समास

अर्थ एवं परिभाषा

समास का अर्थ होता है- संक्षेप या सम्मिलन। दूसरे शब्दों में, दो या दो से अधिक पद जब अपने विभक्ति चिह्न या अन्य शब्दों को छोड़कर एक पद हो जाते हैं, तो समास कहलाते हैं अर्थात् दो शब्दों के मध्य की विभक्तियों का लोप कर नवीन पद निर्माण की प्रक्रिया को समास कहते हैं। एवं इस प्रकार निर्मित नवीन पद को सामासिक पद कहते हैं। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट करना समास का मुख्य प्रयोजन है।

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परिभाषा – दो या दो से अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उस शब्द को समासिक शब्द कहते हैं और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।

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उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर कहा जा सकता है कि- समास में कम से कम दो पदों का योग होता है। वे दो या दो से अधिक पद एक हो जाते हैं। समास में समस्त होने वाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है। समस्त पदों के बीच संधि की स्थिति होने पर संधि अवश्य होती है। जैसे- राजा की कन्या राजकन्या (की विभक्ति को छोड़ा) भाई और बहन-भाई-बहन (और शब्द को छोड़ा)। स्पष्ट है कि राजा की कन्या या भाई और बहन कहने से ज्यादा सटीक और संक्षिप्त है- राजकन्या या भाई-बहन शब्द कहना। ऐसे सामासिक शब्दों को समस्त-पद भी कहा जाता है। ऐसे पदों में कभी पहला पद (पूर्व-पद) प्रधान होता है, तो कभी दूसरा पद (उत्तर-पद)। कभी-कभी सभी प्रधान या गौण होते हैं। यहाँ राजकन्या में उत्तर-पद प्रधान है, अर्थात् लिंग, वचन और पुरुष कन्या (उत्तर-पद) के अनुसार होंगे, राज (पूर्व-पद) के अनुसार नहीं। जैसे राजकन्या आ रही है। (राजा नहीं आ रहा है, कन्या आ रही है)।

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समास-विग्रह

समस्त पद के सभी पद अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं। जैसे माता-पिता समस्त पद का विग्रह होगा माता और पिता, दिन-रात समस्त पद का विग्रह होगा दिन और रात। समास का विलोम विग्रह होता है। समास रचना में दो पद होते हैं। पहला पद पूर्व-पद तथा दूसरा पद उत्तर-पद कहलाता है। समास रचना के क्रम में का विभक्ति का लोप हो जाता है। जैसे-

पूर्व-पदउत्तर-पदसमास
राजा(का) पुत्रराजपुत्र
यश(को) प्राप्तयशप्राप्त
देश(का) भक्तदेशभक्त

समास के भेद

समस्त पदों के पदों की प्रधानता के आधार पर समास के चार मुख्य भेद माने गए हैं, अर्थात् समस्त पदों में कभी पूर्व-पद (प्रथम-पद) प्रधान होता है, कभी उत्तर-पद (दूसरा पद), कभी दोनों पद, तो कभी दोनों को छोड़कर कोई अन्य पद प्रधान होता है। समास के मुख्यतः चार भेद होते हैं-

  1. अव्ययीभाव समास
    • पूर्व पद (प्रथम पद) प्रधान
  2. तत्पुरुष समास
    • उत्तर-पद (दूसरा पद) प्रधान
  3. द्वन्द्व (द्वद्व) समास
    • दोनों पद प्रधान
  4. बहुव्रीहि समास
    • कोई पद प्रधान नहीं

अव्ययीभाव समास

जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और जो समूचा शब्द क्रिया-विशेषण अव्यय होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।

अव्ययीभाव समास की विशेषताएँ

अव्ययीभाव समास की अन्य परिभाषाएँ, लक्षण व विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. जिस समास के समस्त पद का पूर्व-पद प्रधान हो, वह अव्यय हो तथा उसके योग से सम्पूर्ण पद अव्यय बन जाये, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। पूर्व-पद अव्यय होने के कारण उसका रूप कभी नहीं बदलता।
  2. कुछ सामाजिक शब्द प्रायः अव्यय न होने पर भी उनकी स्थिति एवं प्रवृत्ति, अव्ययों जैसी रहती है, ऐसे ही शब्द अव्ययीभाव समास के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार जिस समास में पहला पद प्रधान और समस्त पद अव्यय (क्रिया विशेषण) का काम करें, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे यथाशक्ति, भरपेट, प्रतिदिन, बीचोंबीच ।
  3. अव्ययीभाव समास का पहला पद प्रायः अव्यय ही होता है, किन्तु कभी-कभी अपवाद स्वरूप पहला पद संज्ञा या विशेषण भी हो सकता है। ऐसा हिन्दी समासों में ही होता है, संस्कृत समासों में नहीं। जैसे- हिन्दी शब्द भरपेट, हाथों-हाथ, दिनों-दिन, घर-घर, हरघड़ी। इनके प्रथम शब्द क्रमशः भर (अव्यय) हाथ, दिन, घर (संज्ञा) तथा हर (विशेषण) है। संस्कृत शब्द – यथाशक्ति, प्रतिदिन, आमरण, यावज्जीवन, व्यर्थ। इनके प्रथम शब्द क्रमशः यथा, प्रति, आ, यावत् तथा वि शब्द अव्यय है।
  4. यथा, प्रति, भर तथा आ जिन शब्दों के पहले होते हैं, वे सब अव्ययीभाव कहलाते हैं। जैसे यथाक्रम, प्रत्येक, प्रतिवर्ष, भरसक।
  5. दिरुक्त शब्द बहुधा अव्ययीभाव होते हैं। जैसे घर-घर, पल-पल, क्षण-क्षण, वन-वन, घड़ी घड़ी।
  6. दिरुक्त शब्दों के बीच में ही अथवा आ आने पर भी अव्ययीभाव ही होता है। जैसे-मन-ही-मन, साथ ही साथ, आप ही आप, धड़ाधड़, एकाएक और सरासर।

अव्ययीभाव समास के मुख्य उदाहरण इस प्रकार हैं-

समस्त पदविग्रह
आजीवनजीवन भर
अभूतपूर्वजो पूर्व में नहीं हुआ है
अनजानेबिना जाने हुए
अनुगुणगुण के योग्य
आजानुजानु (घुटनो) तक
अकारणबिना कारण के
अनुसारजैसा सार है वैसा
उपगृहगृह के निकट
खण्ड-खण्डएक खण्ड से दूसरा खण्ड
गली-गलीप्रत्येक गली
गाँव-गाँवप्रत्येक गाँव
घर-घरप्रत्येक घर
निडरडर रहित
निर्विवादबिना विवाद के
निर्भयबिना भय के
परोक्षअक्षि (आँख) से परे
प्रत्यक्षअक्षि (आँखों) के सामने
प्रत्यंगहर अंग
बेकामबिना काम का
बीचोंबीचबीच के भी बीच में
बेरहमबिना रहम के
भरसकसक (सामर्थ्य) भर
मनमानामन के अनुसार
यथाक्रमक्रम के अनुसार
समक्षअक्षि के सामने
सापेक्षअपेक्षा सहित
यथार्थअर्थ के अनुसार
रातोंरातरात ही रात में
यथानियमनियम के अनुसार
यथामतिमति के अनुसार
प्रतिलिपिलिपि के समकक्ष लिपि
सपरिवारपरिवार के साथ
निगोड़बिना गोड़ (पैर) का
जीवन भरजीवन पर्यंत
भागम-भागभागने के बाद भागना
आजन्मजन्म से लेकर
हाथोंहाथहाथ ही हाथ में
यथासमयसमय के अनुसार
प्रत्येकएक-एक
यथाशीघ्रजितना शीघ्र हो सके
भरपेटपेट भरकर
प्रतिवर्षहर वर्ष
आमरणमरण तक
यथाशक्तिशक्ति के अनुसार
प्रतिदिनप्रत्येक दिन
आजानुबाहुजानु (घुटने) से बाहु तक
दरहक़ीकतहक़ीकत में
प्रतिक्षणहर क्षण
प्रतिपलहर पल
प्रतिध्वनिध्वनि की ध्वनि
प्रत्याशाआशा के बदले आशा
नीरवव (ध्वनि) रहित
सेवार्थसेवा के अर्थ
लूटमलूटलूट के बाद लूट
मंद-मंदमंद के बाद मंद
अनुकूलकूल के अनुसार
अनुरूपरूप के समान
आकण्ठकण्ठ तक

तत्पुरुष समास

जिस समास के समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- इस समास में पहला शब्द बहुधा संज्ञा अथवा विशेषण होता है और इसके विग्रह में इस शब्द के साथ कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़ शेष सभी कारकों की विभक्तियाँ लगती हैं। तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है तत् = वह, पुरुष = आदमी अर्थात् वह (दूसरा) आदमी। इस प्रकार तत्पुरुष स्वयं तत्पुरुष समास का एक अच्छा उदाहरण है। इसी आधार पर इसका नाम पड़ा है, क्योंकि तत्पुरुष में दूसरा पद प्रधान होता है। प्रथम पद गौण + उत्तर पद प्रधान। जैसे- राज-पुत्र जा रहा है। हवन-सामग्री लाओ। गंगाजल ले आओ। उपर्युक्त उदाहरणों में पुत्र, सामग्री व जल अर्थात् दूसरे पद प्रधान हैं। प्रथम उदाहरण में कहा गया है- राजपुत्र आ रहा है। इसमें राजा नहीं, बल्कि उसका पुत्र आ रहा है। अतः पुत्र शब्द प्रधान हुआ। दूसरे उदाहरण में कहा गया है- हवन सामग्री लाओ। यहाँ जलता हुआ हवन नहीं लाना है, बल्कि हवन में डाली जाने वाली सामग्री लानी है। अतः सामग्री शब्द प्रधान हुआ। तीसरे उदाहरण में कहा गया है- गंगा जल ले आओ। यहाँ गंगा नदी नहीं, बल्कि गंगा का जल लाना है। अतः यहाँ जल शब्द अर्थात् दूसरा पद प्रधान हुआ। इस प्रकार जिसमें दूसरा पद प्रधान हो, प्रथम-पद गौण हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के भेद

कर्ता और संबोधन को छोड़कर शेष छह कारकों की विभक्तियों के अर्थ में तत्पुरुष समास होता है। तत्पुरुष समास के मुख्यतः दो भेद हैं-

  1. व्यधिकरण तत्पुरुष
  2. समानाधिकरण तत्पुरुष

तत्पुरुष समास का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-

व्यधिकरण तत्पुरुष

जिस तत्पुरुष समास में पूर्व पद तथा उत्तर-पद की विभक्तियाँ या परसर्ग पृथक् पृथक् होते हैं, वहाँ व्यधिकरण तत्पुरुष समास होता है। संस्कृत में इन्हें द्वितीय तत्पुरुष या चतुर्थी तत्पुरुष जैसे नामों से विभक्त्यनुसार अभिहित किया जाता है, किन्तु हिन्दी में द्वितीय जैसी संज्ञाएँ न होने के कारण इन्हें कारकानुसार अभिहित किया जाता है।

व्यधिकरण तत्पुरुष समास के भेद

कारक चिह्नों के आधार पर तत्पुरुष समास के छह भेद हैं। इस आधार पर इसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास भी कहते हैं। इनका परिचय इस प्रकार है-

1. कर्म तत्पुरुष इस समास में कर्म कारक की विभक्ति को का लोप करके समस्त पद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
जनप्रियजन को प्रिय
शरणागतशरण को आगत
गिरहकटगिरह को काटने वाला
गृहागतगृह को आगत
मरणासन्नमरण को आसन्न (समीप)
अतिथ्यपर्णअतिथि को अर्पण
स्वर्गगतस्वर्ग को गया हुआ
सुखप्राप्तसुख को प्राप्त
स्वर्गीयस्वर्ग को गया हुआ
यशप्राप्तयश को प्राप्त
परलोकगमनपरलोक को गमन
ग्रामगतग्राम को गत
सर्वप्रियसब को प्रिय
जेबकतराजेब को कतरने वाला

2. करण तत्पुरुष इस समास में करण कारक की विभक्ति से, के द्वारा का लोप करके समस्त-पद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
मदांधमद से अन्धा
शोकाकुलशोक से आकुल
भयाकुलभय से आकुल
मनगढ़ंतमन से गढ़ा गया
स्वरचितस्व द्वारा रचित
भुखमराभूख से मरा
ईश्वरप्रदत्तईश्वर द्वारा प्रदत्त
आँखोंदेखीआँखों के द्वारा देखा हुआ
तुलसीकृततुलसी द्वारा कृत
कबीररचितकबीर के द्वारा रचित
रेखांकितरेखा से अंकित
हस्तलिखितहस्त से लिखित
अकालपीड़ितअकाल से पीड़ित
दयार्द्रदया से आर्द्र
सूररचितसूर से रचित
रोगमुक्तरोग से मुक्त
कष्टसाध्यकष्ट से साध्य
मनचाहामन से चाहा
गुणयुक्तगुण से युक्त
वाग्दत्तावाणी द्वारा दत्त
गुरुदत्तगुरु के द्वारा दत्त

3. संप्रदान तत्पुरुष इस समास में संप्रदान कारक की विभक्ति के लिए का लोप करके समस्तपद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
यज्ञशालायज्ञ के लिए शाला
प्रयोगशालाप्रयोग के लिए शाला
पाठशालापाठ के लिए शाला
पाकशालापाक के लिए शाला
विद्यालयविद्या के लिए आलय
गुरुदक्षिणागुरु के लिए दक्षिणा
युद्धभूमियुद्ध के लिए भूमि
मार्गव्ययमार्ग के लिए व्यय
रसोईघररसोई के लिए घर
युद्धक्षेत्रयुद्ध के लिए क्षेत्र
गौशालागौ के लिए शाला
डाकगाड़ीडाक के लिए गाड़ी
मालगाड़ीमाल के लिए गाड़ी
सवारीगाड़ीसवारी के लिए गाड़ी
राहखर्चराह के लिए खर्च
हवनसामग्रीहवन के लिए सामग्री
हथकड़ीहाथ के लिए कड़ी
सत्याग्रहसत्य के लिए आग्रह
धर्मशालाधर्म के लिए शाला
आरामकुर्सीआराम के लिए कुर्सी
देशार्पणदेश के लिए अर्पण
पुण्यदानपुण्य के लिए दान
युद्धाभ्यासयुद्ध के लिए अभ्यास
परीक्षाकेन्द्रपरीक्षा के लिए केन्द्र
अभ्यासकेन्द्रअभ्यास के लिए केन्द्र
व्यायामशालाव्यायाम के लिए शाला
चिकित्सालयचिकित्सा के लिए आलय
छात्रावासछात्रों के लिए आवास
तपोवनतप के लिए वन
देवबलिदेव के लिए बलि

4. अपादान तत्पुरुष इस समास में अपादान कारक की विभक्ति से का लोप करके समस्तपद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
भयभीतभय से भीत
पथभ्रष्टपथ से भ्रष्ट
अपराधमुक्तअपराध से मुक्त
पापमुक्तपाप से मुक्त
पापोद्धारपाप से उद्धार
गुणहीनगुण से हीन
धर्मभ्रष्टधर्म से भ्रष्ट
देशनिकालादेश से निकाला
जन्मांधजन्म से अंधा
ऋणमुक्तऋण से मुक्त
धर्मविमुखधर्म से विमुख
आशातीतआशा से अतीत
लक्ष्यभ्रष्टलक्ष्य से भ्रष्ट
जातिभ्रष्टजाति से भ्रष्ट
अभियोगमुक्तअभियोग से मुक्त
बंधनमुक्तबंधन से मुक्त
आवरण रहितआवरण से रहित
आवरणहीनआवरण से हीन
धनहीनधन से हीन
पदच्युतपद से च्युत
नेत्रहीननेत्र से हीन
विद्याहीनविद्या से हीन
विद्यारहितविद्या से रहित
स्वर्गपतितस्वर्ग से पतित

5. संबंध तत्पुरुष इस समास में संबंध कारक की विभक्ति का, के, की, रा, रे, री का लोप करके समस्त-पद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
लोकसभालोक की सभा
राज्यसभाराज्य की सभा
विधानसभाविधान की सभा
राजपुत्रराजा का पुत्र
राज्यभारराज्य का भार
देवदासदेव का दास
सेनापतिसेना का पति
उद्योगपतिउद्योग का पति
राष्ट्रपतिराष्ट्र का पति
भारतवासीभारत का वासी
बैलगाड़ीबैल की गाड़ी
प्रेमसागरप्रेम का सागर
दीनानाथदीनों का नाथ
देशवासीदेश का वासी
मृत्युदंड़मृत्यु का दंड़
आज्ञानुसारआज्ञा के अनुसार
सचिवालयसचिव का आलय
राजकुमारराजा का कुमार
राजपुरुषराजा का पुरुष
लखपतिलाखों का पति
दशरथपुत्रदशरथ का पुत्र
जीवनसाथीजीवन का साथी
राजभक्तिराजा की भक्ति
गंगातटगंगा का तट
राजनीतिज्ञराजनीति का ज्ञाता
पराधीनपर के अधीन
अमृतधाराअमृत की धारा
प्रजापतिप्रजा का पति
जलधाराजल की धारा
घुड़दौड़घोड़ों की दौड़
समयानुसारसमय के अनुसार
अवसरानुकूलअवसर के अनुकूल
क्षमादानक्षमा का दान

6. अधिकरण तत्पुरुष इस समास में अधिकरण कारक की विभक्ति में, पर का लोप करके समस्त-पद बनाया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
देशाटनदेश में अटन
दानवीरदान में वीर
कर्त्तव्यनिष्ठाकर्त्तव्य में निष्ठा
जलमग्नजल में मग्न
मृत्युंजयमृत्यु पर जय
पलाधारितपल पर आधारित
रथासीनरथ पर आसीन
रणोन्मत्तरण में उन्मत्त
दीनदयालदीन पर दयाल
पदारूढ़पद पर आरूढ़
पराश्रितपर पर आश्रित
विद्याप्रवीणविद्या में प्रवीण
भाषाधिकारभाषा पर अधिकार
कर्मास्थाकर्म में आस्था
पेटदर्दपेट में दर्द
सिरदर्दसिर में दर्द
कमरदर्दकमर में दर्द
शरणागतशरण में आगत
आत्मलीनआत्म में लीन
भूमिगतभूमि में गत
आत्मविश्वासआत्म में विश्वास
लोकप्रियलोक में प्रिय
हवाईयात्राहवा में यात्रा
रेलयात्रारेल में यात्रा
सर्वोपरिसर्व में ऊपर
सर्वश्रेष्ठसर्व में श्रेष्ठ
पुरुषोत्तमपुरुषों में उत्तम
ग्रामवासग्राम में वास
आपबीतीआप पर बीती
आनंदमग्नआनंद में मग्न
कुलश्रेष्ठकुल में श्रेष्ठ
वनवासवन में वास
नीतिनिपुणनीति में निपुण
व्यवहारकुशलव्यवहार में कुशल
कलानिपुणकला में निपुण
गृहप्रवेशगृह में प्रवेश
घुड़सवारघोड़े पर सवार
रथारूढ़रथ पर आरूढ़

व्यधिकरण तत्पुरुष समास के अन्य भेद

कारक चिह्नों के आधार पर व्यधिकरण तत्पुरुष समास के अलावा अन्य भेद निम्नलिखित हैं-

  1. अलुक्
  2. उपपद
  3. नञ्
  4. प्रादि

अलुक् तत्पुरुष लुक् शब्द का अर्थ है- प्रत्यय का लोप हो जाना। अलुक् का अर्थ है- प्रत्यय का लोप न होना। विभक्तियाँ प्रत्यय हैं। विभक्ति का लोप न होना अलुक् है। जिस व्यधिकरण समास में पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे अलुक् तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास में विभक्ति चिह्न ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जहाँ प्रथम पद (पूर्व-पद) में प्रयुक्त विभक्ति का लोप नहीं होता अर्थात् शब्द का विभक्ति के साथ ही प्रयोग होता है, वह अलुक् समास कहलाता है। जैसे- युधिष्ठिर-युद्ध में स्थिर रहने वाला। इस उदहारण में युद्ध की जगह युधि हो गया है अर्थात् में चिह्न मिल गया है जिससे सप्तमी विभक्ति हो गई है। इसी तरह तीर्थंकर- तीथर्थों को करने वाला। इसमें पहला शब्द तीर्थ नहीं है, तीर्थम् है अर्थात् संस्कृत के कर्म कारक की विभक्ति म् उपस्थित है, अतः तीर्थंकर अलुक् तत्पुरुष है।

उपपद तत्पुरुष कभी-कभी धातुओं में प्रत्यय लगाने के लिए अनिवार्य रूप से कोई न कोई उपपद रखना पड़ता है। ऐसे समस्त पदों को उपपद तत्पुरुष कहते हैं। पं. कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- जब तत्पुरुष समास का दूसरा पद ऐसा कृदंत होता है, जिसका स्वतंत्र उपयोग नहीं हो सकता; तब उस समास को उपपद समास कहते हैं। जैसे- कुंभकार कुंभ को करने वाला। जलज जल में उत्पन्न होने वाला। यहाँ कुंभकार में कार और जलज में ज दोनों अप्रचलित कृदंत हैं।

समस्त पदविग्रह
अंबुदअंबु को देने वाला
अंबुधिअंबु को धारण करने वाला
कृतज्ञकृत को मानने वाला
कष्टप्रदकष्ट को प्रदान करने वाला
कठफोड़वाकाठ को फोड़ने वाला
खगआकाश में गमन करने वाला
चर्मकारचर्म का कार्य करने वाला
चित्रकारचित्र को बनाने वाला
जलदजल को देने वाला
जलधिजल को धारण करने वाला
जलचरजल में विचरण करने वाला
तटस्थतट पर स्थिर रहने वाला
थलचरथल में विचरण करने वाला
दुःखदायीदुःख को देने वाला
स्वर्णकारस्वर्ण का कार्य करने वाला
स्वस्थस्व में स्थित रहने वाला
साहित्यकारसाहित्य का कार्य करने वाला
सुखदायीसुख को देने वाला
सुखप्रदसुख को प्रदान करने वाला
समस्त पदविग्रहविभक्ति
अंतेवासीसमीप में वास करने वालासप्तमी
खेचरआकाश में विचरण करने वालेसप्तमी
आत्मनेपदआत्म के लिए प्रयुक्त पदचतुर्थी
धनंजयधनं (कुबेर) को जय करने वालाद्वितीया
धुरधरधुरी को धारण करने वालाद्वितीया
परस्मैपदपर के लिए प्रयुक्त पदचतुर्थी
परमेष्ठीपरम (आकाश) में स्थिर रहने वालासप्तमी
भयंकरभय को करने वालाद्वितीया
प्रलयंकरप्रलय को करने वालाद्वितीया
मनसिजमन में जन्म लेने वालासप्तमी
शुभंकरशुभ को करने वालाद्वितीया

नञ् तत्पुरुष जिस समस्त पद का पहला पद अभावात्मक (नकारात्मक) हो, नञ् तत्पुरुष समास कहलाता है। इसके समस्त पद के प्रारंभ में अ या अन का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार शब्द के प्रारम्भ में अ या अन् को देखकर इस समास की पहचान सरलता से की जा सकती है, किन्तु विग्रह करते समय दोनों प्रकार के पदों में न का समान रूप से प्रयोग होता है। नञ का संक्षिप्त रूप ही न है।

समस्त पदविग्रह
अनाचारन आचार
अनिच्छुकन इच्छुक
अनुपयुक्तउपयुक्तता से रहित
अनश्वरन नश्वर
अनदेखान देखा हुआ
अनचाहान चाहा हुआ
अनजानन जाना हुआ
असत्यन सत्य
अकारणबिना कारण/न कारण
अडिगन डिगने वाला
अनावश्यकन आवश्यक
अनाश्रितबिना आश्रय के
अनशनभोजन से रहित
अनभिज्ञन अभिज्ञ
अनादिन आदि
अविकृतन विकृत
अप्रियन प्रिय
अमोघन मोघ
अलगन लगा हुआ
अकाजन काज (कार्य)
अटूटन टूटा हुआ
अनंतन अंत
अतृप्तन तृप्त
अनादिन आदि
अमंगलन मंगल
अलौकिकन लौकिक
अमिटन मिट
नालायकन लायक
नामुरादनहीं है मुराद जो
नाजायजन जायज

प्रादि तत्पुरुष जिस तत्पुरुष समास के प्रथम स्थान में उपसर्ग आता है, उसे संस्कृत व्याकरण में प्रादि तत्पुरुष समास कहते हैं। प्रादि (प्र+आदि) से उपसर्गों का बोध होता है। जिस समस्त पद में प्र, परा, अप आदि उपसर्ग पूर्व पद हों, उनमें प्रादि तत्पुरुष होता है।

समस्त पदविग्रह
अतिवृष्टिअधिक वृष्टि
अतिक्रमआगे जाना
उपदेवउप (छोटा) देव
प्रगतिप्रथम गति
प्रतिध्वनिध्वनि के बाद ध्वनि
प्रतिबिम्बबिम्ब के समान बिम्ब
प्रतिमूर्तिकिसी आकृति की नकल
प्रत्युपकारउपकार के पहले किया गया उपकार
परित्यक्तछोड़ दिया गया
प्राचार्यप्रकृष्ट आचार्य
प्रपर्णजिसके सभी पत्ते झड़ चुके हैं

समानाधिकरण तत्पुरुष/कर्मधारय समास

ऐसा तत्पुरुष समास, जिसके विग्रह में दोनों पदों के साथ एक ही (कर्ता कारक की) विभक्ति आती है, उसे समानाधिकरण तत्पुरुष अथवा कर्मधारय समास कहलाता है। समानाधिकरण तत्पुरुष के विग्रह में उसके दोनों शब्दों में एक ही विभक्ति लगती है। समानाधिकरण तत्पुरुष का प्रचलित नाम कर्मधारय है और यह कोई अलग समास नहीं है, किन्तु तत्पुरुष का केवल एक उपभेद है। जिस समस्त पद का उत्तर-पद प्रधान हो तथा पूर्व-पद एवं उत्तर-पद में विशेषण विशेष्य अथवा उपमान उपमेय का संबंध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। कर्मधारय समास और तत्पुरुष समास में प्रमुख अन्तर यह है कि तत्पुरुष समास में द्वितीया से सप्तमी विभक्ति अर्थात् कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण तक के चिह्नों का प्रथम पद में प्रयोग होता है जबकि इसमें (कर्मधारय) केवल एक ही विभक्ति (कर्त्ताकारक) चिह्न का प्रयोग होता है।

कर्मधारय समास की विशेषताएँ

कर्मधारय समास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. समस्त पद का उत्तर-पद प्रधान होता है।
  2. कर्मधारय तत्पुरुष समास का ही एक उपभेद है।
  3. कभी कर्मधारय के दोनों ही पद संज्ञा या दोनों ही पद विशेषण होते हैं। कभी-कभी पूर्व-पद संज्ञा और उत्तर-पद विशेषण होता है।
  4. पूर्व पद मुख्यतः विशेषण होता है और जिसके दोनों पद विग्रह करके कर्ताकारक में ही रखे जाते हैं।
  5. इस समास में उपमान उपमेय, उपमेय-उपमान, विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण-विशेषण, विशेष्य-विशेष्य का प्रयोग होता है तथा प्रायः दो पद होते हैं और विशेष बात यह है कि दोनों ही पद प्रायः एक ही विभक्ति (कर्ताकारक) में प्रयुक्त होते हैं।

यहाँ विशेषण और विशेष्य तथा उपमेय-उपमान के विषय में स्पष्ट कर देते हैं-

  1. विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे काली, गोरी, अधिक, कम, एक, दो, ऊँचा, नीचा आदि।
  2. विशेष्य विशेषण शब्द जिस शब्द की विशेषता बताते हैं, उसे विशेष्य कहते हैं।
  3. उपमेय जिस व्यक्ति या वस्तु को उपमा दी जा रही है।
  4. उपमान जिस व्यक्ति या वस्तु की उपमा दी जा रही है। जैसे- मुख चंद्रमा है। यहाँ मुख, उपमेय तथा चंद्रमा, उपमान है।

कर्मधारय समास के भेद

कर्मधारय समास के दो भेद होते हैं-

  1. विशेषता वाचक कर्मधारय
  2. उपमान वाचक कर्मधारय

1. विशेषता वाचक कर्मधारय ऐसा समास, जिसमें विशेष्य-विशेषण भाव सूचित होता है, विशेषता वाचक कर्मधारय समास कहलाता है। विशेषतावाचक कर्मधारय समास के सात भेद होते हैं, जिनका सोदाहरण संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. विशेषण पूर्वपद जिसमें प्रथम पद विशेषण होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
अंधविश्वासअंध है जो विश्वास
अल्पावधिअल्प है जो अवधि
अल्पबचतअल्प है जो बचत
अल्पजीवीअल्प है जो जीवी
अल्पेच्छअल्प है जिसकी इच्छा
अधमराआधा है जो मरा हुआ
अधिकार्थअधिक है जिसका अर्थ
अल्पेच्छाअल्प है जो इच्छा
अल्पायुअल्प है जो आयु
अल्पसंख्यकअल्प है संख्या जो
अल्पाहारअल्प है जो आहार
अरुणाभअरूण है आभा जो
अरूणाचलअरूण है जो अचल
अधपकाआधा है जो पका
अंधभक्तिअंध है जो भक्ति
अंधश्रद्धाअंध है जो श्रद्धा
उदयाचलउदय होता है जिस अचल से
शुभ्रवर्णशुभ्र (सफ़ेद) है जो वर्ण
शुक्लपक्षशुक्ल है जो पक्ष
सद्धर्मसत् है जो धर्म
सज्जनसत् है जो जन
सद्बुद्धिसत् है जो बुद्धि
सद्भावनासत् है जो भावना
सदाचारसत् है जो आचार
सुन्दरलालसुन्दर है जो लाल
सुदर्शनअच्छे हैं जिसके दर्शन
सुपाच्यसुष्ठ (अच्छा) है जो पचने में
सुलभ्यआसानी से लभ्य है जो
सुपथअच्छा है जो पथ
सद्गुणसत् है जो गुण
सत्परामर्शसत् है जो परामर्श
सन्मार्गसत् है जो मार्ग
सुबोधअच्छा (सरल) है जिसका बोध
सुपुत्रअच्छा है जो पुत्र
सुयोगसुष्ठ (अच्छा) है जो योग
सुलोचनासुन्दर है लोचन जिसके
सूर्यमुखीसूर्य के समान मुख वाला
हीनार्थहीन है अर्थ जो
हताशाहत है जो आशा
नीलगगननीला है जो गगन
नीलोत्पलनीला है जो उत्पल (कमल)
नीलगायनीली है जो गाय
परमात्मापरम है जो आत्मा
परमाणुपरम है जो आणु
प्राणप्रियप्राणों के समान प्रिय
पीताम्बरपीला है जो वस्त्र
पुच्छलतारापूँछ है जिस तारे के या पूँछ वाला तारा
परमानन्दपरम है जो आनन्द
पनघटपानी भरा जाने वाला घाट
प्रियजनप्रिय है जो जन
पूर्वकालपूर्व है जो काल
पूर्णांकपूर्ण है जो अंक
बड़ाघरबड़ा है जो घर
बहुमूल्यबहुत है मूल्य जिसका
बहुसंख्यकबहुत है संख्या जो
भलामानसभला है जो मनुष्य
भ्रष्टाचारभ्रष्ट है जो आचार
मंदाग्निअग्नि जो मंद है
महात्मामहान् है जो आत्मा
महाराजामहान् है जो राजा
महादेवमहान् है जो देव
मंदभाग्यमंद है भाग्य जो
महाकालमहान् है जो काल
मीनाक्षीमछली के समान है जो आँख (आँखों वाली)
रक्तकमलरक्त जैसा है जो कमल
रक्तलोचनरक्त (लाल) है जो लोचन
राजीवनयनकमल के समान है जो नेत्र
लालकुर्तीलाल है जो कुर्ती
लघूत्तरलघु है जो उत्तर
विशालबाहुविशाल है जिसकी बाहुएँ
विशालकायविशाल है जिसकी काया

इस समास में हिन्दी के उदाहरण कम ही मिलते हैं। इसका कारण यह है कि हिन्दी में संस्कृत के समान, विशेष्य के साथ विशेषणों में विभक्ति का योग नहीं होता, अर्थात् विशेषण विभक्ति त्याग कर विशेष्य में नहीं मिलता। इसलिए हिन्दी में कर्मधारय समास उन्हीं विशेषणों के साथ होता है, जिनमें कुछ रूपांतर हो जाता है अथवा जिनके कारण विशेष्य से किसी विशेष वस्तु का बोध होता है, जैसे- छुटभैया, कालीमिर्च, बड़ाघर। इस समास में विशेषण के रूप में पूर्व-पद अगर कुत्सित हो, तो उसके स्थान पर क, का या कद हो जाता है। लेकिन यह केवल संस्कृत के समास में ही होता है हिन्दी में नहीं। जैसे-

संस्कृत के सामासिक पद

  • कुत्सित पुरुष – कुपुरुष या कापुरुष
  • कुत्सित अन्न – कदन्न

हिन्दी के सामासिक पद

  • लालकुर्सी – लाल है जो कुर्सी
  • श्यामघन – काला है जो बादल
  • शिष्टाचार – शिष्ट है जिसका आचार
  • शुभागमन – शुभ है जो आगमन
  • कुघड़ी – बुरा समय (बुरी घड़ी)
  • कुपंथ – बुरा पंथ (बुरा रास्ता)
  • श्वेतांबर – श्वेत है जो वस्त्र

2. विशेषणोत्तरपद जिस कर्मधारय समास में दूसरा पद विशेषण होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
जन्मांतरजन्म है जो अन्य
नराधमअधम है जो नरों में
प्रभुदयालदयाल है जो प्रभु
पुरुषोत्तमउत्तम है जो पुरुषों में
रामदीनदीन है जो राम
रामदयालदयालु है जो राम
रामकृपालकृपालु है जो राम
मुनिवरवर (श्रेष्ठ) है जो मुनियों में
शिवदयालदयालु है जो शिव
शिवदीनदीन है जो शिव

3. विशेषणोभयपद इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं। जैसे-

समस्त पदविग्रह
ऊँच-नीचऊँचा है जो नीचा है जो
कालास्याहजो काला है जो स्याह (काला) है
कृताकृतकिया-बेकिया (अर्थात् अधूरा छोड़ दिया)
खटमीठाजो खट्टा है जो मीठा है
गोरागट्टअत्यंत गोरा
देवर्षिजो देव है जो ऋषि है
दो-चारदो हैं जो चार हैं जो
नीलपीतजो नीला है, जो पीला है जो
नीललोहितनीला है जो, लाल है जो
पीलाजर्दजो पीला है, जो जर्द (पीला) है
बड़ा-छोटाजो बड़ा है जो छोटा है
भला-बुराजो भला है जो बुरा है
मृदुमंदजो मृदु है जो मंद है
लालसुर्खजो लाल है जो सुर्ख (लाल) है
मोटा-ताजाजो मोटा है जो ताजा है
लाल-पीलाजो लाल है जो पीला है
लालचट्टअत्यंत लाल
श्यामसुन्दरजो श्याम है जो सुन्दर है
सफेदझक्कअत्यंत सफेद
सख्त-सुस्तजो सख्त है जो सुस्त है

हिन्दी के उदाहरण

  • अधमरा – आधा है जो मरा हुआ
  • दुकाल – बुरा काल (बुरा है जो काल)

उर्दू उदाहरण– सख्त, सुस्त, नेक-बद, कम-बेश आदि।

4. विशेष्यपूर्वपद इसमें पूर्व-पद (प्रथम पद) विशेष्य होता है। इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते हैं। जैसे-

समस्त पदविग्रह
धर्मबुद्धिधर्म है यह बुद्धि (धर्म विषयक बुद्धि)
विंध्यपर्वतविंध्य नामक पर्वत
मदन मनोहरमदन जो मनोहर है
श्याम सुन्दरश्याम, जो सुन्दर है
जनक खेतिहरजनक जो खेतिहर (खेती करने वाला) है

5. अव्यय पूर्वपद जहाँ समस्त पद में पूर्व पद अव्यय हो, लेकिन उत्तर-पद प्रधान हो, वहाँ अव्ययपूर्व पद कर्मधारय समास होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
दुर्वचनबुरे वचन
निराशाआशा से रहित
सुयोगअच्छा योग (अच्छा है जो योग)
कुवेशबुरा है जो वेश

6. संख्या पूर्वपद (द्विगु समास) जिस कर्मधारय समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और जिससे समुदाय (समाहार) का बोध होता है, उसे संख्या पूर्वपद कर्मधारय समास कहते हैं। इसी समास को संस्कृत व्याकरण में द्विगु समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस समास में पहला पद संख्यावाचक हो, दोनों पदों के बीच विशेषण-विशेष्य संबंध हो और समस्त पद समूह (समाहार) का ज्ञान कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे-

समस्त पदविग्रह
अष्टाध्यायीअष्ट अध्यायों का समूह
अष्टभुजअष्ट भुजाओं का समूह
अठवाराआठ वार या दिन को लगने वाला बाजार
अठमासाआठ महीनों का समूह
अष्टधातुअष्ट धातुओं का समूह
अष्टसिद्धिअष्ट सिद्धियों का समूह
अठन्नीआठ आनों का समूह
इकट्ठाएक स्थान पर स्थित
इकलौताएक ही है जो
एकांकीएक अंक का (नाटक)
पदविग्रहसमस्त पदविग्रह
एकतरफाएक तरफ वालात्रिनेत्रतीन नेत्रों का समूह
एकतंत्रएक का तंत्रदशाब्दी/दशकदस वर्षों का समूह
चतुर्युगचार युगों का समूहद्विवेदी/दुबेदो वेदों को जानने वाला
चतुरंगणीचार अंगों वाली सेनाद्विगुदो गौओं का समूह
चतुर्भुजचार भुजाओं वालादुपहियादो जिसके पहिए
चतुष्पदीचार पदों का समूहदुधारीदो धारों से युक्त
चवन्नीचार आनों का समूहदुमटदो प्रकार की मिट्टी
चतुर्वर्गचार वर्गों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का समूहदुगुनादो बार गुना
चहारदीवारीचार दीवारों का समूहदुबारादो बार
चौराहाचार राहों का समाहारदुराहादो राहों का समूह
चौमासाचार मासों का समूहदुमंज़िलादो है मंज़िलों से युक्त
चारपाईचार पैरों वालीदुअन्नीदो आनों का समूह
चतुर्वेदीचार वेदों का समूहदुनालीदो नाल वाली
चौराहाचार राहों का समूहदुपट्टादो पाट वाला
चौघड़ाचार घड़ों वालादोलड़ादो लड़ियों से युक्त
चौमहल्लाचार महलों का समूहदोपहरदो प्रहर (पहर) के बाद का समय
चौकोरचार कोर (कोनों) का समूहनवरात्रनौ रात्रियों का समूह
छमाहीछह माह का समूहनवग्रहनौ ग्रहों का समूह
छदामछह हो दामनवरत्ननौ रत्नों का समूह
तिबारातीन द्वारों के समूह वालानौलखानौ लाख रुपये के मूल्य का
तिराहातीन राहों का समूहपंचतंत्रपाँच तंत्रों का समूह
तिमाहीतीन माह के बाद आने वालीपंचरात्रपाँच रातों का समूह
तिरंगातीन रंगों के समूह वालापंसेरी/पनसेरीपाँच सेरों का समूह
तिकोनातीन कोनों वालापंचरंगापाँच रंगों का
त्रिकालतीन कालों का समूहपंचरात्रपाँच रात्रियों का समूह
त्रिवेणीतीन वेणियों (धाराओं) का समूहपंचांगपाँच अंगों का समूह
त्रिलोकतीन लोकों का समूहपंचतंत्रपाँच तंत्रों का समूह
त्रिवेदतीन वेदों का समूहपंचामृतपाँच अमृतों का समूह
त्रिवेदीतीन वेदों को जानने वालापंचमढ़ीपाँच मढ़ी हो जहाँ
त्रिमूर्तितीन मूर्तियों का समूहपंचमहाभूतपाँच महाभूतों का समूह
त्रिलोकीतीन लोकों का स्वामीपंचवटीपाँच वटों का समूह
त्रिभुवनतीन भुवनों का समूहपंचतंमात्राएँपाँच तन मात्राओं का समूह
त्रिवेदीतीन वेदों का ज्ञातापंजाबपाँच हो आब (पानी, नदियाँ)
त्रिगुणतीन गुणों वालाशताब्दीसौ अब्दों (वर्षों) का समूह
त्रिशुलतीन शूलों का समूहषऋतुछह ऋतुओं का समूह
त्रिपिटिकतीन पिटकों का समूहषड्रसछह रसों का समूह
त्रिभुजतीन भुजाओं वालाषड्गुणछह प्रकार के गुण
त्रिफलातीन फलों का समूहसप्तसिंधुसात सिंधुओं का समूह
समस्त पदविग्रह
सतरंगसात रंगों का समूह
सतसईसात सौ पदों का समूह
सप्ताहसात दिनों का समूह
सप्तपदीसात पदों का समूह
सतमासासात महीनों का समूह
सहस्राब्दीसहस्र अब्दों (वर्षों) का समूह
सप्तशतीसात सौ (श्लोक) का समूह
सतनजासात प्रकार का अनाज
हटवाड़ाआठ वारों (दिनों) का समूह

7. मध्यम पद लोपी जिस समस्त पद के पूर्व पद और उत्तर-पद के मध्य में आने वाले कारक चिह्न परसर्ग या अन्य कोई पद के लुप्त होने पर बनने वाला समास मध्य पद लोपी समास कहलाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
पकौड़ीपकी हुई बड़ी
पनडुब्बीपानी में डूबकर चलने वाली पोत
पनचक्कीपानी से चलने वाली चक्की
पन बिजलीपानी से बनने वाली बिजली
फुलौड़ीफुली हुई बड़ी
पवनचक्कीपवन से चलने वाली चक्की
बड़बोलाबड़ी बात बोलने वाला
बैलगाड़ीबैलों से चलने वाली गाड़ी
पर्णशालापर्ण निर्मित शाला
मर्यादा पुरुषमर्यादा रक्षक पुरुष
रसगुल्लारस में डूबा हुआ गुल्ला
रेलगाड़ीपटरी पर चलने वाली गाड़ी
वनमानुषवन में रहने वाला मानुष
वायुयानवायु में चलने वाला यान
स्वर्णकंकरस्वर्ण निर्मित कंकर
स्वर्णहारस्वर्ण निर्मित हार
शकरपाराशक्कर से बना पारा
हाथघड़ीहाथ में लगाई जाने वाली घड़ी
हथकरघाहाथों से चलने वाला करघा
अश्रुगैसअश्रु लाने वाली गैस
कन्यादानकन्या का वैदिक मंत्रों के साथ श्रेष्ठ वर के साथ किया गया दान
कीर्तिमंदिरकीर्ति से बना मंदिर
गुड़धानीगुड़ में मिली हुई धानी
गीदड़भभकीगीदड़ जैसी भभकी
गुरुभाईएक ही गुरु से पढ़ा हुआ
गोबर-गणेशगोबर का बना गणेश
घृतान्नघृत मिश्रित अन्न
घोड़ागाड़ीघोड़े से चलने वाली गाड़ी
छायातरूछाया देने वाला तरू
जलमुर्गीजल में रहने वाली मुर्गी
जटाशंकरजटा युक्त शंकर
जलकुम्भीजल में उत्पन्न होने वाली कुम्भी
जलकौआजल में रहने वाला कौआ
जलपोतजल में रहने वाला पोत
जलयानजल पर चलने वाला यान
जेबघड़ीजेब में रखी जाने वाली घड़ी
डाकगाड़ीडाक लेकर जाने वाली गाड़ी
तिलचावलातिल मिश्रित चावल
तुलादानतुला (तराजू) में तोलकर बराबर मात्रा में दिया गया दान
देव ब्राह्मणदेव पूजक ब्राह्मण
दही बड़ादही में डूबा हुआ बड़ा

उपर्युक्त उदाहरणों में पदों के मध्य योजक शब्दों का लोप हुआ है।

उपमानवाचक कर्मधारय जिस समास में उपमानोपमेय भाव सूचित होता है, उसे उपमानवाचक कर्मधारय कहते हैं। उपमानवाचक कर्मधारय के भेद निम्नांकित है-

  1. उपमापूर्वपद
  2. उपमानोत्तरपद
  3. अवधारणापूर्वपद
  4. अवधारणोत्तर पद

1. उपमापूर्वपद जिस वस्तु की उपमा देते हैं उसका वाचक शब्द जिस समास के आरंभ में आता है, उसे उपमापूर्व पद समास कहते हैं। उपमान-उपमेय का परस्पर संबंध होता है तथा पहला पद उपमान होता है, वहाँ उपमान पूर्वपद समास होता है। जैसे मुख चन्द्रमा है। यहाँ मुख उपमेय तथा चन्द्रमा उपमान हैं। अतः इस समास के अनुसार चंद्रमुख समस्त पद बनेगा, क्योंकि इस समास में उपमान पहले आता है तथा उपमेय बाद में। यहाँ चन्द्रमा उपमान है तथा मुख उपमेय है। अतः उपमान-उपमेय अर्थात् पहले पद में उपमान तथा उत्तर-पद में उपमेय का प्रयोग होगा तथा इसका विग्रह होगा चंद्रमा के समान मुख। इसी प्रकार अन्य उदाहरण निम्नांकित हैं-

समस्त पदविग्रह
अरविंद लोचनअरविंद (कमल) के समान लोचन
कमलाक्षकमल के समान अक्षि (आँखें)
कमलनयनकमल के समान नयन
कुसुम हृदयकुसुम के समान हृदय
कुसुमकोमलकुसुम के समान कोमल
कोकिल वयनीकोयल के समान बोल
घनश्यामघन की तरह श्याम
चंद्राननचन्द्रमा के समान आनन
चंद्रवदनचन्द्रमा के समान वदन (मुँह)
ज्वालामुखीज्वाला के समान मुख
नीरज नयननीरज (कमल) के समान नयन
प्राणप्रियप्राणों के समान प्रिय
पाषाणहृदयपाषाण के समान हृदय
भीष्मवतभीष्म के समान
मृगनयनीमृग के नयनों के समान नयन वाली
मीनाक्षीमीन (मछली) के समान आँखों वाली
राजीवलोचनराजीव (कमल) के समान लोचन (नेत्र)
लौह पुरुषलौह के समान पुरुष
वज्रहृदयवज्र के समान हृदय
वज्रदेहवज्र के समान देह
विद्युत चंचलाविद्युत के समान चंचल
सिंधु हृदयसिंधु के समान हृदय
सूर्यमुखीसूर्य के समान मुख
हंसगामिनीहंस के समान चाल

2. उपमानोत्तरपद इस समास में प्रथम पद (पूर्व-पद) में उपमेय तथा उत्तर-पद में उपमान का प्रयोग होता है तथा जहाँ उपमेय व उपमान मिलकर एक हो जाएँ, वहाँ रुपक अलंकार होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
नर केसरीकेसरी (शेर) रूपी नर
नरशार्दूलशार्दूल (बाघ) रूपी नर
नरसिंहसिंह रूपी नर
नेत्र-कमलकमल रूपी नेत्र
पद-पंकजपंकज रूपी पद
पाणि-पल्लवपल्लव के समान पाणि (हाथ)
पुरुषसिंहसिंह रूपी पुरुष
भवसागरसागर रूपी संसार
भुजदंडदंड (डंडा) रूपी भुजा
मुख चंद्रचंद्र रूपी मुख
मुख कमलकमल रूपी मुख
मुखारविंदअरविंद रूपी मुख
मुखशशिशशि रूपी मुख
राजर्षिऋषि रूपी राजा
वदन सुधाकरसुधाकर रूपी वदन
वचनामृतअमृत रूपी वचन
विद्याधनधन रूपी विद्या
विरह सागरसागर रूपी विरह
शोकानलअनल रूपी शोक
शोकसागरसागर रूपी शोक
स्त्री-रत्न (स्त्रिरत्न)रत्न रूपी स्त्री (योजक चिह्न का लोप होने पर हस्व ‘इ’ हो जाता है।)
संसार-सागरसागर रूपी संसार
हस्तारविंदअरविंद रूपी हस्त
अधर पल्लवपल्लव रूपी अधर
कर-किसलयकिसलय (कोमल पत्ता) रूपी कर
कर-कमलकमल रूपी कर
कीर्तिलतालता रूपी कीर्ति
क्रोधाग्निअग्नि रूपी क्रोध
ग्रंथ रत्नरत्न रूपी ग्रंथ
चरण-कमलकमल रूपी चरण
देहलतादेह रूपी लता
देवर्षिऋषि रूपी देव

3. अवधारणापूर्वपद जिस समास में पूर्व-पद के अर्थ पर उत्तर-पद का अर्थ अवलंबित रहता है, उसे अवधारणापूर्व पद कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे-

समस्त पदविग्रह
गुरुदेवगुरु ही देव अथवा गुरु रूपी देव
कर्मबंधकर्म ही बंधन अथवा कर्म रूपी बंधन
पुरुषरत्नपुरुष ही रत्न अथवा पुरुष रूपी रत्न
धर्म सेतुधर्म ही सेतु अथवा धर्म रूपी सेतु
बुद्धिबलबुद्धि ही बल अथवा बुद्धि रूपी बल
विद्यारत्नविद्या ही रत्न अथवा विद्या रूपी रत्न
भाष्याब्धिभाष्य ही अब्धि (समुद्र) या भाष्य रूपी अब्धि (समुद्र)
मुखचंद्रमुख ही चंद्र अथवा मुख रूपी चंद्र
पुत्ररत्नपुत्र ही रत्न अथवा पुत्र रूपी रत्न
स्त्रीरत्नुस्त्री ही रत्न अथवा स्त्री रूपी रत्न

4. अवधारणोत्तर पद जिस समास में दूसरे पद के अर्थ पर पहले पद का अर्थ अवलंबित रहता है, उसे अवधारणोत्तर पद कहते हैं। जैसे साधुसमाज प्रयाग (साधुसमाज रूपी प्रयाग)। इस उदाहरण में दूसरे शब्द प्रयाग के अर्थ पर प्रथम पद साधुसमाज का अर्थ अवलंबित है।

द्वन्द्व समास

जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। दो शब्दों के बीच और, अथवा, तथा, एवं, या, जैसे योजक शब्दों के लोप होने से जुड़ने वाले समस्तपद में द्वन्द्व (द्वंद्व) समास होता है। द्वन्द्व समास के मुख्यतः तीन भेद हैं-

  1. इतरेतर द्वन्द्व
  2. समाहार द्वन्द्व
  3. वैकल्पिक द्वन्द्व।

1. इतरेतर द्वन्द्व जिस समास के सब पद और समुच्चयबोधक से जुड़े हों, लेकिन समुच्चय बोधक और का लोप हो, उसे इतरेतर द्वन्द्व कहते हैं। इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों का अलग-अलग महत्त्व होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
राधाकृष्णराधा और कृष्ण
कंद-मूल-फलकंद, मूल और फल
पच्चीसपाँच और बीस
अड़सठआठ और साठ
हरिहरहरि (विष्णु) और हर (महादेव)
दाल-रोटीदाल और रोटी
अमीर-गरीबअमीर और गरीब
चर-अचरचर और अचर
नमक-मिर्चनमक और मिर्च
अड़तालीसआठ और चालीस
अड़तीसआठ और तीस
छत्तीसछह और तीस
मर्द-औरतमर्द और औरत
राम-रहीमराम और रहीम
राजा-रंकराजा और रंक
लाभ-हानिलाभ और हानि
सजीव-निर्जीवसजीव और निर्जीव
राम-कृष्णराम और कृष्ण

2. समाहार द्वन्द्व जिस द्वन्द्व समास में उसके पदों के अर्थ के सिवा उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित हो, उसे समाहार द्वन्द्व कहते हैं। ऐसे समासों का विग्रह करने में इत्यादि, आदि का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
बहू-बेटीबहू, बेटी आदि
कपड़ा-लत्ताकपड़ा, लत्ता आदि
धन-दौलतधन, दौलत आदि
चलता-फिरताचलता-फिरता आदि
फल-फूलफल, फूल आदि
खान-पानखान, पान आदि
जीव-जंतुजीव, जंतु आदि
अड़ोस-पड़ोसअड़ोस, पड़ोस आदि
मेल-मिलापमेल, मिलाप आदि
रुपया-पैसारुपया, पैसा आदि
घर-द्वारघर, द्वार आदि
घर-आँगनघर, आँगन आदि

3. वैकल्पिक द्वन्द्व जिस समास के दोनों पदों के बीच विकल्प सूचक शब्द या, अथवा का लोप रहता है, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते हैं। इस समास में बहुधा परस्पर विरोधी शब्दों का मेल होता है। जैसे-

समस्त पदविग्रह
धर्माधर्मधर्म या अधर्म
यश-अपयशयश या अपयश
सुख-दुःखसुख या दुःख
थोड़ा-बहुतथोड़ा या बहुत
पाप-पुण्यपाप या पुण्य
ठण्डा-गरमठण्डा या गरम
लाभालाभलाभ या अलाभ
सागपातसाग या पात
हाँ-नाहाँ या ना
जोड़-तोड़जोड़ या तोड़
लेन-देनलेना या देना

बहुव्रीहि समास

इस समास में न तो पूर्व-पद प्रधान होता है और नहीं उत्तर-पद प्रधान होता है। दोनों ही पद गौण होते हैं। इसलिए समस्त पद (सामासिक शब्द) से किसी अन्य विशेष अर्थ का बोध होता है। जैसे वीणापाणि- वीणा है पाणि में जिसके (सरस्वती), त्रिलोचन तीन हैं लोचन जिसके- (शिव), इसमें त्रि-लोचन दोनों ही पद गौण हैं, पर अन्य पद शिव के सम्बन्ध में कहा गया है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण निम्नांकित है-

समस्त पदविग्रह
चतुर्भुजचार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् विष्णु
हृषीकेशवह जो हृषीक (इंद्रियों) के ईश हैं अर्थात् विष्णु
श्रीशवह जो श्री (लक्ष्मी) के ईश हैं अर्थात् विष्णु
पद्मनाभपद्म है जिसकी नाभि में अर्थात् विष्णु
गरुड़ध्वजवह जिसके गरुड़ का ध्वज है अर्थात् विष्णु
चक्रपाणिवह जिसके पाणि में चक्र है अर्थात् विष्णु
दीर्घबाहुदीर्घ है बाहु जिसके वह अर्थात् विष्णु
पुंडरीकवह जो कमल के समान है अर्थात् विष्णु
घनश्यामवह जो श्याम घन के समान है अर्थात् श्रीकृष्ण
गिरधरवह जो गिरी को धारण करने वाला है अर्थात् श्रीकृष्ण
मधुसूदनवह जो मधु (राक्षस) का सूदन (वध) करने वाला है अर्थात् श्रीकृष्ण
ब्रजेशवह जो ब्रज के ईश हैं अर्थात् श्रीकृष्ण
कंसारिवह जो कंस के अरि हैं अर्थात् श्रीकृष्ण
यदुनंदनवह जो यदु के नंदन हैं अर्थात् श्रीकृष्ण
चक्रधरचक्र को धारण करता है जो अर्थात् श्रीकृष्ण
पीताम्बरपीत (पीला) है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
गोपालवह जो, गौ का पालन करे अर्थात् श्रीकृष्ण
मुरारिवह जो मुर (राक्षस) के अरि (शत्रु) है अर्थात् श्रीकृष्ण
नीलकण्ठनीला कण्ठ है जिसका अर्थात् शिवजी
त्रिलोचनत्रि (तीन) लोचन है जिसके अर्थात् शिवजी
शूलपाणिशूल (त्रिशुल) है पाणि में जिसके अर्थात् शिवजी
त्र्यंबकजिनके तीन अंबाएँ (माताएँ) हैं अर्थात् शिवजी
पंचाननवह जिसके पंच आनन (मुँह) है अर्थात् शिवजी
आशुतोषवह जो शीघ्र (आशु) खुश हो जाते हैं अर्थात् शिवजी
पशुपतिवह जो पशुओं का पति है अर्थात् शिवजी
बाघाम्बरवह जिसके बाघ की खाल का अम्बर (वस्त्र) है अर्थात् शिवजी
सतीशवह जो सती के ईश हैं अर्थात् शिवजी
चंद्रमौलिवह जिसके मौलि पर चंद्र है अर्थात् शिवजी
मदनरिपुवह जो मदन (कामदेव) के रिपु (शत्रु) हैं अर्थात् शिवजी
भूतेशवह जो भूतों के ईश हैं अर्थात् शिवजी
विधुशेखरवह जिसका विधु (चंद्रमा) शेखर (सिर का आभूषण) है अर्थात् शिवजी
नाकपतिवह जो नाक (स्वर्ग) का पति है अर्थात् इंद्र
शचिपतिवह जो शचि का पति है अर्थात् इंद्र
वज्रायुधवह जिसके वज्र का आयुध है अर्थात इंद्र
सहस्राक्षवह जिसके सहस्र (हजार) अक्षि है अर्थात् इंद्र
सुरेशवह जो सुरों के ईश हैं अर्थात् इंद्र
वज्रपाणिवह जिसके पाणि में वज्र है अर्थात् इंद्र
पंचशरवह जिसके पाँच शर है अर्थात् कामदेव
मनोजवह जो मन में जन्म लेता है, अर्थात् कामदेव
मन्मथवह जो मन को मथने वाला है अर्थात् कामदेव
मनसिजवह जो मन में जन्म लेता है, अर्थात् कामदेव
रतिकांतवह जो रति का कांत (पति) है अर्थात् कामदेव
मीनकेतुवह जिसके मीन का केतु (ध्वज) है अर्थात् कामदेव
अनंगवह जो बिना अंग का है अर्थात् कामदेव
वीणावादनीवह जो वीणा का वादन करने वाली है अर्थात् सरस्वती
वीणापाणिवह जिसके पाणि में वीणा है अर्थात् सरस्वती
हंसासिनीवह जो हंस के आसन वाली है अर्थात् सरस्वती
धवलवसनावह जो धवल (श्वेत) वसन (वस्त्र) धारण करने वाली है अर्थात् सरस्वती
वागीश्वरीवह जो वाक् की ईश्वरी है अर्थात् सरस्वती
कपीश्वरवह जो कपियों (वानरों) के ईश्वर हैं अर्थात् हनुमानजी
वज्रांगवह जिनके अंग वज्र के समान हैं अर्थात् हनुमानजी
पवनसुतवह जो पवन के सुत (पुत्र) है अर्थात् हनुमानजी
महावीरमहान् हैं जो वीर अर्थात् हनुमानजी
चतुर्मुखचार मुख हैं जिसके अर्थात् ब्रह्माजी
लम्बोदरलम्बा उदर है जिसका अर्थात् गणेशजी
रेवतीरमणवह जो रेवती के साथ रमण करते हैं अर्थात् बलराम
षण्मुखवह जिसके षट्‌मुख हैं अर्थात् कार्तिकेय
मयूरवाहनवह जिसके मयूर का वाहन है अर्थात् कार्तिकेय
वाचस्पतिवह जो वाक् का पति है अर्थात् बृहस्पति
सूतपुत्रवह जो सूत पुत्र है अर्थात् कर्ण
दिगम्बरदिक् (दिशा) है अम्बर जिसका अर्थात् शिवजी, जैन धर्म का एक संप्रदाय विशेष, नंगा
दशाननदश आनन (मुँह) है जिसके अर्थात् रावण
जलजजल से उत्पन्न है जो अर्थात् कमल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  1. ‘शब्दहीन’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और भेद का चयन कीजिए- CBSE 2024
    • (क) शब्द है जो हीन, कर्मधारय
    • (ख) हीन है जो शब्द, तत्पुरूष
    • (ग) शब्द से हीन, कर्मधारय
    • (घ) शब्द से हीन, तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (घ) शब्द से हीन – तत्पुरूष समास
  2. ‘शुभदिन’ में कौनसा समास है? CBSE 2023
    • (क) तत्पुरुष समास
    • (ख) कर्मधारय समास
    • (ग) द्विगु समास
    • (घ) द्वंद्व समास
    • उत्तर : (ख) कर्मधारय समास
  3. ‘अकालपीड़ित’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और समास का चयन कीजिए- CBSE 2022
    • (क) अकाल का पीड़ित, द्विगु समास
    • (ख) अकाल से पीड़ित, तत्पुरुष समास
    • (ग) अकाल के लिए पीड़ित, कर्मधारय समास
    • (घ) अकाल की पीड़ित – बहुव्रीहि समास
    • उत्तर : (ख) अकाल से पीड़ित – तत्पुरुष समास
  4. ‘जेबकतरा’ का समास-विग्रह एवं भेद होगा- CBSE 2020
    • (क) जेब को काटने वाला, तत्पुरुष समास
    • (ख) जेब की काट, द्विगु समास
    • (ग) जेब और काट, द्वंद्व समास
    • (घ) जेब मे काट, कर्मधारय समास
    • उत्तर : (क) जेब को काटने वाला – तत्पुरुष समास
  5. ‘पाठशाला’ समस्तपद में कौन-सा समास है? CBSE 2018
    • (क) तत्पुरुष
    • (ख) कर्मधारय
    • (ग) द्विगु
    • (घ) अव्ययीभाव
    • उत्तर : (क) तत्पुरुष
  6. ‘ध्यानमग्न’ का समास-विग्रह होगा- CBSE 2012
    • (क) ध्यान से मग्न
    • (ख) ध्यान पर मग्न
    • (ग) ध्यान में मग्न
    • (घ) ध्यान को मग्न
    • उत्तर : (ग) ध्यान में मग्न
  7. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- CBSE 2017 |
    • (i) सुमृत्यु |                                       (i) कर्मधारय समास | |
    • (ii) दीनबंधु |                                    (ii) द्विगु समास | |
    • (iii) प्रतिदिन |                                  (iii) अव्ययीभाव समास | |
    • (iv) स्नेहहीन |                                  (iv) बहुव्रीहि समास |
      • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iii)
      • (ख) (i) और (ii)
      • (ग) (ii) और (iii)
      • (घ) (iii) और (iv)
      • उत्तर : (क) (i) और (iii)
  8. ‘जगन्नाथ’ में समास है- CBSE 2015
    • (क) बहुव्रीहि समास
    • (ख) कर्मधारय समास
    • (ग) तत्पुरूष समास
    • (घ) द्वंद्व समास
    • उत्तर : (क) बहुव्रीहि समास
  9. ‘प्रतिदिन’ का समास-विग्रह है- CBSE 2014
    • (क) प्रति और दिन
    • (ख) प्रत्येक के लिए दिन
    • (ग) दिन के अनुसार
    • (घ) दिन-दिन
    • उत्तर : (घ) दिन-दिन
  10. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- CBSE 2012 |
    • (i) सद्धर्म |                                  (i) कर्मधारय समास | |
    • (ii) दोपहर |                                (ii) अव्ययीभाव समास | |
    • (iii) माता-पिता |                         (iii) द्वंद्व समास | |
    • (iv) दशानन |                             (iv) तत्पुरूष समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (ii)
      • (ख) (i) और (iii)
      • (ग) (ii) और (iv)
      • (घ) (iii) और (iv)
      • उत्तर : (ख) (i) और (iii)
  11. ‘वनवास’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और समास का चयन कीजिए- CBSE 2017
    • (क) वन और वास, द्वंद्व समास
    • (ख) वन के लिए वास, तत्पुरुष समास
    • (ग) वन में वास, तत्पुरुष समास
    • (घ) वन का वास, अव्ययीभाव समास
    • उत्तर : (ग) वन में वास- तत्पुरूष समास
  12. ‘शासनपद्धति’ समस्तपद का विग्रह होगा CBSE 2011
    • (क) शासन का पद्धति
    • (ख) शासन पर पद्धति
    • (ग) शासन की पद्धति
    • (घ) शासन से पद्धति
    • उत्तर : (ग) शासन की पद्धति
  13. ‘ध्यानमग्न’ का समास विग्रह एवं भेद होगा CBSE 2010
    • (क) ध्यान में हैं जो मग्न, कर्मधारय समास
    • (ख) ध्यान और मग्न- द्वंद्व समास
    • (ग) ध्यान में मग्न, तत्पुरूष समास
    • (घ) ध्यान के लिए मग्न, अव्ययीभाव समास
    • उत्तर : (ग) ध्यान में मग्न- तत्पुरुष समास
  14. ‘गिरिधर’ का समास विग्रह और भेद होगा- CBSE 2008
    • (क) गिरि को धारण किया है जिसने अर्थात् श्रीकृष्ण, बहुव्रीहि समास
    • (ख) गिरि के लिए धारणा, तत्पुरुष समास
    • (ग) गिरि को धारण करना, अव्ययीभाव समास
    • (घ) गिरि और धारण करने वाला, द्वंद्व समास
    • उत्तर : (क) गिरि को धारण किया है जिसने अर्थात् श्रीकृष्ण – बहुव्रीहि समास
  15. ‘गगनचुंबी’ में समास है- CBSE 2007
    • (क) द्विगु समास
    • (ख) कर्मधारय समास
    • (ग) तत्पुरूष समास
    • (घ) द्वंद्व समास
    • उत्तर : (ग) तत्पुरूष समास
  16. ‘विद्यारत्न’ का समास विग्रह हैं- CBSE 2007
    • (क) विद्या का रत्न
    • (ख) विद्या के लिए रत्न
    • (ग) विद्यारूपी रत्न
    • (घ) विद्या और रत्न
    • उत्तर : (ग) विद्यारूपी रत्न
  17. निम्नलिखित युग्मो पर विचार कीजिए- CBSE 2006 |
    • (1) राजदूत |                   (i) तत्पुरुष समास | |
    • (ii) नीलकंठ |                 (ii) अव्ययीभाव समास | |
    • (iii) चौराहा |                  (iii) द्विगु समास | |
    • (iv) एकदंत |                  (iv) द्वंद्व समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iii)
      • (ख) (ii) और (iv)
      • (ग) (i) और (ii)
      • (घ) (iii) और (iv)
      • उत्तर : (क) (i) और (iii)
  18. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- CBSE 2005 |
    • (i) वनवास |                   (i) बहुव्रीहि समास | |
    • (ii) आटा-दाल |             (ii) द्वंद्व समास | |
    • (iii) महर्षि |                   (iii) कर्मधारय समास | |
    • (iv) घनश्याम |                (iv) तत्पुरूष समास |
      • उपयुक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iv)
      • (ख) (i) और (iii)
      • (ग) (ii) और (iii)
      • (घ) (ii) और (iv)
      • उत्तर : (ग) (ii) और (iii)
  19. ‘गुरूदक्षिणा ‘शब्द के सही समास विग्रह और समास का चयन कीजिए- CBSE 2004
    • (क) गुरू से दक्षिणा, तत्पुरुष समास
    • (ख) गुरू का दक्षिणा, तत्पुरुष समास
    • (ग) गुरू की दक्षिणा, तत्पुरुष समास
    • (घ) गुरू के लिए दक्षिणा, तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (घ) गुरू के लिए दक्षिणा – तत्पुरूष समास
  20. ‘अष्टाध्यायी ‘शब्द के लिए सही समास विग्रह और समास का चयन कीजिए- CBSE 2002
    • (क) आठ अध्यायों का समाहार, द्विगु समास
    • (ख) आठ हैं जो अध्याय, बहुव्रीहि समास
    • (ग) अष्ट और अध्याय, द्वंद्व समास
    • (घ) अष्ट के अध्याय – तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (क) आठ अध्यायों का समाहार – द्विगु समास
  21. ‘माता-पिता’ में समास है- CBSE 2001
    • (क) द्वंद्व समास
    • (ख) द्विगु समास
    • (ग) बहुव्रीहि समास
    • (घ) तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (क) द्वंद्व समास
  22. ‘यथार्थ’ का समास-विग्रह है-
    • (क) अर्थ के विपरीत
    • (ख) अर्थ के अनुसार
    • (ग) अर्थ से अधिक
    • (घ) सार्थक शब्द
    • उत्तर : (ख) अर्थ के अनुसार
      • निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
      • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iii)
      • (ख) (ii) और (iv)
      • (ग) (i) और (iv)
      • (घ) (i) और (ii)
      • उत्तर : (घ) (i) और (ii)
  23. ‘हवन सामग्री’ समास है-
    • (क) कर्मधारय समास
    • (ख) अव्ययीभाव समास
    • (ग) तत्पुरुष समास
    • (घ) द्वंद्व समास
    • उत्तर : (ग) तत्पुरुष समास
  24. ‘भयभीत’ का समास-विग्रह है-
    • (क) भय से भीत
    • (ख) भय के लिए गीत
    • (ग) भय का भीत
    • (घ) भय और भीत
    • उत्तर : (क) भय से भीत
  25. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) राजा-रानी |                (i) द्विगु समास | |
    • (ii) गजानन |                  (ii) बहुव्रीहि समास | |
    • (iii) स्त्रीरत्न |                  (iii) कर्मधारय समास | |
    • (iv) मुख्यमंत्री |               (iv) अव्ययीभाव समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iv)
      • (ख) (ii) और (iv)
      • (ग) (i) और (iii)
      • (घ) (ii) और (iii)
      • उत्तर : (घ) (ii) और (iii)
  26. ‘बाकायदा’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और भेद का चयन कीजिए-
    • (क) कायदे के अनुसार, अव्ययीभाव समास
    • (ख) कायदे के बिना, अव्ययीभाव समास
    • (ग) कायदे ही कायदे, अव्ययीभाव समास
    • (घ) कायदे के द्वारा कृत, तत्पुरूष समास
    • उत्तर : (क) कायदे के अनुसार – अव्ययीभाव समास
  27. ‘घुड़साल’ का समास विग्रह है-
    • (क) घोड़े की साल
    • (ख) घोड़ों के लिए शाला
    • (ग) घोड़ों को शाला
    • (घ) घोड़ों से शाला
    • उत्तर : (ख) घोड़ों के लिए शाला
  28. ‘लोकप्रिय’ समस्तपद में कौन-सा समास है?
    • (क) तत्पुरुष समास
    • (ख) कर्मधारय समास
    • (ग) अव्ययीभाव समास
    • (घ) द्वंद्व समास
    • उत्तर : (क) तत्पुरुष समास
  29. ‘सज्जन’ समस्तपद का समास-विग्रह होगा
    • (क) सद् है जो जन
    • (ख) सत् है जो जन
    • (ग) अच्छा है जो पुरुष
    • (घ) सत् के समान जन
    • उत्तर : (ख) सत् है जो जन
  30. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) देशभक्ति |                  (i) तत्पुरुष समास | |
    • (ii) वनवास |                  (ii) द्विगु समास | |
    • (iii) कालीमिर्च |             (iii) कर्मधारय समास | |
    • (iv) चौमासा |                (iv) द्वंद्व समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (iii)
      • (ख) (ii) और (iii)
      • (ग) (iii) और (iv)
      • (घ) (i) और (iv)
      • उत्तर : (क) (i) और (iii)
  31. ‘शब्दहीन’ शब्द के लिए सही समास विग्रह और भेद का चयन कीजिए-
    • (क) शब्द है जो हीन, कर्मधारय समास
    • (ख) हीन है जो शब्द, तत्पुरुष समास
    • (ग) शब्द से हीन, कर्मधारय समास
    • (घ) शब्द से हीन, तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (घ) शब्द से हीन – तत्पुरुष समास
  32. ‘नीलकमल’ समस्तपद का विग्रह होगा-
    • (क) नीला है जो कमल
    • (ख) नीला और कमल
    • (ग) नीले कमल वाला
    • (घ) नीले कमल पर
    • उत्तर : (क) नीला है जो कमल
  33. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) चवन्नी |                    (i) द्विगु समास | |
    • (ii) प्राणप्रिय |                 (ii) कर्मधारय समास | |
    • (iii) नदी-नाले |              (iii) अव्ययीभाव समास | |
    • (iv) प्रतिवर्ष |                 (iv) तत्पुरुष समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (ii)
      • (ख) (ii) और (iii)
      • (ग) (iii) और (iv)
      • (घ) (i) और (iii)
      • उत्तर : (क) (i) और (ii)
  34. ‘अष्टाध्यायी’ शब्द के लिए सही समास विग्रह और समास का चयन कीजिए-
    • (क) आठ अध्यायों का समाहार, द्विगु समास
    • (ख) आठ है जो अध्याय, कर्मधारय समास
    • (ग) अष्ट और अध्याय, द्वंद्व समास
    • (घ) अष्ट के अध्याय, तत्पुरूष समास
    • उत्तर : (क) आठ अध्यायों का समाहार – द्विगु समास
  35. ‘राहखर्च’ समस्तपद का समास-विग्रह है-
    • (क) राह में खर्च
    • (ख) राह से खर्च
    • (ग) राह का खर्च
    • (घ) राह के लिए खर्च
    • उत्तर : (घ) राह के लिए खर्च
  36. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) प्रतिदिन |                               (i) तत्पुरुष समास | |
    • (ii) भरपूर |                                 (ii) द्विगु समास | |
    • (iii) नीलकंठ |                            (iii) बहुव्रीहि समास | |
    • (iv) सुख-दुःख |                          (iv) द्वंद्व समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (ii)
      • (ख) (iii) और (iv)
      • (ग) (i) और (iv)
      • (घ) (ii) और (iii)
      • उत्तर : (ख) (iii) और (iv)
  37. ‘भीमार्जुन’ शब्द / समस्तपद कौन-से समास का उदाहरण है?
    • (क) द्वंद्व समास
    • (ख) द्विगु समास
    • (ग) तत्पुरुष समास
    • (घ) बहुव्रीहि समास
    • उत्तर : (क) द्वंद्व समास
  38. ‘हवन सामग्री’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और समास का चयन कीजिए-
    • (क) हवन की सामग्री, कर्मधारय समास
    • (ख) हवन के लिए सामग्री, तत्पुरुष समास
    • (ग) हवन और सामग्री, द्वंद्व समास
    • (घ) हवन के समान सामग्री, द्विगु समास
    • उत्तर : (ख) हवन के लिए सामग्री – तत्पुरुष समास
  39. ‘साभार’ का समास विग्रह एवं भेद होगा-
    • (क) आभार सहित, अव्ययीभाव समास
    • (ख) आभार रहित, द्विगु समास
    • (ग) आभार और सहित, द्वंद्व समास
    • (घ) आभार के बिना, कर्मधारय समास
    • उत्तर : (क) आभार सहित – अव्ययीभाव समास
  40. ‘देशभक्ति’ शब्द/समस्तपद के लिए सही समास-विग्रह और समास का चयन कीजिए-
    • (क) देश की भक्ति, तत्पुरूष समास
    • (ख) देश के लिए भक्ति, तत्पुरुष समास
    • (ग) देश और भक्ति, द्वंद्व समास
    • (घ) भक्ति है जिस देश में, कर्मधारय समास
    • उत्तर : (ख) देश के लिए भक्ति – तत्पुरूष समास
  41. ‘चिंतामग्न’ समस्तपद के लिए सही समास-विग्रह और भेद चुनिए-
    • (क) चिंता से युक्त, तत्पुरूष समास
    • (ख) चिंता से ग्रस्त, तत्पुरुष समास
    • (ग) चिंता में मग्न, तत्पुरुष समास
    • (घ) चिंता से निश्चिंत, तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (ग) चिंता में मग्न – तत्पुरूष समास
  42. ‘महाराजा’ शब्द / समस्तपद कौन-से समास का उदाहरण है?
    • (क) बहुव्रीहि समास
    • (ख) द्वंद्व समास
    • (ग) कर्मधारय समास
    • (घ) अव्ययीभाव समास
    • उत्तर : (ग) कर्मधारय समास
  43. ‘चरणकमल’ समस्तपद का सही समास-विग्रह और भेद चुनिए-
    • (क) चरणों के लिए कमल, तत्पुरुष समास
    • (ख) चरण और कमल, द्विगु समास
    • (ग) कमल के चरण, तत्पुरुष समास
    • (घ) कमल के समान चरण, कर्मधारय समास
    • उत्तर : (घ) कमल के समान चरण – कर्मधारय समास
  44. ‘नीलकमल’ समस्तपद का विग्रह होगा-
    • (क) नीला है जो कमल
    • (ख) नीला और कमल
    • (ग) नीले कमल वाला
    • (घ) नीले कमल पर
    • उत्तर : (क) नीला है जो कमल
  45. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) त्रिलोक |                   (i) द्विगु समास | |
    • (ii) मालगाड़ी |               (ii) बहुव्रीहि समास | |
    • (iii) रसोईघर |                (iii) तत्पुरुष समास | |
    • (iv) तन-तन |                 (iv) कर्मधारय समास |
      • उपर्युक्त युग्मों में से कौन सही सुमेलित हैं-
      • (क) (i) और (ii)
      • (ख) (ii) और (iii)
      • (ग) (iii) और (iv)
      • (घ) (i) और (iii)
      • उत्तर : (घ) (i) और (iii)
  46. ‘दशानन’ का समास विग्रह एवं भेद होगा-
    • (क) दस है मुख जिसके अर्थात् रावण, बहुव्रीहि समास
    • (ख) दस मुखों का समाहार, द्विगु समास
    • (ग) राजा दक्ष का पुत्र अर्थात् वारि, बहुव्रीहि समास
    • (घ) दशा खराब है जिसकी, कर्मधारय समास
    • उत्तर : (क) दस है मुख जिसके अर्थात् रावण – बहुव्रीहि समास
  47. ‘यथासंभव’ समस्तपद में कौन-सा समास है?
    • (क) कर्मधारय समास
    • (ख) तत्पुरुष समास
    • (ग) द्विगु समास
    • (घ) अव्ययीभाव समास
    • उत्तर : (घ) अव्ययीभाव समास
  48. ‘घुड़साल’ शब्द के लिए सही समास-विग्रह और समास का चयन कीजिए-
    • (क) घोड़े की साल, द्विगु समास
    • (ख) घोड़े के लिए शाला, तत्पुरुष समास
    • (ग) घोड़ों को शाला, अव्ययीभाव समास
    • (घ) घोड़ों से शाला, द्वंद्व समास
    • उत्तर : (ख) घोड़े के लिए शाला – तत्पुरुष समास
  49. ‘महीधर’ का समास-विग्रह एवं भेद होगा-
    • (क) महान है जो धर, कर्मधारय समास
    • (ख) मही वाला है जो धर अर्थात् पर्वत, बहुव्रीहि समास
    • (ग) मही से युक्त, तत्पुरुष समास
    • (घ) मही को धारण करने वाला है जो अर्थात् शेषनाग, बहुव्रीहि समास
    • उत्तर : (घ) मही को धारण करने वाला है जो अर्थात् शेषनाग – बहुव्रीहि समास
  50. ‘महान है जो आत्मा’ का समस्तपद है-
    • (क) महान
    • (ख) महात्मन
    • (ग) महात्मा
    • (घ) महन्त
    • उत्तर : (ग) महात्मा
  51. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) चतुरानन |                  (i) द्विगु समास | |
    • (ii) तिरंगा |                    (ii) बहुव्रीहि समास | |
    • (iii) चंद्रमुख |                 (iii) कर्मधारय समास | |
    • (iv) बुद्धिहीन |                (iv) तत्पुरुष समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (iii) और (iv)
      • (ख) (i) और (iv)
      • (ग) (iv) और (i)
      • (घ) (ii) और (iii)
      • उत्तर : (क) (iii) और (iv)
  52. ‘बंधनमुक्त’ समस्तपद का समास-विग्रह एवं भेद होगा-
    • (क) बंधन में मुक्त, कर्मधारय समास
    • (ख) बंधन से मुक्त, तत्पुरूष समास
    • (ग) बंधन के लिए मुक्त, तत्पुरुष समास
    • (घ) बंधन और मुक्त, द्वंद्व समास
    • उत्तर : (ख) बंधन से मुक्त – तत्पुरूष समास
  53. ‘यथाविधि’ का विग्रह है-
    • (क) विधि के अनुसार
    • (ख) विधिनुसार
    • (ग) विधि जैसा
    • (घ) इनमें से कोई नहीं
    • उत्तर : (क) विधि के अनुसार
  54. ‘शरण को पहुँचा हुआ’ का समस्त पद है-
    • (क) शरणग्रामी
    • (ख) शरणागत
    • (ग) शरणार्थी
    • (घ) शरणानुसार
    • उत्तर : (ख) शरणागत
  55. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) आज्ञानुसार |                          (i) तत्पुरुष समास | |
    • (ii) नीलकमल |                          (ii) बहुव्रीहि समास | |
    • (iii) पीतांबर |                             (iii) द्वंद्व समास | |
    • (iv) अष्टाध्यायी |                        (iv) द्विगु समास |
    • उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं-
      • (क) (iii) और (i)
      • (ख) (iv) और (i)
      • (ग) (i) और (iii)
      • (घ) (ii) और (iii)
      • उत्तर : (ख) (iv) और (i)
  56. ‘दूध-दही’ का विग्रह है-
    • (क) दूध में दही
    • (ख) दूध का दही
    • (ग) दूध और दही
    • (घ) दूध पर दही
    • उत्तर : (ग) दूध और दही
  57. ‘ऋणमुक्त’ में कौन-सा समास है?
    • (क) तत्पुरुष समास
    • (ख) बहुव्रीहि समास
    • (ग) कर्मधारय समास
    • (घ) द्विगु समास
    • उत्तर : (क) तत्पुरुष समास
  58. ‘भयभीत’ शब्द के सही समास-विग्रह एवं भेद का चयन कीजिए
    • (क) भय के कारण भीत, तत्पुरुष समास
    • (ख) भय और भीत- द्वंद्व समास
    • (ग) भय हेतु भीत, कर्मधारय समास
    • (घ) भय से भीत, तत्पुरुष समास
    • उत्तर : (घ) भय से भीत – तत्पुरुष समास
  59. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए- |
    • (i) पंचवटी |                               (i) बहुव्रीहि समास | |
    • (ii) भरपेट |                                (ii) तत्पुरुष समास | |
    • (iii) नीलकमल |                         (iii) कर्मधारय समास | |
    • (iv) हस्तलिखित |                       (iv) तत्पुरुष समास |
      • उपर्युक्त युग्मों में से कौन सही सुमेलित हैं-
      • (क) (iii) और (i)
      • (ख) (iv) और (i)
      • (ग) (iii) और (iv)
      • (घ) (i) और (ii)
      • उत्तर : (ग) (iii) और (iv)
  60. ‘हाथों-हाथ’ का विग्रह है-
    • (क) हाथ ही हाथ में
    • (ख) हाथ और हाथ
    • (ग) हाथ में हाथ
    • (घ) इनमें से कोई नहीं
    •  उत्तर : (क) हाथ ही हाथ में

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