेती-बाड़ी के काम को बढ़ाया जा रहा है। इस प्रकार आज भारतीय कृषक खाद्य समस्या का समाधान करने के लिए तैयार हैं। अब हमारे देश में कृषि को अन्य उद्योगों की भाँति माना जा रहा है और सरकार का सदा यही प्रबल रहता है कि खेती के उद्योगों को ही प्राथमिकता प्रदान की जाए। इस क्रम में सरकार किसानों को खेती के काम में बढ़ावा देने के लिए सस्ते व्याज पर ऋण देने के लिए प्रयास कर रही है। कृषि कार्य के लिए वह और दूसरी सुविधाएँ भी किसानों को देने कीकोशिश कर रही है।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
(1) किसान को लेखक ने ‘राष्ट्रप्रेमी’ की संज्ञा प्रदान की है क्योंकि-
(क) किसान कड़ी मेहनत करता है।
(ख) हमारे देश में सबसे अधिक जनसंख्या किसानों की है।
(ग) अन्न उपवाकर सारे देश का पेट भरता है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
2. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य कृषि-वैज्ञानिकों ने नहीं किया है?
(क) उत्तम बीज उपलब्ध कराना।
(ख) रासायनिक खादें उपलब्ध कराना।
(ग) खेती के आधुनिक औजार उपलब्ध कराना।
(घ) किसानों को धन उपलब्ध कराना।
3. आज कृषक किस बात के लिए तैयार है?
(क) देश की खाद्य समस्या के समाधान के लिए
(ख) अच्छे बीजों का प्रयोग करने के लिए
(ग) नई-नई तकनीकों को अपनाने के लिए
(घ) इनमें सभी
4. किसानों की सहायता सरकार किस रूप में कर रही है?
(क) उनका लगान माफ़ करके
(ख) उन्हें सस्ते ब्याज पर ऋण देने का प्रयास करक
(ग) उनसे कम टैक्स वसूल करके
(घ) इनमें से कोई नहीं
5. ‘देशप्रेमी’ शब्द का विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए।
(क) देश का प्रेमी संबंध तत्पुरुष
(ख) देश से प्रेमी अपादान तत्पुरुष
(घ) देश पर प्रेमी अधिकरण तत्पुरुष
(ग) देश के लिए प्रेमी संप्रदान तत्पुरुष
लघुत्तरीय प्रश्न
1. कृषि वैज्ञानिक किस तरह के कार्यों में लीन हैं तथा उनके कार्यों के क्या परिणाम सामने आए हैं?
2. आज किसान खाद्य समस्या के समाधान के लिए किस प्रकार तैयार है?
3. खेती को उद्योगों को भाँति प्रमुखता देने में सरकार की क्या भूमिका है?
4. लेखक ने किसान को राष्ट्रप्रेमी क्यों कहा है?
5. कृषि’ शब्द का वर्ण-विच्छेद कीजिए।
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) दुनिया को हर एक चीज हमें शिक्षा देती है। एक दिन में धूप में घूम रहा था। चारों तरफ़ बड़े-बड़े हर वृक्ष दिखाई दे रहे थे। मैं सोचने लगा कि ‘ऊपर से इतनी कड़ी धूप पड़ रही है फिर भी ये वृक्ष हरे कैसे है?’ वे वृक्ष मेरे गुरु बन गए। मेरी समझ में आ गया कि जो वृक्ष ऊपर से इतने हरे-भरे दिखते हैं, उनकी जड़ जमीन में गहराई तक पहुँची है और वहाँ से उन्हें पानी मिल रहा है। इस तरह अंदर से पानी और ऊपर से धूप दोनों की कृपा से यह सुंदर हरा रंग उन्हें मिला है। इसी तरह हमें अंदर से भक्ति का पानी और बाहर से तपश्चर्या की धूप मिले तो हम भी पेड़ों जैसे हरे-भरे हो जाएँ। हम ज्ञान की दृष्टि से परिश्रम को नहीं देखते इसलिए उसमें तकलीफ़ मालूम होती है। ऐसे लोगों को आरोग्य और ज्ञान कभी मिलनेवाला नहीं।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. ‘वृक्ष’ गुरु कैसे बन गए?
(क) वृक्षों को देखकर लेखक का आनंद लेना।
(ख) वृक्षों को देखकर यह शिक्षा मिली कि वे हरे क्यों होते हैं।
(ग) वृक्षों को देखकर लेखक के मन में प्रकृति के प्रति प्रेम जगा।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
2. वृक्षों के हरे होने का लेखक को क्या कारण समझ में आया?
(क) वृक्षों के पत्ते हरे होते हैं।
(ख) वृक्षों को ऊपर से धूप मिलती है।
(ग) वृक्षों को जड़ों द्वारा जमीन से पानी मिलता है।
(घ) ऊपर से धूप और जमीन से पानी मिलता है।
3. ‘हम भी पेड़ों की तरह हरे-भरे हो जाएँ’ से लेखक का तात्पर्य है-
(क) हम भी धूप और पानी में खड़े हो सकते हैं।
(ख) हम भी वृक्षों की तरह मजबूत हो सकते हैं।
(ग) हमारी आयु भी वृक्षों की तरह लंबी हो सकती है।
(घ) हम भी आनंद और उल्लास से भरा जीवन जी सकते हैं।
4. ‘हम ज्ञान की दृष्टि से परिश्रम को नहीं देखते।’ पंक्ति से लेखक का तात्पर्य है-
(क) पढ़-लिखकर परिश्रम नहीं करते
(ख) ज्ञानी लोगों की तरह परिश्रम नहीं करते
(ग) समझदारी के साथ उपयोगी श्रम नहीं करते
(घ) इनमें से कोई नहीं
5. ‘दुनिया की हर एक चीज हमें शिक्षा देती है।’ यह अर्थ के आधार पर किस प्रकार का वाक्य है?
(क) नकारात्मक वाक्य
(ख) निषेधात्मक वाक्य
(ग) विधानवाचक वाक्य
(घ) प्रश्नवाचक वाक्य
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. वृक्षों के हरे होने का क्या कारण लेखक को समझ में आया?
2. हम भी पेड़ों की तरह हरे-भरे कैसे हो सकते हैं?
3. किस तरह के लोगों को आरोग्य तथा ज्ञान नहीं मिल सकते?
4. हमें शिक्षा कहाँ से मिलती है तथा लेखक को शिक्षा कहाँ से मिली?
5. ‘एक दिन में धूप में घूम रहा था।’ रचना की दृष्टि से यह किस प्रकार का वाक्य है?
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(3) हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल स्वर्ण-युग माना जाता है। महाकवि सूरदास, तुलसीदास तथा कबीर की कविता आज भी जनसाधारण के कंठ का हार बनी हुई है। सूरदास ने अपने आराध्य श्री कृष्ण को कविता का आधार बनाया है जबकि तुलसीदास ने श्री राम को। कबीर निर्गुण भक्ति-भावना के कवि थे। इन सभी में भक्तिकाल के महान भक्त-कवि सूरदास अपना विशेष स्थान रखते हैं। महात्मा सूरदास की कविता में जो सरसता लालित्य तथा रस है, वह अन्य किसी कवि की कविता में नहीं है। उनकी कविता से अलौकिक रस की प्रतीति होने लगती है।
महात्मा सूरदास जी का जन्म सन 1478 के लगभग माना जाता है। इनका जन्म स्थान ‘रुनकता’ (मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित) है। कुछ लोगों की मान्यता है कि ये दिल्ली के समीपवर्ती गाँव ‘सीही’ में पैदा हुए थे। सूरदास जी सारस्वत ब्राह्मण थे। इनके पिता जी का नाम रामदास था। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘साहित्य लहरी’ के एक पद से स्पष्ट होता है कि ये ब्रह्मभट्ट थे और चंदबरदाई के वंशज थे। इनके पदों से प्रभावित होकर ही महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने इन्हें दीक्षा दी थी। कहते हैं महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की प्रेरणा से ही सूरदास जी ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सूरसागर’ की रचना की थी। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के पुत्र विठ्ठलनाथ ने जिस ‘अष्टछाप’ की संयोजना की थी उसमें सूरदास जी का अग्रणी स्थान था।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को ‘स्वर्ण-युग’ माना जाता है क्योंकि-
(क) उस काल में देश में सोना बहुत था।
(ख) सोने का व्यापार उस काल में सबसे अधिक होता था।
(ग) कवियों ने धन-संपत्ति वाले राजाओं की प्रशंसा में काव्य लिखा।
(घ) श्रेष्ठतम भक्ति-साहित्य की रचना हुई और उच्चतम कोटि के भक्तों का जन्म हुआ।
2. निम्नलिखित में से कौन से कवि भक्तिकाल के कवि नहीं हैं?
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) भूषण
(घ) कबीरदास
3. आराध्य कौन होता है?
(क) जो आराधना में विश्वास करता है।
(ख) जो स्वयं आराधना करता है।
(घ) जो ध्यान में मग्न रहता है।
(ग) जिसकी आराधना को जाती है।
4. सूरदास को किस से दीक्षा प्राप्त हुई थी?
(क) गोस्वामी विठ्ठलनाथ जी से
(ख) गोस्वामी तुलसीदास जी से
(ग) महाप्रभु श्रीकृष्ण जी से
(घ) वल्लभाचार्य जी से
5. निम्नलिखित में से कौन-सा गुण सूरदास की कविता में नहीं है?
(क) सरसता
(ख) वीरता
(ग) लालित्य
(घ) रस
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. सूरदास तथा तुलसीदास ने अपनी कविता का आधार किसे बनाया है तथा कबीर किस प्रकार के कवि थे?
2. सूरदास की कविता में ऐसा क्या है जो दूसरे कवियों की कविता में नहीं मिलता?
3. संक्षेप में सूरदास का परिचय दीजिए।
4. भक्तिकाल को स्वर्ण युग क्या माना जाता है?
5. सूरदास के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम क्या है?
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(4) आत्मनिर्भरता का अर्थ है- अपने पर निर्भर रहना। जो मनुष्य दूसरों के मुँह नहीं ताकते वे ही आत्मनिर्भर होते हैं। आत्मनिर्भरता का राष्ट्रीय स्तर पर भी अर्थ है- निज समाज तथा राष्ट्र द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूर्ति स्वयं करना। व्यक्ति समाज तथा राष्ट्र में आत्मविश्वास की भावना आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। स्वावलंबन, जीवन में सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वावलंबी अवश्य होना चाहिए। स्वावलंबनी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र है। यह वीरों तथा कर्मयोगियों की सर्वांगीण उन्नति का आधार है। स्वावलंबन की परिभाषा हम अनेक उदाहरणों से समझ सकते हैं। जब बच्चा छोटा होता है तो वह पूर्णतया अपनी माँ पर आश्रित होता है। कुछ समय बाद वह अपने हाथों से चीज़ों को उठाता है, खाता है तथा खेलने में उनका प्रयोग करता है उसमें उसे परम आनंद प्राप्त होता है। शिशु की यह प्रसन्नता स्वावलंबन का आनंद है। अतः अपने आत्मविश्वास को जाग्रत कर उसे मजबूत बनाओ। हमें स्वावलंबन के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। पेड़-पौधों व पशु-पक्षियों में तो स्वावलंबन कूट-कूटकर भरा है। वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। सूर्य से प्रकाश धरती से जल व अन्य खनिज ग्रहण कर पौधे स्वतः बढ़ते जाते हैं। चींटी जैसा नन्हा-सा जीव भी स्वावलंबन का महत्व समझता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1 किन मनुष्यों को आत्मनिर्भर कहा जा सकता है?
(क) जो आत्मज्ञान के लिए साधना करते हैं।
(ख) जो आत्मा-परमात्मा का अंतर समझ जाते हैं।
(ग) जो अपने आत्मसम्मान का ध्यान रखते हैं।
(घ) जो किसी भी कार्य के लिए दूसरों का मुँह नहीं ताकते।
2. किसी भी समाज और राष्ट्र की सफलता की पहली सीढ़ी क्या है?
(क) देश के लोग देशभक्त हो।
(ख) देश के पास अपार धन हो।
(ग) देश के नागरिक स्वावलंबी हो।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
3. शिशु को आनंद कब प्राप्त होता है?
(क) जब वह अपनी माँ पर आश्रित होता है।
(ख) जब उसकी माँ उसे प्यार करती है।
(ग) जब वह अपना कार्य स्वयं करने लगता है।
(घ) जब वह अपने दोस्तों के साथ समय बिताता है।
4. पेड़-पौधे किस प्रकार हमें स्वावलंबी होने की शिक्षा देते हैं?
(क) हमारे लिए फल देकर
(ख) चारों ओर हरियाली फैलाकर
(ग) अपना भोजन स्वयं बनाकर
(घ) तीनों में से कोई नहीं
5. ‘आत्मनिर्भरता’ शब्द का विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए।
(क) आत्म (स्वयं) पर निर्भर अधिकरण तत्पुरुष समास
(ख) आत्मा के समान निर्भर कर्मधारय समास
(ग) आत्मा और निर्भरता द्वंद्व समास
(घ) आत्मा की निर्भरता संबंध तत्पुरुष
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. राष्ट्रीय स्तर पर आत्मनिर्भरता का क्या अर्थ है?
2. ‘स्वावलंबन जीवन में सफलता की पहली सीढ़ी है।’ कथन से लेखक का क्या आशय है?
3. प्रकृति में स्वावलंबन के कौन-कौन से उदाहरण देखने को मिलते हैं?
4. किसमें स्वावलंबन कूट-कूटकर भरा है?
5. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
6. ‘जो मनुष्य दूसरों के मुँह नहीं ताकते, वे ही आत्मनिर्भर होते हैं।’ वाक्य को सरल वाक्य में बदलिए।
(5)वन प्रकृति की अमूल्य संपदा हैं क्योंकि मानव जीवन इनसे अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इनका सभ्यता एवं संस्कृति से भी अटूट संबंध है। आदिमानव का जन्म व उसकी सभ्यता-संस्कृति का विकास इन्हीं वनों में हुआ है। उसको खाद्य सामग्री और आवास की समस्या भी वनों ने ही सुलझाई है। मानव और अन्य वन्य – जीव-जंतुओं के जीवन की रक्षा में भी वनों का हाथ रहा है। हमारे ग्रंथ उपनिषद् और आरण्यक आदि वनों में रचे गए। महाकवि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ रामायण भी तपोवन में ही रूपाकार पा सका था। हमें वनों से ही औषधियाँ मिलती हैं। विश्व की ऐसी कोई सभ्यता या संस्कृति नहीं है जिसने वनों के मूल्य को न आँका हो उनकी महत्ता को न समझा हो। इसलिए आज वन-संरक्षण की आवश्यकता है। कागज बनाने तथा मकान के लिए लकड़ी वनों से ही प्राप्त होती है। पेड़-पौधे वर्षा का कारण बनकर पर्यावरण की रक्षा करते हैं और साथ-साथ इनमें कार्बन-डाइऑक्साइड को शोषित करने की शक्ति भी होती है। सिंचाई और पेयजल की समस्या का समाधान वनों के संरक्षण से ही संभव है। वन हैं तो नदियाँ भी अपने भीतर जल की अमृत धारा सँजोकर प्रवाहित कर रही हैं। वन समाप्त होने से धरती बंजर व रेगिस्तान बन जाएगी।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. वनों ने आदिमानव की किस प्रकार मदद की?
(क) खाद्य सामग्री उपलब्ध कराकर
(ख) आवास की सुविधा उपलब्ध कराकर
(घ) इनमें से कोई नहीं
(ग) खाद्य और आवास दोनों की सुविधा उपलब्ध कराकर
2. वन प्रकृति की अमूल्य संपदा है क्योंकि-
(क) वनों के कारण जीव जंतुओं को आवास मिलता है।
(ख) जीव-जंतुओं को भोजन मिलता है।
(ग) मानव जीवन इनसे अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
3. निम्नलिखित में से किसका संबंध वनों से नहीं है?
(क) औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
(ख) कागज़ तथा मकान बनाने के लिए लकड़ी प्राप्त होती है।
(ग) पर्यावरण की रक्षा करने में सहायक होते हैं।
(घ) धरती को बंजर बनाते हैं।
4. पेड़-पौधे पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार करते हैं?
(क) वायु में कार्बन-डाइऑक्साइड को शोषित कर
(ख) घनी छाया प्रदान कर
(ग) जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान कर
(घ) इनमें सभी
5. औषधियों में कौन-सा प्रत्यय है?
(ख) आँ
(ग) याँ
(घ) ईयाँ
(क) इयाँ
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. आदिमानव का वनों के साथ किस रूप में संबध रहा है?
2. मानव जीवन में वनों का महत्व किन-किन रूपों में दिखाई देता है?
3. वन संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
4. सिचाई की समस्या का समाधान कैसे संभव है?
5. पर्यावरण संतुलन में वृक्षों की क्या भूमिका है?
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(6) मानव एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज में रहकर ही वह अपने व्यक्तित्व की सर्वतोमुखी उन्नति कर सकता है। मानव समाज की इकाई है इसलिए उसके मंगल कृत्य समाज के ऊपर नहीं हैं। एक आदर्श नागरिक हमेशा परोपकार करने के लिए उद्यत रहता है। उसे किसी दूसरे व्यक्ति का हित करने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती जब भी कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि उसका समाज संकटों से घिर जाता है तो वह अपने निजी मंगल की बात को विस्मृत कर अपने समाज के लिए अपना सब कुछ समर्पित करने को तैयार हो जाता है। सामाजिक प्रगति एवं विकास के लिए यह अत्यावश्यक है कि मनुष्य निजी स्वार्थ को सर्वथा भूल जाए तथा अपने समाज की सेवा एवं मंगल कार्य में प्रवृत्त हो जाए। असहायों और दीन-निर्धनों के प्रति करुणा को भावना दुखो लोगों के प्रति सहानुभूति का भाव तथा सहयोग और कर्तव्य पालन का आचरण आदि गुण और विशेषताएँ एक आदर्श नागरिक के महत्व को व्यक्त करती हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1 ‘मानव एक सामाजिक प्राणी है।’ कौन-सा तथ्य व्यक्त करता है?
(क) मानव समाज में रहता है और समाज के अनुसार कार्य करता है।
(ख) आदिमानव सामाजिक प्राणी था।
(ग) मानव समाज को बहिष्कृत करता है।
(घ) उपर्युक्त सभी।
2. एक आदर्श नागरिक का धर्म क्या है?
(क) लोगों से द्वेष भाव रखना
(ख) भिखारियों को भीख न देना
(ग) परोपकार करना
(घ) इनमें से कोई नहीं
3. अगर कोई व्यक्ति समाज से अलग कार्य करता है तो-
(क) समाज उसे सम्मान देता है।
(ख) समाज उसे बहिष्कृत कर देता है।
(ग) समाज उससे कुछ नहीं कहता।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
4. आदर्श नागरिक की क्या विशेषता है?
(क) वह दीन-दुखियों पर दया करता है।
(ख) निर्धनों के प्रति करुणा का भाव रखता है।
(ग) सहयोग और कर्तव्य पालन का आचरण करता है।
(घ) उपर्युक्त सभी।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लिए कौन-सा शीर्षक उपयुक्त है?
(क) मानव और समाज
(ख) मानव एक सामाजिक प्राणी
(ग) आदर्श मानव
(घ) सामाजिक प्रगति
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. एक आदर्श नागरिक दूसरों की भलाई के लिए क्या-क्या कार्य कर सकता है?
2. सामाजिक प्रगति एवं विकास के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
3. आदर्श नागरिक के महत्व को बतानेवाले कौन से गुण है?
4. मानव को लेखक ने कौन-सा प्राणी बताया है तथा समाज में रहकर मानव क्या कर सकता है?
5. गद्यांश के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है?
6. ‘सामाजिक’ शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।
(7) जीवन में साहित्य की उपयोगिता अनिवार्य है। साहित्य मानव जीवन को वाणी देने के साथ समाज का पथ-प्रदर्शन भी करता है। उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो साहित्य के अध्ययन से अनेक लाभ हैं। साहित्य मानव-जीवन के अतीत का ज्ञान कराता है वर्तमान का यथार्थ चित्रण करता है और भविष्य के निर्माण = की प्रेरणा भी देता है। प्रत्येक आने वाला समाज और युग इससे प्रेरणा लेता है। साहित्य ही हमें मनुष्य की कोटि में बनाए रखता है। किसी समाज का साहित्य क्षीण होने लगे तो वह समाज भी रसातल में चला जाता है। साहित्य समाज के साथ कार्य करते हुए भी समाज के लिए प्रकाश-स्तंभ का कार्य करता है। साहित्य का आलोक पुंज सूर्य की भाँति समाज के समस्त विकारों का हरण करता है तभी वह सत् साहित्य कहलाने का अधिकारी होता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. आने वाला समाज और युग किससे प्रेरित होता है?
(क) मानव जीवन से
(ख) साहित्य से
(ग) महापुरुषों से
(घ) भूत काल से
2. साहित्य मानव-जीवन के लिए क्या नहीं करता है?
(क) साहित्य मनुष्य को धन कमाने की शिक्षा देता है।
(ख) साहित्य मानव जीवन के अतीत का ज्ञान कराता है।
(ग) वर्तमान का यथार्थ चित्रण करता है।
(घ) भविष्य के निर्माण की प्रेरणा देता है।
3. किसी समाज का साहित्य क्षीण हो जाने पर उस समाज की क्या दशा होती है?
(क) उन्नति करता है।
(ख) पतन हो जाता है।
(ग) कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(घ) उपर्युक्त सभी।
4. समाज के विकारों का हरण कौन करता है?
(क) राष्ट्रनेता
(ख) समाज सेवक
(ग) सत् साहित्य
(घ) समाज के कर्णधार
5. ‘पथ-प्रदर्शन’ समस्तपद का संबंध तत्पुरुष समास के लिए सही विग्रह है-
(क) पथ और प्रदर्शक
(ख) पथ पर प्रदर्शक
(ग) पथ का प्रदर्शन
(घ) पथ में प्रदर्शन
लघुत्तरीय प्रश्न–
1 साहित्य’सत् साहित्य’ कहलाने का अधिकारी कब होता है?
2. साहित्य समाज के लिए क्या कार्य करता है?
3. मानव किस प्रकार सर्वतोमुखी उन्नति कर सकता है?
4. किसी समाज का साहित्य जब क्षीण होने लगता है तब क्या होता है?
5. उक्त गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए।
6. ‘जीवन में साहित्य की उपयोगिता अनिवार्य है।’ वाक्य के रेखांकित पदबंध का नाम लिखिए।
(8) धरती पर जीवन के लिए अत्यंत जरूरी तत्वों में से जल और ऑक्सीजन प्रमुख हैं और हम यह जानते हैं धरती पर ऑक्सीजन के मुख्य स्रोत पेड़ ही हैं। वैसे तो सभी वृक्ष दिन के समय ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है तथा मनुष्य के लिए हानिकारक कार्बन-डाइऑक्साइड गैस लेते हैं। सूर्य के प्रकाश तथा कार्बन-डाइऑक्साइड की उपस्थिति में पेड़-पौधे अपना भोजन बनाते है। अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने में भी पेड़ों की अहम् भूमिका होती है जिससे त्वचा कैंसर तथा अन्य बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। आँवला, हरड़, बहेड़ा, ऐलोवेरा, अर्जुन, अशोक, नीम, जामुन आदि प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधियाँ ही पेड़-पौधों से ही प्राप्त होती हैं। पेड़-पौधों से हमें फल, सब्ज़ियाँ, अन्न आदि मिलते है, जो हमारे भोजन के प्रमुख अंग हैं। न सिर्फ मानव जाति बल्कि पशु पक्षी भी पड़-पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. जीवन के अत्यंत ज़रूरी तत्वों में से कौन से तत्व प्रमुख हैं?
(फ) ऑक्सीजन
(ख) जल
(ग) जल तथा ऑक्सीजन
(घ) तीनों उत्तर गलत हैं
2. पेड़-पौधे अपना भोजन कैसे बनाते हैं?
(क) सूर्य के प्रकाश और ऑक्सीजन की उपस्थिति में
(ख) ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में
(ग) सूर्य के प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में
(घ) तीनों उत्तर गलत है
3. अल्ट्रावायलेट किरणों से कौन से रोग होने की संभावना रहती है?
(क) हृदय रोग
(ख) त्वचा का कैंसर
(ग) सामान्य कैंसर
(घ) तीनों उत्तर गलत हैं
4. पेड़-पौधों से किसे भोजन प्राप्त होता है?
(क) केवल पशु-पक्षियों को
(ख) केवल मनुष्यों को
(ग) पशु-पक्षियों और मनुष्यों को
(घ) किसी को भी नहीं
5. ‘पेड़-पौधे’ समस्तपद का उचित विग्रह एवं समास का नाम कौन-सा है?
(क) पेड़ों के पौधे (संबंध तत्पुरुष)
(ख) पेड़ों के लिए पौधे (संप्रदान तत्पुरुष)
(ग) पेड़ और पौधे (द्वंद्व समास)
(घ) पेड़ों पर पौधे (अधिकरण तत्पुरुष)
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. वृक्षों को ऑक्सीजन का स्रोत क्यों कहा गया है?
2. पेड़-पौधे क्या छोड़ते और क्या ग्रहण करते हैं?
3. पेड़-पौधों से हमें क्या-क्या प्राप्त होता है?
4. कौन-कौन सी आयुर्वेदिक औषधियाँ पेड़-पौधों से प्राप्त होती हैं?
5. ‘पेड़-पौधे’ समस्तपद का विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए।
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(9) यह बात सभी जानते हैं कि विश्व के 185 देशों में से इंग्लैंड सहित केवल 6 देशों की ही सरकारी भाषा अंग्रेजी है जो विगत अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत रहे थे जबकि बिना अंग्रेजी वालेराष्ट्र अपनी भाषाओं क बल पर बराबर प्रगति कर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ख्याति बढ़ा रहे हैं। दुर्भाग्यवश कतिपय स्वार्थी और प्रभावशाली लोगों ने सरकार में बैठे नेताओं के माध्यम से सदैव अपने स्वार्थों की खातिर राष्ट्रभाषा को उसका जायज हक पाने से रोका और ऐसे लोग आज भी कम ताकतवर नहीं हैं। हिंदी का प्रमुख विरोध दक्षिण भारत में ही अब तक सबसे अधिक हुआ है। तमिलनाडु आदि राज्य अपनी प्रादेशिक भाषाओं और अंग्रेजी में ही कामकाज करते हैं परंतु जब भी हिंदी की बात उठती है तो वे उसके रास्ते में रुकावट डालते हैं। यह भी एक वास्तविकता है कि दक्षिण भारत में भी हिंदी सीखने वालों की कमी नहीं है जो इस बात के लिए पूरी तरह तैयार हैं कि यदि कभी हिंदी का बोलबाला हो जाए और वह राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो जाए तो वे भी अखिल भारतीय सेवाओं में अपना वर्चस्व कायम रख सकें।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. हमारी राष्ट्रभाषा कौन-सी है?
(क) अंग्रेजी
(ख) हिंदी
(ग) उर्दू
(घ) इनमें सभी
2. इंग्लैंड की राष्ट्रभाषा क्या है?
(क) जर्मन
(ख) फ्रेंच
(ग) स्पेनिश
(घ) अंग्रेज़ी
3. भारत का राष्ट्रकार्य किस भाषा में होता है?
(क) हिंदी में
(ख) अंग्रेजी में
(ग) उर्दू में
(घ) (क) और (ख) दोनों
4. आप किस भाषा का अधिक प्रयोग करते हैं?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेजी
(ग) उर्दू
(घ) इनमें सभी भाषाओं का
5. ‘प्रतिष्ठित’शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?
(क) त
(ख) ईत
(ग) इत
(घ) ठित
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. हमारे देश में राष्ट्रभाषा को उसका जायज हक पाने से किसने तथा क्यों रोका है?
2. हिंदी का प्रमुख विरोध किन राज्यों में हुआ है तथा तमिलनाडु में हिंदी के विकास की क्या स्थिति है?
3. दक्षिण भारत में हिंदी सीखने वालों की स्थिति क्या है तथा वे किस बात के लिए तैयार हैं?
4. कितने देशों की सरकारी भाषा अग्रेंजी है तथा क्यों?
5. ‘प्रादेशिक’ शब्द से संज्ञा शब्द बनाइए।
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(10) ऑस्कर विजेता फ़िल्म ‘क्रेश’ कई कहानियों का संगम है जो शुरुआत में एक दूसरे से भिन्न लगती हैं पर अंत तक आते-आते उन सबका आपस में संबंध साफ़ प्रतीत होने लगता है। पॉल हैगिस द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में कहानी बहुत महत्वपूर्ण है और पात्र गोरे, काले और इमिग्रेंट्स के खानों में बँटे हुए हैं जो अपने-अपने भय और पूर्वाग्रहों से भरे हुए जी रहे हैं।
फ़िल्म रेसिज़्म का दंश झेलते अमेरिकी समाज की कहानी है। गोरे, काले और मूल रूप से दूसरे देशों से अमेरिका में आकर बसे पात्रों के तनावों से दो-चार होते जीवन को समेटे हुए फ़िल्म आगे चलती है। अपने तनावग्रस्त जीवन में सारे चरित्र कहीं-न-कहीं किसी न किसी बुराई को सहने में विवश है। काले और गारे चरित्र एक दूसरे के प्रति पूर्वाग्रहों से भरे हुए हैं और अगर वे किसी पद पर हैं तो उसका फायदा दूसरे को प्रताड़ित करने में उठाते हैं। क्या गोरे और क्या काले, सब पात्र अपने ढंग से रेसिस्ट हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. ‘क्रेश’ फिल्म की कहानी की क्या विशेषता है?
(क) इसमें कई कहानियाँ हैं।
(ख) प्रारंभ में वे कहानियाँ असंबद्ध लगती हैं।
(ग) अंत तक आते आते सबमें संबंध दिखाई देने लगता है।
(घ) तीनों उत्तर सही हैं।
2. इस फिल्म के पात्र कौन-कौन है?
(क) गोरे
(ख) काले
(ग) इमिग्रेट्स
(घ) तीनों उत्तर सही हैं
3. फ़िल्म किन लोगों के तनाव को व्यक्त करती है?
(क) अमेरिकी लोगों के
(ख) रेसिज़्म का दंश झेलते अमेरिकी लोगों के
(ग) गोरे काले और दूसरे देशों से अमेरिका में आकर बसे लोगों के
(घ) (ग) तथा (घ)
4. फ़िल्म के काले और गोरे चरित्र किस प्रकार के हैं?
(क) एक-दूसरे के प्रति शंकालु
(ख) एक-दूसरे के दुश्मन
(ग) एक-दूसरे के प्रति पूर्वाग्रहों से भरे
(घ) तीनों उत्तर गलत है
5. ‘बुराई’ शब्द किस मूल शब्द और प्रत्यय को मिलाकर बना है?
(क) बु+आई
(ख) बुरा+ई
(ग) बुरा+आई
(घ) तीनों उत्तर गलत हैं
लघुत्तरीय प्रश्न-
1. ‘क्रेश’ फ़िल्म के निर्देशक कौन हैं तथा इस फ़िल्म की क्या विशेषता है?
2. फ़िल्म में ‘रेसिज्म का दंश’ किस रूप में व्यक्त किया गया है?
3. इस फिल्म में काले तथा गोरे चरित्र एक-दूसरे के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?
4. ‘क्रेश’ फिल्म को कौन-सा पुरस्कार मिला है तथा क्यों?
5. क्रेश फिल्म के सारे चरित्र अपने तनावग्रस्त जीवन में क्या सहने को विवश है?
6. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।