कक्षा – 09 अपठित काव्यांश (Unseen Poetry Passages)

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‘अपठित’ यह शब्द ‘अ’ उपसर्ग, ‘पठ्’ धातु और ‘इत’ प्रत्यय से मिलकर बना है। ‘अपठित’ शब्द का अर्थ है- जो कभी पढ़ा न गया हो। काव्यांश – काव्य+अंश (काव्य का भाग), अपठित काव्यांश काव्यों के वे अंश हैं जो पाठ्यपुस्तक से संबंधित नहीं होते हैं। अपठित काव्यांश विद्यार्थियों में पढ़कर भावग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इससे छात्रों की लेखन कला का विकास होता है क्योंकि काव्यांश समझकर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर उन्हें अपने शब्दों में देने होते हैं।

अपठित काव्यांश हल करते समय ध्यान देने योग्य बातें-

· काव्यांश को दो-तीन बार पढ़कर भावग्रहण करने का प्रयत्न करें।

· प्रश्नों को पढ़कर काव्यांश में संभावित उत्तर की पंक्तियों को रेखांकित करें।

· प्रश्नों के उत्तर लिखते समय भाव को ध्यान में रखें।

· सरल एवं स्पष्ट भाषा तथा छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करें।

· शीर्षक लिखते समय कोशिश करें कि वह छोटा और काव्यांश के मूल भाव से संबधित हो।

· यदि प्रश्नों का प्रारूप बहुविकल्पीय है तो सारे विकल्पों को ध्यान से पढ़कर सर्वाधिक उचित विकल्प पर निशान लगाएँ।

कक्षा 09 अपठित पद्यांश के उदाहरण (बहुविकल्पीय और लघु उत्तरीय)

(1) किस भाँति जीना चाहिए, किस भाँति मरना चाहिए.

सो सब हमें निज पूर्वजों से ज्ञात करना चाहिए।

पद-चिह्न उनके यत्नपूर्वक खोज लेना चाहिए

निज पूर्व गौरव दीप को बुझने न देना चाहिए।

आओ मिलें सब देश बांधव हार बनकर देश के.

साधक बनें सब प्रेम से सुख-शांतिमय उद्देश्य के।

क्या सांप्रदायिक भेद से है ऐक्य मिट सकता, अहो,

बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों की कहो।

प्राचीन हों कि नवीन, छोड़ो रूड़ियाँ जो हों बुरी,

बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस की-सी चातुरी।

प्राचीन बातें ही भली है यह विचार अलीक है,

जैसी अवस्था हो जहाँ वैसी व्यवस्था ठीक है।

मुख से न होकर चित्त से देशानुरागी हो सदा,

हैं सब स्वदेशी बंधु, उनके दुख-भागी हो सदा।

देकर उन्हें साहाय्य भरसक सब विपत्ति व्यथा हरो

निज दुख से ही दूसरों के दुख का अनुभव करो।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. अपने पूर्वजों से हमें क्या पता करना चाहिए?

(क) उनके पद-चिह्नों का पता

(ख) उन लोगों ने कैसे अपना जीवन गुजारा

(ग) जीने-मरने की कसा

(घ) उनकी अच्छी बातें

2. ‘आओ मिलें सब देश-बांधव हार बनकर वेश का’ पंक्ति का क्या आशय है?

(क) सारे देशवासी एक-दूसरे के गले में हार डालें

(ख) देश पर फूलों का हार चढ़ाएँ

(ग) सभी देशवासी भेद-भाव छोड़कर एक हो जाएँ

(प) इनमें से कोई नहीं

3. कवि की दृष्टि से क्या ठीक है?

(क) जैसी स्थिति हो, उसके अनुसार कार्य करें

(ख) बुरी रूढ़ियों को छोड़ दें

(ग) प्राचीन बाते ही ठीक हैं उन्हीं को अपनाएँ

(घ) प्राचीन बातों को छोड़कर, नवीन बातों को अपनाएँ

4. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य करने के लिए कवि ने नहीं कहा है?

(क) वाणी से नहीं मन से देशप्रेमी बनो।

(ख) सभी देशवासियों के दुख में साथ दो।

(ग) दूसरों के कष्ट और व्यथा को हरो।

(घ) दूसरों के दुख से ही अपने दुख का अनुभव करो।

5. प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक होना चाहिए-

(क) जीने की कला

(ख) सच्ची देशभक्ति

(ग) देश के लिए त्याग

(घ) देश सेवा

उत्तर- 1 (ग), 2. (ग), 3 (क), 4 (घ), 5 (ख)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. कवि ने किस तरह की चातुरी दिखाने की बात कही है तथा क्यों?

उ०- कवि ने लोगों को हंस जैसी चातुरी दिखाने की बात कहीं है। यह माना जाता है कि हंस एक ऐसा चतुर पक्षी है जो दूध में से से दूध और जल को अलग-अलग कर देता है। मनुष्य को भी इसी तरह से नीर-क्षीर विवेक होना चाहिए।

2. व्यक्ति को अपने देशवासियों का भला किस प्रकार करना चाहिए?

उ०- मनुष्य को बातों से नहीं बल्कि हृदय से देशानुरागी होना चाहिए तथा समस्त देशवासियों के सुख-दुख का भागी बनना चाहिए। विपत्ति के समय उनकी मदद करनी चाहिए और दूसरों के कष्टों का अनुभव अपने कष्ट समझकर करना चाहिए।

3. मनुष्य को अपने पूर्वजों से क्या सीखना चाहिए?

उ०- मनुष्य को अपने पूर्वजों से जीने-मरने की कला सीखनी चाहिए।

4. काव्यांश में कवि किसको छोड़ने की बात कह रहे हैं?

उ०- पुरानी हो अथवा नई, किसी भी तरह की बुरी रूढ़िवादिता को कवि छोड़ने की बात कह रहे हैं।

5. सांप्रदायिक भेदभाव के संबंध में कवि ने क्या कहा है?

उ०- कवि का कहना है कि हमें सांप्रदायिक भेदभाव मिटाकर परस्पर एक होकर रहना चाहिए।

(2) ले चल माँझी मंझधार मुझे दे दे बस अब पतवार मुझे।

इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।।

मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कँटीली राह चला।

पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।

फिर कहाँ डरा पाएगा, यह पगले जर्जर संसार मुझे।

इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।।

मैं हूँ अपने मन का राजा इस पार रहूँ, उस पार चलूँ।

मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा जो चाहे जीतू, हार चलूँ।

मैं हूँ अबाध अविराम-अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।

कब रोक सको मुझको चितवन मदमाते कजरारे धन की.

कब लुभा सकी मुझको बरबस मधु-मस्त फुहारें सावन कीं।

जो मचल उठें अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे

राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की

इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे

इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘माँझी’ कौन होता है?

(क) जो माँ जैसा होता है।

(ख) जो बर्तन माँजता है।

(ग) जो नाव चलाता है।

(घ) इनमें से कोई नहीं।

2. ‘पब-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

(क) कवि के जीवन में पतझड़ आ गया है, अर्थात चारों ओर निराशा ही निराशा है।

(ख) पतझड़ के बाद जिस तरह सुगंध बिखेरता बसंत आता है, वही वसंत कवि के जीवन में भी आएगा।

(ग) आशा के गर्भ में ही निराशा पलती है।

(घ) इनमें से कोई नहीं

3. ‘मन का राजा’ कौन होता है?

(क) जो मनमानी करता है।

(ख) जिसका अपने मन पर अधिकार है।

(घ) जिसका मन किसी काम में नहीं लगता।

(ग) जो मनचला होता है।

4. लहरों के टकराने पर कवि को आता है-

(क) गुस्सा

(ख) प्यार

(ग) उत्साह

(घ) इनमें सभी

5. ‘अविराम’ शब्द में कौन-सा उपसर्ग है?

(क) अ

(ख) अव

(ग) अवि

(घ) अवी

उत्तर- 1(ग), 2. (ख), 3. (ख), 4 (ख), 5. (क)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘मत रोक मुझे मधुमास पला’ पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उ०- कवि कहता है कि मुझे संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ने से न तो डराओं और न रोको क्योंकि पतझड़ के बाद जिस तरह सुगंध बिखेरता वसंत आता है, उसी तरह का वसंत मेरे जीवन में भी आएगा अर्थात संघषों के बाद ही सच्चा आनंद प्राप्त होगा।

2. ‘मन का राजा’ कौन होता है तथा कवि ने अपने को मन का राजा क्यों कहा है?

उ०- जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण रखता है, वही मन का राजा होता है। कवि को भी अपने मन पर नियंत्रण है। अत: वह जहाँ भी रहे, उसे सुख-दुख हार-जीत किसी भी बात का भय नहीं लगता।

3. स्वयं ‘मस्त खिलाड़ी’ क्यों कहा है?

उ०- कवि ने स्वयं को एक मस्त खिलाड़ी कहा है क्योंकि वह अपने मन के अनुसार हारता और जीता है।

4. कवि किसका श्रृंगार करना चाहता है?

उ०- कवि उठती-गिरती लहरों का श्रृंगार करना चाहता है।

5. ‘श्रृंगार’ शब्द का वर्ण-विच्छेद कीजिए।

उ०- वर्ण-विच्छेद- श्+ऋ+अं+ग्+आ+र्+अ

(3) मैं जब कभी अकेला होता हूँ, मुझे मेरी माँ का प्यार याद आता है.

सोचकर वक्त के उस दौर को मेरा रोम-रोम हर्षित हो जाता है।

याद आता है जब माँ मेरी मुझे सप्रेम खिलाया करती थी,

दुलारती हुई-सी वह मुझे गोदी में बिठाया करती थी।

नाज-नखरों को भी वह मेरे तब हँस-हँस के उठाया करती थी।

याद आता है जब कभी मैं रोता था. वह मुझे सीने से लगाया करती थी

बेटा मेरा शेर बनेगा कहती हुई वह मुझे दूध पिलाया करती थी।

याद आता है जब कभी मैं डरता था ममता-भरे आँचल में वह मुझे छुपाया करती थी

और सुना मीठी लोरी वह मुझे प्यार से सुलाया करती थी।

याद आता है वह अँधेरा देख जिससे मैं घबराता था

दौड़ के फिर माँ से अपनी लिपट में जाता था,

फेर हाथ सिर पर वह मेरे तब डर को दूर भगाया करती थी।

अब याद आता है, हर वह पल जब माँ की ममता में एक गहराई थी,

माँ के आँचल की ठंडी छाँव में, अपने बचपन की

अनमोल घड़ियाँ कुछ इस तरह मैंने बिताई थीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. निम्नलिखित में से कौन-सी बात कवि को याद नहीं आती?

(क) माँ द्वारा प्रेमपूर्वक भोजन कराना

(ख) सप्रेम अपनी गोद में बिठाना

(ग) रोते समय अपने सीने से लगाना

(घ) शरारत करते समय डाँटना

2. ‘नाज-नखरे उठाना’ मुहावरे का सही अर्थ है-

(क) प्रेम करना

(ख) हर तरह की इच्छा पूरी करना

(ग) गलत-सही सभी बातों को मानना

(घ) इसमें से कोई नहीं

3. ‘माँ की ममता में थी-

(क) उदासीनता

(ख) कटुता

(ग) गहराई

(घ) जड़ता

4. ‘बचपन की घड़ियाँ’ का अर्थ है-

(क) बचपन में कवि जो घड़ी पहनते थे

(ख) बचपन में जिन घड़ियों से कवि खेलते थे

(ग) बचपन की बातें

(घ) बचपन में बिताया एक-एक पल

5. ‘ठंडी छाँव’ में ‘ठंडी’ किस प्रकार का पद है?

(क) गुणवाचक विशेषण

(ख) परिमाणवाचक विशेषण

(ग) व्यक्तिवाचक संज्ञा

(घ) अव्यय

उत्तर- 1 (प). 2. (ग). 3 (ग), 4 (घ), 5. (क)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. बचपन में कवि के नाज-नखरे उठाने के लिए माँ क्या-क्या करती थी?

उ०- बचपन में नारा-मखरे उठाने के लिए कवि की माँ उसे गोद में उठाया करती थी गोद में बिठाकर उसे प्रेम और दुलार करती थी तथा प्रेमपूर्वक खिलाया-पिलाया करती थी।

2. कवि जब रोता था तथा डरता था तब उसकी माँ क्या-क्या करती थी?

उ०- बचपन में कवि जब रोता था तो उसकी माँ उसे अपने सीने से लगा लेती थी तथा ‘मेरा बेटा शेर बनेगा’ ऐसा •बोलकर उसे दूध पिलाया करती थी। इसके अलावा जब वह कभी डर जाता था तो माँ उसे अपने आँचल में छुपा लेती थी और प्यार भरी लोरी सुनाया करती थी।

3. कवि को माँ का प्यार कब याद आता है?

उ०- कवि जब भी अकेला होता है, तब उसे अपनी माँ का प्यार याद आता है।

4. “माँ की ममता में एक गहराई थी’ पंक्ति का अर्थ क्या है?

उ०- माँ का प्यार मन की गहराइयों से निकलनेवाला होता था।

5. काव्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

उ०- शीर्षक-माँ की ममता

(4) मत काटो तुम ये पेड़, हैं ये लज्जावसन

इस माँ वसुंधरा के, इस संहार के बाद

अशोक की तरह सचमुच, तुम बहुत पछताओगे

बोलो फिर किसकी गोद में सिर छिपाओगे

शीतल छाया फिर कहाँ से पाओगे?

कहाँ से पाओगे फिर फल?

कहाँ से मिलेगा

शस्य-श्यामला को सींचनेवाला जल?

रेगिस्तानों में तब्दील हो जाएँगे खेत

बरसँगे कहाँ से घुमड़कर बादल?

थके हुए मुसाफ़िर

पाएँगे कहाँ से श्रमहारी छाया?

भूल गए क्या?

पेड़ कराते सब जीवों को मधुर-मधुर रसपान

पेड़ों से ही मिलती औषधि, नई पनपती जान।

अगर जमीं पर पेड़ न होंगे जीना दूभर हो जाएगा

त्राहि-त्राहि जन-जन में होगी

जीवन विषमय हो जाएगा।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘लज्जावसन’ से क्या तात्पर्य है?

(क) लज्जावान व्यक्ति

(ख) निर्लज्ज व्यक्ति

(ग) लज्जा ही जिसके वसन अर्थात वस्त्र हों

(घ) लज्जा जिसका व्यसन बन गई हो

2. कवि ने किस संहार की बात कही है?

(क) पेड़-पौधों का नाश

(ख) पशु-पक्षियों का नाश

(ग) नरसंहार

(घ) इनमें से कोई नहीं

3. वृक्ष काटे जाने का निम्नलिखित में से कौन-सा परिणाम नहीं है?

(क) फलों का न मिलना

(ख) शीतल छाया न मिलना

(ग) वर्षा न होना

(घ) रेगिस्तान में खेती होना

4. धरती पर पेड़ों के नहीं होने से क्या नहीं होगा?

(क) लोगों का जीना दूभर हो जाएगा।

(ख) लोगे त्राहि-त्राहि करने लगेंगे।

(ग) धरती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(घ) जीवन विषम हो जाएगा।

5. काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता है?

(क) धरती के लज्जावसन-वृक्ष

(ख) वृक्ष मत काटो

(ग) अगर वृक्ष काटोगे

(घ) पेड़-पौधों का संहार

उत्तर- 1 (ग), 2. (क). 3 (घ). 4. (ग), 5 (क)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘लज्जावसन’ से क्या तात्पर्य है तथा कवि ने किसे, किसका लज्जावसन कहा है तथा क्यों?

उ०- ‘लज्जावसन’ से तात्पर्य है वे वस्त्र जो किसी को लज्जा ढकने का कार्य करते हैं। कवि ने वृक्षों को धरतो के लज्जवासन कहा है। जिस तरह लज्जावसन किसी नारी के शरीर का आवरण बनते हैं, उसी तरह वृक्ष पृथ्वी को ढक लेते हैं।

2. वृक्ष काटे जाने के क्या-क्या परिणाम सामने आते हैं?

उ०- वृक्ष काटे-जाने पर शीतल छाया और फल नहीं मिलेंगे। वर्षा नहीं होगी तथा खेत रंगिस्तान में बदल जाएँगे। थके हुए मुसाफ़िरों को शीतल छाया नहीं मिल पाएगी।

3. कवि ने किस संहार की बात कही है?

उ०- कवि ने संहार शब्द का प्रयोग पेड़ पौधों को काटकर नष्ट किए जाने के लिए किया है।

4. यदि धरती पर वृक्ष नहीं होंगे तो क्या होगा?

उ०- यदि धरती पर वृक्ष नहीं होंगे तो जीना दूभर हो जाएगा तथा चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाएगी।

5. काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

उ०- धरती के लज्जावसन-वृक्ष

(5) धर्म का दीवट, दया का दीप,

कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार,

भोग-लिप्सा आज भी लहरा रहे उद्दाम

सिर झुका सबको, सभी को श्रेष्ठ निज से मान,

दग्ध कर पर को स्वयं भी भोगता दुख-दाह,

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार,

भोग-लिप्सा आज भी लहरा रहे उद्दाम,

यह मनुज जो ज्ञान का आगार

कब जलेगा, कब जलेगा विश्व में भगवान

छद्म इसकी कल्पना, पाखंड इसका ज्ञान

हाँ सरस होंगे, जली-सूखी रसा के प्राण।

पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।

बुद्ध हों कि अशोक, गांधी हों कि ईशु महान।

मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान।

जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह।

पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।

बह रही असहाय नर की भावना निष्काम।

यह मनुज जो सृष्टि का श्रृंगार

यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. संसार में अभी तक शीतलता क्यों नहीं आ सकी है?

(क) मनुष्य ने अपना धर्म छोड़ दिया है।

(ख) अमृत की धारा नहीं बरसी है।

(ग) लोगों ने दूसरों पर दया करना छोड़ दिया है।

(घ) मनुष्य भोग और लिप्सा में डूबा हुआ है।

2. किस ‘अमृत की धार’ की बात कवि कर रहे हैं?

(क) धर्म की

(ख) दया की

(ग) त्याग की

(घ) प्रेम और शांति की

3. मानव आज भी किस पुरानी राह पर चलता चला जा रहा है?

(क) बुद्ध अशोक ईसा मसीह तथा गांधी के द्वारा बताए मार्ग पर

(ख) धर्म और दया के मार्ग पर

(ग) दूसरों को कष्ट देना और खुद भी कष्ट भोगना

(घ) इनमें से कोई नहीं

4. नर की निष्काम भावना किस प्रकार बह रही है?

(क) स्वतंत्र रूप से

(ख) परतंत्र रूप से

(ग) असहाय रूप में

(घ) तीनों ही गलत है

5. ‘वाचिक’ शब्द का अर्थ है-

(क) जिसका वाचन किया जा सके

(ख) जो वचनबद्ध हो

(ग) जो बचता फिरे

(घ) जिसका संबंध वाणी से हो

उत्तर- 1 (घ), 2(घ), 3(ग), 4. (ग), 5 (घ)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. कवि काव्यांश की पहली दो पंक्तियों में ईश्वर से क्या पूछ रहा है?

उ०- पहली दो पक्तियों में कवि ईश्वर से पूछ रहा है कि हे भगवान! इस संसार में धर्म और दया का दीपक कब जलेगा अर्थात सारे विश्व में दया और धर्म का प्रचार कब होगा?

2. बुद्ध, अशोक, गांधी या ईसा मसीह के बाद भी अभी तक संसार की क्या स्थिति है?

उ०- महात्मा बुद्ध सम्राट अशोक महात्मा गांधी और ईसा मसीह के प्रयासों के बाद भी संसार उसी गति से चला आ रहा है। संसार आज भी पाप और बुराइयों से दूध हो रहा है। संसार में चारों ओर भोग और लिप्सा का बोलबाला है।

3. काव्यांश की अंतिम पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहते हैं?

उ०- काव्यांश की अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जो मनुष्य सृष्टि का श्रृंगार है. वही आज मानवता के अपमान का सूचक वन गया है।

4. मनुष्य की कल्पना और ज्ञान किस तरह के हैं?

उ०- मनुष्य की कल्पना धोखा है और ज्ञान पाखंड है।

5. ‘सुशीतल’ शब्द से उपसर्ग छाँटिए।

उ०- उपसर्ग-सु

(6) अभी न होगा मेरा अंत

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मृदुल वसंत, अभी न होगा मेरा अंत।

हरे-हरे ये पात

डालियाँ कलियाँ कोमल गात।

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल कर

फेरूँगा निद्रित कलियों पर

जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,

अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको,

हैं मेरे वे जहाँ अनंत-

अभी न होगा मेरा अंत।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. कवि के मन के वन में अभी-अभी क्या आया है?

(क) पतझड़

(ख) बरसात

(ग) मृदुल बसंत

(घ) इनमें सभी

2. जीने की बाह के पीछे कवि का मंतव्य है कि वे-

(क) नए-नए पादपों को कलियाँ निहारेंगे।

(ख) जीवन-रूपी वन में वसंत को सजाएँगे।

(ग) पौधों को सींचकर फूल खिलाएँगे।

(घ) जीवन भर वसंत में लीन रहेंगे।

3. फूलों से आलस कवि क्यों खींच लेना चाहते हैं?

(क) उन्हें सुगंधित करने के लिए।

(ख) उन्हें नया जीवन देने के लिए।

(घ) उन्हें अमृत देने के लिए।

(ग) उन्हें सहर्ष भेंट करने के लिए।

4. कवि किसे जगाना चाहते हैं?

(क) भावनाओं को

(ख) सोई कलियों को

(ग) बसंती हवा के झोंकों को

(घ) भौरों को

5. काव्यांश का उचित शीर्षक होगा-

(क) मन का वसंत

(ख) मन की व्यथा

(ग) मन का मयूर

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर- 1 (ग), 2. (ख), 3 (ख). 4 (ख). 5. (क)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘अभी-अभी ही तो आया है, मेरे वन में मृदुल वसंत।’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उ०- इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि उसका जीवन वन की तरह है। जिस तरह वसंत के आने पर वन हरा-भरा और आकर्षक हो जाता है, उसी तरह से कवि के जीवन में भी आनंद और उल्लास का अब आगमन हुआ है।

2. ‘मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल कर फेरूंगा निद्रित कलियों पर।’ पंक्ति के माध्यम से कवि का क्या कहना चाहता है?

उ०- इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि उसके मन में कलियों की तरह जो मधुर भावनाएँ सोई पड़ी हैं उन पर अपने स्वप्न-मृदुल कर को फेरूंगा अर्थात उन भावनाओं को जाग्रत कर अपने सपनों को साकार करूंगा।

3. कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘अभी न होगा मेरा अंत’?

उ०- कवि ने इस पक्ति के माध्यम से यह बात इसलिए कही है क्योंकि कवि के मन में जीवन के वसंत को भोगने की चाह विद्यमान है।

4. ‘प्रत्यूष’ शब्द का सही अर्थ क्या है?

उ०- प्रात:काल का समय।

5. सोई कलियों को कवि कैसे जगाना चाहता है?

उ०- सोई हुई कलियों को कवि अपने हाथों के कोमल स्पर्श से जगाना चाहता है।

(7) देशप्रेम के ओ मतवालो, उनको भूल न जाना।

महाप्रलय की अग्नि-साध लेकर जो जग में आए,

विश्व बली शासन के भय जिनके आगे मुरझाए।

चले गए जो शीश चढ़ाकर अर्घ्य लिए प्राणों का,

चलें मजारों पर हम उनके आज प्रदीप जलाएँ।

टूट गई बंधन की कड़ियाँ स्वतंत्रता की बेला

लगता है मन आज हमें कितना अवसन्न अकेला।

पंथ चिरंतन बलिदानों का विप्लव ने पहचाना

देशप्रेम के ओ मतवालो उनको भूल न जाना।

जीत गए हम जीता विद्रोही अभिमान हमारा

प्राणदान विक्षुब्ध तरंगों को मिल गया किनारा।

उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का व्योम उगलता जीवन

आजादी की आग अमर है घोषित करता कण-कण

कलियों के अधरों पर पलते रहे विलासी कायर

उधर मृत्यु पैरों से बाँधे रहा जूझता यौवन।

उस शहीद यौवन की सुधि हम क्षण भर को न बिसाएँ,

उसके पगचिह्नों पर अपने मन के मोती वारें।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. काव्यांश में चर्चा की गई है-

(क) देशवासियों की

(ख) देशप्रेमियों की

(ग) देश के शहीदों की

(घ) देश के विद्रोहियों की

2. ‘मज़ारों पर हम उनके आज प्रदीप जलाएँ’ का आशय है-

(क) उनका गुणगान करना

(ख) उनको श्रद्धांजलि देना

(ग) उनकी पूजा करना

(घ) उनका स्मरण करना

3. ‘टूट गई बंधन की कड़ियाँ’ पंक्ति से कवि किस बंधन की बात कर रहा है?

(क) प्रेम और भाईचारे के बंधन की

(ख) देश की परतंत्रता के बंधन की

(ग) आपसी बैर-भाव की

(घ) तीनों उत्तर गलत है

4. ‘उधर मृत्यु पैरों से बाँधे, रहा जूझता यौवन’ का तात्पर्य है-

(क) युवाजन मृत्यु से डरकर लड़खड़ाते रहे।

(ख) नवयुवक विलासिता के कारण डगमगाते रहे।

(ग) देशप्रेमी नवयुवक निडर होकर मृत्यु से लड़ते रहे।

(घ) अनेक देशवासी निर्भय भाव से आजादी के गीत गाते रहे।

5. काव्यांश का संदेश है कि हम-

(क) सदा सजग होकर स्वतंत्रता की रक्षा करते रहें।

(ख) शहीदों का स्मरण कर उनके पदचिह्नों पर चलते रहें।

(ग) स्वाभिमान की रक्षा के लिए सर्वदा प्रयास शील रहें।

(घ) निष्ठाभाव से कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें।

उत्तर-1 (ख), 2. (ख), 3 (ख), 4 (ग), 5. (ख)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. कवि देशप्रेम के मतवालों से किन लोगों को न भूल जाने की बात कह रहा है?

उ०- कवि देश-प्रेमियों से कह रहा है कि कभी भी उन लोगों को मत भूल जाना जो ऐसी शक्ति लेकर जन्में जो महाप्रलय ला सकती थी और बड़े-बड़े शक्तिशाली लोग भी जिनके आगे फीके पड़ गए।

2. स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के बाद भी कवि का मन अवसन्नता और अकेलेपन का अनुभव क्यों कर रहा है?

उ०- देश स्वतंत्र हो गया परतंत्रता की कड़ियाँ टूट गई, लेकिन कवि मन उन लोगों को याद करके अवसन्नता और अकेलेपन का अनुभव कर रहा है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।

3. ‘उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

उ०- ‘उदित हुआ रवि स्वत्र्तता का’ से कवि का तात्पर्य यह है कि हमें गुलामी की जंजीरों से मुक्ति मिली और भारत स्वाधीन हुआ।

4. कवि किन लोगों के मजार पर दीप जलाने के लिए कह रहा है?

उ०- जब तक रोगों के साथ अपना बलिदान दे दिया। कवि उन स्वेगों के मजार पर दीप जलाने के लिए कह रहा है।

5. काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए-

उ०- शीर्षक-देशप्रेम के मतवाले

(8) हम जग न होने देंगे!

विश्व शांति के हम साधक हैं.

जंग न होने देंगे।

कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी

खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी,

आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा

ऐटम से फिर नागासाकी नहीं जलेगी

युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे!

हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा,

मुँह में शाति, बगल में बम धोखे का फेरा,

कफ़न बेचनेवालों से कह दो चिल्लाकर.

दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा,

कामयाब हों उनकी चालें, ढंग न होने देंगे।

हमें चाहिए शांति, जिंदगी हमको प्यारी,

हमें चाहिए शांति, सृजन की है तैयारी,

हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से,

आगे आकर हाथ बटाए दुनिया सारी,

हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे।

[CBSE Delhi, 2014]

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. किस स्वप्न को कवि नहीं टूटने देना चाहते?

(क) संसार की संपन्नता का स्वप्न

(ख) विश्वशांति का स्वप्न

(ग) युद्ध-रहित संसार का स्वप्न

(घ) पारस्परिक श्रेष्ठता का स्वप्न

2. ‘कभी ने खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी’ का तात्पर्य है-

(क) युद्ध के कारण फ़सल नष्ट नहीं होगी।

(ख) युद्ध अपार जनसंहार का कारण नहीं बनेगा।

(ग) खेतों में मृत व्यक्तियों के शव नहीं दिखाई देंगे।

(घ) खेती करनेवाला मौत का शिकार नहीं बनेगा।

3. कवि ने ‘कफन बेचनेवाले’ उन देशों को कहा है जो-

(क) युद्ध के रूप में शक्ति-प्रदर्शन करते हैं।

(ख) घातक अस्त्र-शस्त्रों के सौदागर हैं।

(ग) शक्ति के आधार पर नरसंहार करते हैं।

(घ) अशांति और अव्यवस्था में विश्वास रखते हैं।

4. कवि ऐसे युद्ध को सार्थक समझते हैं जो-

(क) राक्षसी शक्तियों का संहारक हो।

(ख) भूख और रोग का विनाशक हो।

(ग) अशांति के समर्थकों का सहयोगी हो।

(घ) विश्व के कल्याण का साधक हो।

5. प्रस्तुत काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक होना चाहिए-

(क) शांति की अभिलाषा

(ख) देशप्रेम

(ग) प्रेम और शाति

(घ) हम जंग न होने देंगे

उत्तर-1 (ग), 2. (ख), 3. (ग), 4. (ख), 5. (घ)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. यदि जंग नहीं होगी तो क्या-क्या घटित होगा?

उ०- खेत-खलिहानों में फ़सल उगेगी न कि बेकसूर लोगों का रक्त बहेगा। आसमान से अग्नि वर्षा नहीं होगी और न ही कोई नागासाकी की तरह एटमबम से विध्वंस होगा।

2. कवि ने किन लोगों की कौन-सी चाल कामयाब न होने देने की बात कविता में कही है?

उ०- ऐसे देश जो हथियारों का जखीरा जमा करते रहते हैं और ऊपर से शांति को बात करते हैं और जिनके अंदर धोखेबाजी भरी हुई है. कवि कहते हैं कि उनकी चाल हम सफल नहीं होने देंगे। ऐसे लोग मौत के सौदागर है जो नहीं चाहते कि विश्व में शांति स्थापित हो।

3. ‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ पंक्ति का क्या तात्पर्य है?

उ०- इस पंक्ति का आशय है कि युद्ध अपार जनसंहार का कारण नहीं बनेगा।

4. ‘विश्वशांति के हम साधक हैं’ पक्ति में कवि ने किसे विश्वशांति का साधक बताया है?

उ०- इस पंक्ति में कवि ने भारतवासियों को विश्वशांति का साधक बनाया है।

5. कवि ने शांति स्थापित करने के लिए किसे आगे आने को कहा है?

उ०- कवि ने विश्वशांति को स्थापित करने के लिए संसार के सभी लोगों को आग आने का आह्वान किया है।

(9) जिसके निमित्त तप-त्याग किए हँसते-हँसते बलिदान दिए

कारागारों में कष्ट सहे दुर्दमन नीति ने देह दहे

घर-बार और परिवार मिटे नर-नारी पिटे बाजार लुटे

आई पाई वह ‘स्वतंत्रता’ पर मुख से नेह न नाता है-

क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है।

सुख सुविधा समता पाएँगे सब सत्य-स्नेह सरमाएँगे

तब भ्रष्टाचार नहीं होगा अनुचित व्यवहार नहीं होगा

जन-नायक यही बताते थे दे-दे दलील समझाते थे

वे हुई व्यर्थ बीती बातें जिनका अब पता न पाता है।

क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है।

शुचि स्नेह अहिंसा सत्य कर्म बतलाए ‘बापू’ ने सुधर्म,

जो बिना धर्म की राजनीति उसको कहते थे वे अनीति

अब गांधीवाद बिसार दिया, स‌द्भाव त्याग तप मार दिया

व्यवसाय बन गया देशप्रेम खुल गया स्वार्थ का खाता है-

क्या यही ‘स्वराज्य’ कहलाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. ‘क्या यही स्वराज्य कहलाता है! कथन है-

(क) एक प्रश्न

(ख) एक व्यंग्य

(ग) एक समस्या

(घ) एक समाधान

2.’दुर्वमन नीति ने देह वहे’ का अभिप्राय है-

(क) स्वतंत्रता-प्रेमियों को दमन में शामिल किया गया।

(ख) उत्पीड़न से देशप्रेमियों का जीवन समाप्त किया गया।

(ग) स्वराज्य के संघर्षशीलों को उकसाया गया।

(घ) परतंत्रता के विरोधियों का दहन किया गया।

3. स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद की स्थिति पर कौन-सा कथन अनुपयुक्त है?

(क) समाज में सर्वत्र धन का महत्व बढ़ना।

(ख) सुख-सुविधा और स्नेह की प्राप्ति होना।

(ग) उचित व्यवहार का सर्वत्र साम्राज्य होना।

(घ) सब जगह सत्य का बोलबाला होना।

4. गांधी किसके समर्थक नहीं थे?

(क) सत्य और अहिंसा के

(ख) धर्महीन राजनीति के

(ग) तप त्याग और शुचिता के

(घ) सत्कर्म और सद्‌भाव के

5. ‘सुख-सुविधा, समता पाएँगे’ में अलंकार है-

(क) यमक

(ख) अनुप्रास

(ग) रूपक

(घ) श्लेष

उत्तर- 1. (ख), 2 (घ), 3 (क), 4 (ख), 5 (ख)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए देशवासियों ने क्या-क्या किया? पहले पद के आधार पर उत्तर दीजिए।

उ०- स्वतंत्रता के लिए लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग दिया और प्रसन्नतापूर्वक अपना बलिदान दे दिया। उन्हें कारागारों में डाला गया जहाँ उन्हें भयंकर यातनाएँ दी गईं। इसके अलावा न जाने कितने नर-नारी और परिवार समाप्त हो गए।

2. स्वतंत्रता से पहले जननायक लोगों को क्या कहते थे?

उ०- स्वतंत्रता से पहले जननायक लोगों को तरह-तरह की दलीलें देकर यह बताते थे कि स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद सब लोग सुखी होंगे, सबके समान अधिकार होंगे देश में कहीं भी भ्रष्टाचार नहीं होगा और किसी के साथ कोई भी अनुचित व्यवहार नहीं किया जाएगा।

3. ‘वे व्यर्थ हुई बीती बातें, जिनका अब पता न पाता है’ पंक्ति से लेखक का क्या आशय है?

उ०- स्वतंत्रता से पूर्व लोग जो सोचते थे, स्वतंत्रता के बाद वैसा कुछ नहीं हुआ। न सुख-शांति स्थापित हुई न भाईचारा बढ़ा। सारी बातें व्यर्थ हो गई।

4. गांधी जी ने सुधर्म के अंतर्गत किन-किन बातों का उल्लेख किया था?

उ०- गांधी जी ने सुधर्म के अंतर्गत शुचिता प्रेम सत्य, अहिंसा, अच्छा कर्म आदि सद्‌गुणों का उल्लेख किया था।

5. ‘क्या यही स्वराज्य कहलाता है’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?

उ०- देश में स्वतंत्रता के बाद जो कुछ हुआ गांधीवाद की हत्या हुई, भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद बढ़ा, सब लोग स्वार्थ में डूब गए, अर्थात वह सब कुछ नहीं हुआ, जिसकी चर्चा हमारे जननायक करते थे। इसी पर कवि ने व्यंग्य किया है।

(10) पहले से कुछ लिखा भाग्य में मनुज नहीं लाया है.

अपना सुख उसने अपने

भुजबल से ही पाया है।

प्रकृति नहीं डरकर झुकती है

कभी भाग्य के बल से,

सदा हारती वह मनुष्य के

उद्यम से श्रमजल से।

ब्रह्मा का अभिलेख-

पढ़ा करते निरुद्यमी प्राणी

धोते वीर कु-अंक भाल का

बहा ध्रुवों से पानी।

भाग्यवाद आवरण पाप का

और शस्त्र शोषण का,

जिससे रखता दवा एक जन

भाग दूसरे जन का।

पूछो किसी भाग्यवादी से.

यदि विधि-अंक प्रबल है,

पद पर क्यों देती न स्वयं

वसुधा निज रतन उगल है?

पूछो तो, शर में ही

सच बसती है दीप्ति विनय की

संधि वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर-

1. मनुष्य को सुख प्राप्त होता है-

(क) भाग्य के बल से

(ख) भुजाओं के बल से

(ग) विद्या के बल से

(घ) धन के बल से

2. मनुष्य प्रकृति को हरा सकता है-

(क) उद्यम और परिश्रम से

(ख) आतंक और भय से

(ग) उग्रता और शोषण से

(घ) भाग्य और पौरुष से

3. भाग्यवाद-रूपी हथियार से शोषक-

(क) लोगों को भ्रमित करते हैं।

(ख) दूसरों का हिस्सा दबाकर रखते हैं।

(ग) क्रांति नहीं होने देते।

(घ) अत्याचार करते हैं।

4. किसकी संधि की बातें मान्य होती हैं?

(क) दयावान की

(ख) उद्यम और परिश्रम का महत्व बताना

(ग) ज्ञानी की

(घ) वीरों के लक्षण बताना

5. काव्यांश का आशय है-

(क) भाग्यवादियों को डराना

(ख) शक्तिशाली को

(ग) वसुधा के रत्नों के बारे में बताना

(घ) किसी की भी नहीं

उत्तर- 1.(ख),2. (क), 3 (ख), 4 (ख), 5 (ख)

लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर-

1. पहले से भुजबल से ही पाया है’ इन पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है?

उ०- प्रस्तुत पक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मनुष्य को उसके जीवन में जो सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं वे उसके भाग्य से नहीं मिली हैं। सभी सुख सुविधाएँ व्यक्ति अपने परिश्रम से अर्जित करता है।

2. भाग्यवाद क्या है तथा कवि ने उसे शोषण शस्त्र क्यों कहा है?

उ०- जो लोग कर्म नहीं करते और भाग्य के सहारे जोते हैं, वे भाग्यवादी कहलाते हैं। वे मानते हैं कि जीवन में उन्हें उतना ही मिलेगा जितना उनके भाग्य में है। पर कवि इस बात का खंडन करते हुए भाग्यवाद को पाप का आवरण और शोषण का शस्त्र बताते हैं। भाग्यवाद के नाम पर ही अमीर गरीब का शोषण करता है। एक व्यक्ति दूसरे के हक मार लेता है।

3. ‘ब्रह्मा का अभिलेख’ से कवि का क्या आशय है?

उ०- ‘ब्रह्मा का अभिलेख’ से यहाँ कवि का आशय है-भाग्य का लिखा हुआ या पूर्व निर्धारित।

4. ‘शर में ही बसती है दीप्ति विनय की’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

उ० इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि विनयशीलता का गुण शक्ति संपन्न व्यक्ति को ही शोभा देता है किसी कमजोर को नहीं।

5. उक्त काव्यांश का मूल संदेश क्या है?

उ०- प्रस्तुत काव्याश का मूल संदेश यह है कि मनुष्य को भाग्य के भरोसे न रहकर कर्म के भरोसे जीवन यापन करना चाहिए।

कक्षा 09 अपठित पद्यांश का अभ्यास-कार्य (बहुविकल्पीय और लघु उत्तरीय)

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए।

(1) जो साथ फूलों के चले। जो बाल पाते ही बले।

वह जिंदगी क्या जिंदगी जो सिर्फ पानी-सी बही।

सच हम नहीं सब तुम नहीं सच है महछ संघर्ष हो।

संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित।

पर झांककर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।

जब तक बंधी है चेतना।

जब तक हृदय दुख से घना।

तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही में सही।

सच हम नहीं सच तुम नहीं।

अपने हृदय का सत्य अपने-आप हमको खोजना।

अपने नयन का नीर अपने-आप हमको पोंछना।

आकाश सुख देगा नहीं।

जिससे हृदय को बल मिले हैं ध्येय अपना तो वही।

धरती पसीजी है कहीं?

सच हम नहीं सच तुम नहीं,सच है महज संघर्ष ही।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. कवि ने काव्यांश में संदेश दिया है-

(क) सफलता मिलने तक संघर्षरत रहना।

(ख) अवसर के अनुसार कार्य करना।

(ग) सुख की अपेक्षा करना

(घ) अपेक्षित सहायकों के मिलने पर ही संघर्ष करना।

2. कवि उन लोगों के जीवन को व्यर्थ मानता है जो-

(क) पानी की तरह परिस्थितियों के सामने झुकते चले जाते हैं।

(ख) पानी की तरह शीतल होते हैं।

(ग) पानी की तरह जमकर स्थिर हो जाते हैं।

(घ) किसी भी परिस्थिति में पानी की तरह बहते रहते हैं।

3. संसार आदमी की चाल को देखकर क्यों चकित हो रहा है?

(क) जब मनुष्य अपने अनुकूल परिस्थितियाँ देखकर कार्य नहीं करता है।

(ख) मनुष्य दूसरों की ओर निहार रहा है।

(ग) आदमी के व्यवहार में उपयोगिताओं का महत्व नहीं रहा है।

(घ) आदमी अपने स्वार्थ के लिए रंग बदल रहा है।

4. ‘अपने नयन का नीर अपने-आप हमको पोंछना’ का भाव है-

(क) दया की कामना करते हुए किसी की सहायता की अपेक्षा करना।

(ख) असहाय का कोई सहायक नहीं होता। अतः स्वयं ही आगे बढ़ना चाहिए।

(ग) अपने आँसू स्वयं पोंछना किसी को अपनी कमजोरी न बताना।

(घ) आँसू किसी काम के नहीं होते हैं। अतः उन्हें पोंछना ही अधिक अच्छा है।

5. इस काव्यांश में आँसू से संबंधित सटीक मुहावरा कौन-सा हो सकता है?

(क) आँसू निकलना

(ख) आँसू पोंछकर संघर्ष पथ पर अग्रसर होना

(ग) आँसू पोंछना

(घ) आँख के तारे आँसू

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. कवि किस तरह की जिंदगी की आलोचना कर रहा है तथा कवि के अनुसार जीवन में क्या सच है?

2. काव्यांश के अंतिम पद में कवि क्या करने के लिए कह रहा है?

3. सारा संसार क्या देखकर चकित हुआ?

4. मनुष्य का ध्येय क्या होना चाहिए?

5. ‘सच हम नहीं, सच तुम नहीं सच है महज संघर्ष ही’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

(2) मुझे लड़नी है एक छोटी-सी लड़ाई

एक झूठी लड़ाई में मैं इतना थक गया हूँ

कि किसी बड़ी लड़ाई के काबिल नहीं रहा।

मुझे लड़ना नहीं अब किसी छोटे कद वाले

आदमी के इशारे पर जो अपना कद लंबा करने के लिए

पूरे देश को युद्ध में झोंक देता है।

मुझे लड़ना नहीं,

किसी प्रतीक के लिए

किसी नाम के लिए

किसी बड़े प्रोग्राम के लिए

मुझे लड़नी है एक छोटी-सी लड़ाई छोटे लोगों के लिए

छोटी बातों के लिए।

मुझे लड़ना है एक मामूली क्लर्क के लिए

जो बिना चार्जशीट के मुअत्तल हो जाता है।

जो पेट में अल्सर का दर्द लिए

जेबों में न्याय को अर्जी की प्रतिलिपियाँ भरकर

नौकरशाही के फौलादी दरवाजे

अपनी कमजोर मुट्ठियों से खटखटाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. छोटी सी लड़ाई से कवि का तात्पर्य किस लड़ाई से है?

(क) शोषित के विरुद्ध

(ख) शोषक के विरुद्ध

(ग) जनसामान्य के विरुद्ध

(घ) समाज के उच्च एवं प्रभावशाली लोगों के विरुद्ध

2. पूरे देश को कौन लोग और किसलिए युद्ध में झोंक देते हैं?

(क) छोटे कद के व्यक्ति हमें आपस में लड़ाने के लिए।

(ख) छोटे कद वाले व्यक्ति अपना ही कद ऊँचा करने के लिए।

(ग) छोटे कदवालों को जब अन्य कोई कार्य नहीं होता है।

(घ) छोटे कद वाले देश हित के लिए

3. कवि बड़ी लड़ाई के काबिल क्यों नहीं रहा?

(क) क्योंकि झूठी लड़ाई लड़ते हुए थक चुका है।

(ख) वह अब झूठी लड़ाई लड़ने योग्य नहीं रहा।

(ग) झूठी लड़ाई में अस्तित्व का खतरा रहता है।

(घ) अब मन ही नहीं करता कि बड़े दायित्व को सँभाल सके।

4. ‘मुझे लड़ना है एक मामूली क्लर्क के लिए’-पंक्ति में मामूली क्लर्क किसका प्रतीक है?

(क) दफ्तर में काम करनेवालों का

(ख) रिश्वत लेनेवालों का

(ग) गरीब और साधारण जन का

(घ) विशिष्ट व्यक्तियों का

5. ‘अर्जी’ का अर्थ है-

(क) प्रार्थना-पत्र

(ख) अधिकार-पत्र

(घ) नियुक्ति-पत्र

(ग) सम्मान पत्र

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. कवि किन लोगों के लिए लड़ाई लड़ना चाहता है? काव्यांश के अंतिम पद के आधार पर उत्तर दीजिए।

2. ‘नौकरशाही के फौलादी दरवाजे से कवि का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।

3. कवि किस तरह की लड़ाई लड़ना चाहता है?

4. कवि किनसे नहीं लड़ना चाहते हैं?

5. कवि के अनुसार कौन बिना चार्जशीट के मुअत्तल हो जाता है?

(3) उसके बाद सर्दियों आ जाएँगी।

और मैंने देखा कि सर्दियाँ जब भी आती हैं

तो माँ थोड़ा और झुक जाती है

अपनी परछाई की तरफ

ऊन के बारे में उसके विचार

बहुत सख्त हैं

मृत्यु के बारे में बेहद कोमल

पक्षियों के बारे में

वह कभी कुछ नहीं कहती

हालांकि नींद में जब वह बहुत ज्यादा थक जाती है

तो उठा लेती है सुई और तागा

मैंने देखा है कि जब सब सो जाते हैं

तो सुई चलानेवाले उसके हाथ

देर रात तक

समय को धीरे-धीरे सिलते हैं

जैसे वह मेरा फटा हुआ कुर्ता हो

पिछले साठ बरसों से

एक सुई और तागे के बीच

दबी हुई है माँ

हालाँकि वह खुद एक करघा है

जिस पर साठ बरस बुने गए हैं

धीरे-धीरे तह-पर-तह

खूब मोटे और गझिन और खुरदरे

साठ बरस।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. ‘सर्दियों जब भी आती हैं तो माँ थोड़ा और झुक जाती है’-पंक्ति का आशय निम्नलिखित में से क्या है?

(क) सर्दियों के बोझ से माँ दब जाती है।

(ख) वृद्ध माँ के स्वास्थ्य के लिए सर्दियाँ उपयुक्त नहीं रहती हैं।

(ग) सर्दियों में माँ के झुककर चलने की आदत बन गई है।

(घ) सर्दियों में माँ खुशी के मारे झुककर चलने लगती है।

2. ‘उसके बाद सर्दियाँ आ जाएँगी’ में कवि की चिंता दिखाई देती है-

(क) माँ और सर्दियों की

(ख) बढ़ती ठंड की

(ग) माँ और अपने वस्त्रों की

(घ) सर्दियों के बाद गर्मियों के आने की

3. ‘हालाँकि वह खुद एक करघा है।’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

(क) माँ करघे पर काम करती है।

(ख) करघे के बिना उनका काम नहीं होता है।

(ग) करने पर सूत कातना उनकी जिंदगी का हिस्सा है।

(घ) माँ प्रतिक्षण हाथ से ही कपड़े को सिलने बुनने में व्यस्त रहती है।

4. कवि माँ के किस वैशिष्ट्य का स्मरण करता है?

(क) माँ के वात्सल्य और गांभीर्य की

(ख) माँ के सौंदर्य और बुढ़ापे की

(ग) माँ के गझिन और खुरदरे हाथों की

(घ) माँ की कार्य-व्यस्तता की

5. ‘वह कभी कुछ नहीं कहती’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

(क) उपमा अलंकार

(ख) रूपक अलंकार

(ग) यमक अलंकार

(घ) अनुप्रास अलंकार

लघुत्तरीय प्रश्न

1. ऊन मृत्यु और पक्षियों के बारे में माँ के क्या विचार हैं?

2. कवि ने माँ को करघा क्यों कहा है?

3. जब सर्दियाँ आती हैं तब माँ किस ओर झुक जाती है?

4. जब माँ बहुत थक जाती है तब क्या करती है?

5. ‘समय को धीरे-धीरे सिलते हैं’ से कवि का क्या आशय है?

(4) मुहल्ले में वह शांति बेचता है।

लाउडस्पीकरों की

एक दुकान है उसकी

मेरे घर से बिलकुल लगी हुई।

सुबह-सुबह मुँह अँधेरे दो घंटे

लाउडस्पीकर न बजाने के

वह मुझसे सौ रुपये महीने लेता है

वह जानता है कि मैं

उन अभागों में से हूँ

जो शांति के बिना

जीवित नहीं रह सकते।

वह जानता है कि आनेवाले वक्तों में

साफ पानी और साफ हवा से भी ज्यादा

शांति की किल्लत रहेगी।

वह जानता है

कि क्रांति के जमाने अब लद चुके :

अब उसे अपना पेट पालने के लिए

शांति का धंधा अपनाना है।

मैं उसका आभारी हूँ

भारत जैसे देश में जहाँ कीमतें आसमान

छू रहीं

सौ रुपये महीने की दर से

अगर दो घंटा रोज भी शांति मिल सके

तो महँगी नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. कवि दुकानदार को एक सौ रुपये क्यों देता है?

(क) लाउडस्पीकर ठीक कराने के लिए

(ख) लाउडस्पीकर किराए पर लेने के लिए

(ग) लाउडस्पीकर पर मधुर गीत बजाने के लिए

(घ) महीने भर लाउडस्पीकर न बजाने के लिए।

2. कवि की कविता में क्या है?

(क) व्यंग्य की प्रधानता

(ख) हास्य की प्रधानता

(ग) ध्वनि की प्रधानता

(घ) लाउडस्पीकरों की प्रधानता

3. व्यापारी (दुकानदार) जानता है कि-

(क) लोगों के लिए शोर आवश्यक है।

(ख) चारों तरफ़ पानी, हवा की किल्लत है।

(ग) कवि शांति के बिना सुख-चैन से नहीं रह सकता है।

(घ) अन्य लोगों को शोर अच्छा लगता है।

4. कवि का व्यंग्य किसके प्रति है?

(क) बढ़ती हुई महँगाई के प्रति

(ख) बढ़ते हुए ध्वनि प्रदूषण के प्रति

(ग) धंधे के प्रति

(घ) बढ़ती हुई महँगाई और ध्वनि प्रदूषण के प्रति

5. ‘सुबह-सुबह मुँह अँधेरे दो घंटे’ में कौन-सा अलंकार है?

(क) उपमा अलंकार

(ख) यमक अलंकार

(ग) पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार

(घ) रूपक अलंकार

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. मुहल्ले में शांति कौन बेचता है?

2. लाउडस्पीकर वाला क्या जानता है?

3. आनेवाले समय में किस चीज की किल्लत होगी?

4. कवि क्या जानता है?

5. प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

(5) उसे दरवाजे पर रखकर

चला गया है माली

उसका वहाँ होना

अटपटा लगता है मेरी आँखों को

पर जाते हुए दिन की

धुँधली रोशनी में

उसकी वह अजब अड्वंग-सी धूल भरी

धज आकर्षित करती है मुझे

काम था

सो हो चुका है

मिट्टी थी

सो खुद चुकी है जड़ों तक

और अब कुदाल है कि चुपचाप

चुनौती की तरह

खड़ी है दरवाजे पर

सोचता हूँ उसे वहाँ से उठाकर

ले जाऊँ अंदर

और रख दूँ किसी कोने में

ड्राइंग-रूम कैसा रहेगा-

मैं सोचता हूँ

न सही कुदाल

एक अलंकार ही सही

यदि वहाँ रह सकती है नागफनी

तो कुदाल क्यों नहीं?

पर नहीं मेरे मन ने कहा

कुदाल नहीं रह सकती ड्राइंग रूम में

इससे घर का संतुलन बिगड़ सकता है

फिर किया क्या जाए मैंने सोचा

कि तभी खयाल आया

उसे क्यों न छिपा हूँ

पलंग के नीचे के अँधेरे में

इससे साहस थोड़ा दबेगा जरूर

पर हवा में जो भर जाएगी एक रहस्य की गंध

उससे घर की गरमाहट कुछ बढ़ेगी ही

लेकिन पलंग के नीचे कुदाल?

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. माली दरवाजे पर क्या रखकर चला गया था जो कवि की आँखों को खटक रहा था?

(क) बिना फूलों का गमला

(ख) झाड़ियाँ काटने की कैंची

(ग) कुदाल

(घ) खुरपी

2. ‘काम था, सो हो चुका’ से मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है?

(क) स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति को ओर

(ख) ‘किसी भी चीज को दूसरा व्यक्ति उपयोग में न लाए’ इस सोच की ओर

(ग) कुदाल अच्छी नहीं होती है

(घ) मनुष्य के आत्म-सम्मान की ओर

3. ‘इससे घर का संतुलन बिगड़ सकता है’ में कवि की सोच है कि ….

(क) कुदाल ड्राइंग रूम में नहीं रखी जा सकती।

(ख) लोग कुदाल को देखकर कवि को सामान्य स्तर का न समझ बैठें।

(ग) कुदाल मिट्टी खोदने के काम आती है, अतः छिपाकर रखना उचित है।

(घ) माली के द्वारा कुदाल अपने घर ले जाना अधिक उचित है. जिससे उसे बार-बार माँगना न पड़े।

4. कवि कुदाल को अँधेरे में पलंग के नीचे छिपा देने की बात क्यों सोचता है?

(क) कुदाल अब किसी को अच्छी नहीं लगती।

(ख) उसे सबके सामने नहीं रखा जा सकता जहाँ वह दिखाई दे।

(ग) कुदाल छिपाकर रखने की वस्तु है।

(घ) वह कुदाल से काम होने पर उसके महत्व को नकारता है।

5. कवि इनमें से किससे अपने ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा सकता है, पर कुवाल से नहीं?

(क) पेड़-पौधों से

(ख) नागफनी से

(ग) फूलदार पौधों से

(घ) लता-वल्लरियों से

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. दरवारों पर कौन चुपचाप चुनौती की तरह खड़ा है?

2. कुदाल को ड्राइंग रूप में रखने की बात पर कवि के मन में क्या-क्या विचार आए?

3. कवि को किसका होना अटपटा-सा लगता है?

4. जाते हुए दिन की धुँधली रोशनी में कवि को क्या आकर्षित करता है?

5. कुदाल ड्राइंग रूम में क्यों नहीं रह सकती?

(6) ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश,

संसद सड़‌कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश।

देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान

देश नहीं होता है कोई सजी हुई ऊँची दुकान।

देश नहीं केवल जिसमें बैठ करते रहे सदा हम मौज

देश नहीं केवल बंदूकें देश नहीं होता है फ़ौज।

जहाँ प्रेम के दीपक जलते, वहीं हुआ करता है देश,

जहाँ इरादे नहीं बदलते, वहीं हुआ करता है देश,

सज्जन सीना ताने चलते वहीं हुआ करता है देश।

हर दिल में अरमान मचलते वहीं हुआ करता है देश,

देश वही होता जो सचमुच आगे बढ़ता कदम-कदम

धर्म, जाति, भाषाएँ जिसका ऊँचा रखती हैं परचम,

पहले हम खुद को पहचानें फिर पहचानें अपना देश

एक दमकता सत्य बनेगा नहीं रहेगा सपना देश।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1.’संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश।’ इस पंक्ति का क्या आशय है?

(क) देश केवल संसद तक सीमित नहीं है।

(ख) देश केवल सड़कों की समुचित व्यवस्था मात्र नहीं है।

(ग) देश केवल आयोग बिठा देना नहीं है।

(घ) तीनों उत्तर सही हैं।

2. देश क्या होता है?

(क) जहाँ आशाओं के दीपक जलते हों।

(ख) जहाँ प्रेम के दीपक जलते हों।

(ग) जहाँ विश्वास के दीपक जलते हों।

(घ) इनमें सभी।

3. निम्नलिखित में से देश की कौन-सी विशेषता का उल्लेख कवि ने नहीं किया है?

(क) जहाँ लोगों में परस्पर प्रेम-भाव होता है।

(ख) जहाँ लोगों के इरादे मजबूत होते हैं।

(ग) जहाँ सज्जनों का सम्मान होता है।

(घ) जहाँ लोगों को भरपेट भोजन मिलता है।

4. ‘देश वही होता जो सचमुच आगे बढ़ता कदम-कदम’ पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है?

(क) जो देश धीरे-धीरे कार्य करता है।

(ख) जो देश फूंक-फूंककर कदम रखता है।

(ग) जो देश प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

5. ‘परचम’ शब्द का अर्थ है-

(क) परचा

(ख) पंचम

(ग) झंडा

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. कविता की प्रारंभिक पंक्ति में कवि ने कौन-कौन-सी चीज़ों का उल्लेख किया है जिनका संबंध देश से नहीं होता?

2. कवि की कल्पना में देश की क्या-क्या विशेषताएँ है?

3. ‘संसद सड़कों आयोगों का नाम नहीं होता है देश’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

4. काव्यांश की अंतिम पंक्तियों में कवि क्या कहना चाह रहे हैं?

5. ‘परचम’ शब्द का अर्थ बताते हुए इस शब्द का प्रयोग वाक्य में कीजिए।

(7) वह प्रदीप जो दिख रहा है झिलमिल दूर नहीं है,

थककर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

चिंगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से,

चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से।

बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है.

थककर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,

सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश का।

एक खेप है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ,

वह देखो, उस पार चमकता है मंदिर प्रियतम का।

आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,

थककर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,

लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।

जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही

अंबर पर घन बन छाएगा ही उच्छवास तुम्हारा।

और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है.

थककर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. ‘वह प्रदीप जो दिख रहा है।’ पंक्ति में प्रयुक्त ‘प्रदीप’ शब्द किसका प्रतीक है?

(क) दीपक का (ख) लक्ष्य का (ग) संकट का (घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

2. ‘अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का’ पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है?

(क) अपने शरीर की हड्डियों को जलाकर मशाल बनाने से

(ख) अज्ञान का नाश करने से

(ग) कठिनाइयों के पथ पर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने से

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

3. सच्चा शूरवीर कौन नहीं होता?

(क) जो युद्ध नहीं करना चाहता।

(ख) जो संघर्ष नहीं करना चाहता।

(ग) जो लक्ष्य के नजदीक पहुँचकर कार्य को छोड़ देता है।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

4. इस काव्यांश के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

(क) जीवन में कुछ पाने के लिए परिश्रम करना चाहिए।

(ख) अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना चाहिए और अपने लक्ष्य को बीच में नहीं छोड़ देना चाहिए।

(ग) किसी की मदद लिए बिना आगे बढ़ना चाहिए।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

5. प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक क्या हो सकता है?

(क) चरण-चिह्न जगमग से

(ख) मंदिर प्रियतम का

(ग) आशा का दीपक

(घ) मंजिल दूर नहीं है

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. काव्यांश की पहली दो पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

2. दिशा दीप्त हो उठी प्रकाश तुम्हारा’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

3. ‘जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

4. कवि किसको जाँचने की बात कह रहे हैं?

5. प्रस्तुत काव्यांश में निहित संदेश लिखिए।

(8) देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं।

सेवा में बहुमूल्य भेंट ये कई रंग को लाते हैं।।

धूमधाम से साज-बाज से मंदिर में वे आते हैं।

मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।।

मैं ही हूँ गरीबनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई।

फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई।।

धूप, दीप, नैवेद्य नहीं है झाँकी का श्रृंगार नहीं।

हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं।।

मैं कैसे स्तुति करूँ तुम्हारी? है स्वर में माधुर्य नहीं।

मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं।।

नहीं दान है. नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आई।

पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ! चली आई।।

पूजा और पुजापा प्रभुवर, इसी पुजारिन को समझो।

दान-दक्षिणा और निछावर, इसी भिखारिन को समझो।।

मैं उन्मत्त प्रेम की प्यासी, हृदय दिखाने आई हूँ।

जो कुछ है, बस यही पास है, इसे चढ़ाने आई हूँ।।

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो।

यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो ।।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. कवयित्री भगवान को कुछ अर्पित कर पाने में लाचार हैं क्योंकि वे-

(क) लोभी हैं।

(ख) निर्धन हैं।

(ग) प्रभु को भेंट चढ़ाना नहीं चाहतीं।

(घ) इनमें से कोई नहीं।

2. ईश्वर के प्रति मन के भाव प्रकट करने के लिए किसकी आवश्यकता होती है?

(क) श्रद्धा की

(ख) बहुमूल्य वस्तुओं की

(ग) साज-श्रृंगार की

(घ) इनमें से कोई नहीं

3. ‘पुजापा’ से क्या तात्पर्य है?

(ख) पूजा करनेवाला व्यक्ति

(क) पुजारी

(ग) पूजा-सामग्री

(घ) इनमें से कोई नहीं

4. कवयित्री ईश्वर के चरणों में क्या अर्पित करती है?

(क) बहुमूल्य मुक्तामणियाँ

(ख) हृदय की भक्ति-भावना

(ग) धूप दीप नैवेद्य और पुष्प

(घ) तीनों उत्तर सही हैं

5. प्रस्तुत काव्यांश का उचित शीर्षक क्या होगा?

(क) गरीब की प्रार्थना

(ख) ठुकरा दो या प्यार करो

(ग) पूजा की प्रक्रिया

(घ) कैसे स्तुति करूँ?

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. मंदिर में बहुत से उपासक किस प्रकार क्या-क्या लेकर आते हैं?

2. कवयित्री ने अपने आपको ‘गरीबनी’ की संज्ञा क्यों दी है?

3. कवयित्री के अनुसार ईश्वर के प्रति मन का भाव प्रकट करने के लिए किसकी आवश्यकता होती है?

4. ‘पूजा और पुजापा प्रभुवर, इसी पुजारिन को समझो।’ पंक्ति के माध्यम से कवयित्री क्या कहना चाहती हैं?

5. काव्यांश के अंत में कवयित्री ईश्वर को क्या अर्पित करने की बात कहती हैं?

(9) राजा बैठे सिंहासन पर,

यह ताजों पर आसीन कलम

मेरा धन है स्वाधीन कलम।

जिसने तलवार शिवा को दी,

रोशनी उधार दीवा को दी,

पतवार थमा दी लहरों को,

खंजर की धार हवा को दी,

अग-जग के उसी विधाता ने,

कर दी मेरे अधीन कलम

मेरा धन है स्वाधीन कलम।

रस-गंगा लहरा देती है

मस्ती ध्वज फहरा देती है

चालीस करोड़ों की भोली.

किस्मत पर पहरा देती है

संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है

यही प्यार की बीन कलम,

मेरा धन है स्वाधीन कलम।

कोई जनता को क्या लूटे,

कोई दुखियों पर क्या टूटे,

कोई भी लाख प्रचार करे,

सच्चा बनकर झूठे-झूठे,

अनमोल सत्य का रत्नहार,

लाती चोरों से छीन कलम.

मेरा धन है स्वाधीन कलम।

बस मेरे पास हृदय-भर है,

यह भी जग को न्योछावर है

लिखता हूँ तो मेरे आगे

सारा ब्रह्मांड विषय-भर है,

रंगती चलती संसार-पटी,

यह सपनों को रंगीन कलम,

मेरा धन है स्वाधीन कलम।

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1. ‘कलम’ को स्वाधीन क्यों कहा गया है?

(क) कलम’ किसी के अधीन नहीं होती।

(ख) कलम की ताकत से गुलाम देश स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।

(ग) कलम का प्रयोग करने वाले सच्चे कवि किसी के अधीन नहीं होते।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

2. ‘कलम’ यहाँ किसका प्रतीक है?

(क) लेखनी का

(ख) साहित्यकार की रचनाओं का

(ग) पौधों की कलम का

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

3. ‘कलम’ को कवि ने ‘संग्राम-क्रांति का बिगुल’ क्यों कहा है?

(क) क्योंकि साहित्यकार अपनी रचनाओं से क्रांति का बिगुल बजा देते हैं।

(ख) क्योंकि इसके लिए लोग आपस में लड़ने लगते हैं।

(ग) क्योंकि युद्ध का संदेश कलम से लिखकर ही भेजता है।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

4. ‘अनमोल सत्य का रत्नहार, लाती चोरों से छीन कलम’ पंक्ति का आशय है-

(क) कलम चोरों को पकड़वा देती है।

(ख) चोरों और बेईमानों के कारनामों को कवि अपनी लेखनी से उजागर कर देते हैं।

(ग) चोरों को शिक्षा देती है।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

5. इस काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या होगा?

(क) क्रांति बिगुल

(ख) मेरा धन है स्वाधीन कलम

(ग) संग्राम क्रांति

(घ) मेरी कलम

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. ‘जिसने तलवार शिवा को मेरा धन स्वाधीन कलम’ इस अंश के माध्यम से कवि ईश्वर को क्यों धन्यवाद दे रहा है?

2. ‘कोई जनता को लाती चोरों से छीन कलम’ इस अंश में कवि ने कलम के किन-किन गुणों की चर्चा की है?

3. कवि किसकी स्वाधीनता की बात कर रहे हैं?

4. कलम चोरों से क्या छीनकर लाती है?

5. प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?

(10) जै जै प्यारे देश हमारे तीन लोक में सबसे न्यारे।

हिमगिरि-मुकुट मनोहर धारे जै जै सुभग सुवंश।। जै जै….||1||

हम बुलबुल तू गुल है प्यारा तू संबल तू देश हमारा।

हमने तन-मन तुझ पर बारा तेन-पुंज विशेष।। जै जै….||2||

तुझ पर हम निसार हो जायें तेरी रज हम शीश चढ़ावें।

जगत पिता से यही मनायें होए तू देशेश।। जै जै….||3||

आँख अगर कोई दिखलायें उसका दर्प-दलन हो जायें।

फल अपने कर्मों का पाए बने नामनि शेष।। जै जै….||4||

बल दो हमें ऐक्य सिखलाओ सँभलो देश होश में आओ।

मातृभूमि-सौभाग्य बढ़ाओं मेटो सकल कलेश। जै जै….||5||

हिंदू मुसलमान ईसाई यश गायें सब भाई-भाई।

सब के सब तेरे शैदाई फलो-फूलो स्वदेश। जै जै….||6||

इष्टदेव आधार हमारे तुम्ही गले के हार हमारे।

भक्ति मुक्ति के द्वार हमारे जै जै जै जै देश।। जै जै….||7||

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. पहले पद में कवि ने अपने देश का गुणगान किस रूप में किया है?

(क) हमारा देश तीनों लोकों में न्यारा है।

(ख) हिमालय हमारे देश का सुंदर मुकुट है।

(ग) उसका वेश अत्यंत सुंदर है।

(घ) तीनों उत्तर सही हैं।

2. अपने देश के साथ हमारा रिश्ता किस प्रकार का है? दूसरे पद के आधार पर बताइए।

(क) यदि हम बुलबुल हैं तो देश गुल है।

(ख) हमारा देश हमारा संबल अर्थात सहारा है।

(ग) हमने अपने देश पर अपना तन-मन न्योछावर कर दिया है।

(घ) तीनों उत्तर सही।

3. जो भी हमारे देश की ओर आँख उठाकर देखता है, उसका क्या हश्र होता है?

(क) उसको हम दर्पण दिखा देते हैं।

(ख) उसका दर्पण टूट जाता है।

(ग) उसका घमंड चूर-चूर हो जाता है।

(घ) तीनों उत्तर सही।

4. पाँचवें पद में कवि देश से निम्नलिखित में से क्या नहीं माँग रहा है?

(क) हमें शक्ति दो तथा एकता से रहना सिखाओ

(ख) सभी देशवासी सावधान हो जाएँ

(ग) मातृभूमि का सौभाग्य बढ़े

(घ) दूसरे देशों से युद्ध न हो

5. हिंदू, मुस्लिम तथा ईसाई लोगों से कवि ने क्या कहा है?

(क) सब लोग मिलकर रहें।

(ख) सब एक-दूसरे का यशोगान करें।

(ग) सभी लोग भाई-भाई की तरह देश का यशोगान करें।

(घ) तीनों उत्तर गलत हैं।

लघुत्तरीय प्रश्न-

1. कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना करते हैं?

2. हमारे प्यारे देश ने किसका मुकुट धारण कर रखा है?

3. पहले पद में कवि ने अपने देश का गुणगान किस रूप में किया है?

4. ‘बल दो हमें ऐक्य सिखलाओ’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या माँग रहा है?

5. काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

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